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Albela Khatri

फूट-फूट रोता है किसान मेरे देश में.........

बोलियों में प्यार की

मिठास कहीं खो गई है

चलती है तेग़ सी ज़ुबान मेरे देश में


बेगुनाह लाशों के

अम्बार नीचे दब चुका

क्रान्तिकारियों का बलिदान मेरे देश में


चोरी छिपे कह दो

या सरे-आम बिकती है

गरीबों की आबरू जवान मेरे देश में


बच्चे जब भूख से

बिलखते हैं, रोते हैं तो

फूट-फूट रोता है किसान मेरे देश में

9 comments:

Mithilesh dubey September 6, 2009 at 9:45 AM  

मार्मिक रचना। बहुत खुब, सुन्दर

Alpana Verma September 6, 2009 at 11:14 AM  

मर्मस्पर्शी रचना.
-कविता की प्रस्तुति प्रभावशाली है.

शिवम् मिश्रा September 6, 2009 at 11:42 AM  

किसान को रोते हमने भी देखा...,
आओ मिल कर करे कुछ एसा,
कि अब की बार रोये नेता तेरे - मेरे देश में |

Anil Pusadkar September 6, 2009 at 11:53 AM  

सटीक,सिर्फ़ रोता ही नही रो-रोकर मर जाता है किसान इस देश में।

ओम आर्य September 6, 2009 at 12:16 PM  

एक दर्द को आवाज आपने दी है जिसके लिये मै कृतज्ञ हूँ........बहुत बहुत आभार

M VERMA September 6, 2009 at 12:17 PM  

बहुत संवेदनशील रचना.

समय चक्र September 6, 2009 at 8:09 PM  

बहुत ही उम्दा सोच गरीबी पर .

राजीव तनेजा September 7, 2009 at 12:18 AM  

पीड़ादायक सत्य

Chandan Kumar Jha September 7, 2009 at 10:51 PM  

कटु सत्य ।

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