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Albela Khatri

क्यों भाई चन्दा ! किससे सीखा ये धन्धा ?

हाँ तो चन्दा !

ओ चन्दा !

किस से सीखा ये धन्धा ?

हम से ही

सीखा होगा शायद


क्योंकि हमारे अलावा तो कोई

यह विद्या जानता नहीं

अगर

जानता भी है तो मानता नहीं

जिस थाली में खाना

उसी में छेद करना .......हमारी विशेषता है

जिसे तूने खूब अपनाया है

और आज

एक बार फ़िर

अपने आका

सूरज को ग्रहण लगाया है


यह घटना तो कुछ पल की है

सूरज जल्दी ही तेरे पंजे से निकल जाएगा

लेकिन

ग्रहण का यह पल

इतिहास में

अंकित हो गया है

और तू

सदा सदा के लिए

कलंकित

हो गया है

14 comments:

निर्मला कपिला July 22, 2009 at 10:04 AM  

वाह वाह अल्बेला जी आज के रूर्यग्रहन पर इतनी प्यारी कविता बहुत सुन्दर बधाई

अविनाश वाचस्पति July 22, 2009 at 10:32 AM  

कलंकित हुआ तो क्‍या नाम न हुआ है

माया की तरह किसी को डसा तो नहीं है

चंदा हूं मैं नाम का किसी को छला नहीं है

मेरे जैसा चंदा बटोरा नहीं जाता है

सिर्फ मन को, रात को, चमकाता है

सिर्फ कुछ पलों के लिए अहसास दिलाता है

जो छोटा है, वो इतना छोटा भी है

वजूद सभी का सृष्टि में कहीं न कहीं है।

अविनाश वाचस्पति July 22, 2009 at 10:33 AM  

स्‍वीकृति के बाद

मैंने तो ग्रहण लगाने के लिए भी

किसी की स्‍वीकृति नहीं मांगी थी।

shama July 22, 2009 at 10:58 AM  

Sehmat hun, Nirmala ji se..!
Kya cheez hai chand bhee...sooraj kee raushanee se raushan, phirbhee grahan usee ko...!

http://shamasansmaran.blogspot.com

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रंजन July 22, 2009 at 11:00 AM  

पर चंदा कलंकित क्यों हुआ?

संजय बेंगाणी July 22, 2009 at 11:04 AM  

ये तो जोर की उड़ान हो गई. चाँद बच्चा है, नहीं जानता क्या कर रहा है, उसे माफ कर दें :)

शरद कोकास July 22, 2009 at 11:08 AM  

भई मैने 29 साल पहले के सूर्य ग्रहण पर एक कविता लिखी थी मेरे ब्लोग शरद कोकास पर देख लेना

Razi Shahab July 22, 2009 at 12:04 PM  

vaah kya likha hai bahut mast achcha laga

Shruti July 22, 2009 at 12:08 PM  

O chanda
gila na karna ki tera naam kalankit ho gaya hai..
kam nahi hai yeh baat ki tera naam is blog par ankit ho gaya hai..

ओम आर्य July 22, 2009 at 12:29 PM  

waah badhiyaa manthan hai ......aisa bahut hi kam log hote hai .......jo is tarah ki rachana karate hai .......pyari kawita

प्रिया July 22, 2009 at 1:40 PM  

Wah! Chanda Mama se panga le liya aapne

Murari Pareek July 22, 2009 at 3:31 PM  

रोष न करें, न चंदा को दें दोष |
ये तो शनि का चक्कर है बोस ||

शनि से कहाँ कोई बच पाया है |
पुत्र की करतूतों ने बाप को लजाया है ||

दो पाटन के बिच चन्दा तो बिचारा खुद पिस गया है |
कहे मुरारी देख अलबेला चन्दा पे रिस गया है ||

ताऊ रामपुरिया July 22, 2009 at 7:50 PM  

भाई बच्चों का तो काम ही बदमाशी करना है. :) बहुत सुंदर कविता.

रामराम.

dr amit jain July 23, 2009 at 2:42 AM  

बहुत सुंदर कविता

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