बोलियों में प्यार की
मिठास कहीं खो गई है
चलती है तेग़ सी ज़ुबान मेरे देश में
क्रान्तिकारियों का बलिदान मेरे देश में
गरीबों की आबरू जवान मेरे देश में
फूट-फूट रोता है किसान मेरे देश में
बोलियों में प्यार की
मिठास कहीं खो गई है
चलती है तेग़ सी ज़ुबान मेरे देश में
क्रान्तिकारियों का बलिदान मेरे देश में
गरीबों की आबरू जवान मेरे देश में
फूट-फूट रोता है किसान मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
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9 comments:
मार्मिक रचना। बहुत खुब, सुन्दर
मर्मस्पर्शी रचना.
-कविता की प्रस्तुति प्रभावशाली है.
किसान को रोते हमने भी देखा...,
आओ मिल कर करे कुछ एसा,
कि अब की बार रोये नेता तेरे - मेरे देश में |
सटीक,सिर्फ़ रोता ही नही रो-रोकर मर जाता है किसान इस देश में।
एक दर्द को आवाज आपने दी है जिसके लिये मै कृतज्ञ हूँ........बहुत बहुत आभार
बहुत संवेदनशील रचना.
बहुत ही उम्दा सोच गरीबी पर .
पीड़ादायक सत्य
कटु सत्य ।
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