जाने कब कोई आ के
चूर-चूर कर डाले,
ज़िन्दगी है स्वप्न समान मेरे देश में
हाज़िर है मौत का सामान मेरे देश में
शहर ही बने शमशान मेरे देश में
इन्सां आज हो रहे हैवान मेरे देश में
जाने कब कोई आ के
चूर-चूर कर डाले,
ज़िन्दगी है स्वप्न समान मेरे देश में
हाज़िर है मौत का सामान मेरे देश में
शहर ही बने शमशान मेरे देश में
इन्सां आज हो रहे हैवान मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
Copyright 2009 - Albelakhatri.com
10 comments:
बहुत ही सही लिखा है आपने
सही कहा आपने. आतंकवादी हों या अलगाववादी, दोनों ही इंसानियत के दुश्मन हैं.
बहुत ही अच्छी कविता लिखी अलबेला जी
मेरी शुभकामनाएं
बहुत सही !!
BHAVABHIVYAKTI MEIN PAKAD HAI.MEREE BADHAAEE.
देश की हकीकत एक बार फिर याद दिला दी...
बहुत सटीक शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत सही लिखा है आपने…………सुन्दर कविता । आभार
अब समझ में आ रहा है " अलबेला खत्री को गुस्सा क्यों आता है " -शरद कोकास
बहुत सही...बेहतरीन!!
Post a Comment