हाँ तो चन्दा !
ओ चन्दा !
किस से सीखा ये धन्धा ?
हम से ही
सीखा होगा शायद
क्योंकि हमारे अलावा तो कोई
यह विद्या जानता नहीं
अगर
जानता भी है तो मानता नहीं
जिस थाली में खाना
उसी में छेद करना .......हमारी विशेषता है
जिसे तूने खूब अपनाया है
और आज
एक बार फ़िर
अपने आका
सूरज को ग्रहण लगाया है
यह घटना तो कुछ पल की है
सूरज जल्दी ही तेरे पंजे से निकल जाएगा
लेकिन
ग्रहण का यह पल
इतिहास में
अंकित हो गया है
और तू
सदा सदा के लिए
कलंकित
हो गया है
ओ चन्दा !
किस से सीखा ये धन्धा ?
हम से ही
सीखा होगा शायद
क्योंकि हमारे अलावा तो कोई
यह विद्या जानता नहीं
अगर
जानता भी है तो मानता नहीं
जिस थाली में खाना
उसी में छेद करना .......हमारी विशेषता है
जिसे तूने खूब अपनाया है
और आज
एक बार फ़िर
अपने आका
सूरज को ग्रहण लगाया है
यह घटना तो कुछ पल की है
सूरज जल्दी ही तेरे पंजे से निकल जाएगा
लेकिन
ग्रहण का यह पल
इतिहास में
अंकित हो गया है
और तू
सदा सदा के लिए
कलंकित
हो गया है
14 comments:
वाह वाह अल्बेला जी आज के रूर्यग्रहन पर इतनी प्यारी कविता बहुत सुन्दर बधाई
कलंकित हुआ तो क्या नाम न हुआ है
माया की तरह किसी को डसा तो नहीं है
चंदा हूं मैं नाम का किसी को छला नहीं है
मेरे जैसा चंदा बटोरा नहीं जाता है
सिर्फ मन को, रात को, चमकाता है
सिर्फ कुछ पलों के लिए अहसास दिलाता है
जो छोटा है, वो इतना छोटा भी है
वजूद सभी का सृष्टि में कहीं न कहीं है।
स्वीकृति के बाद
मैंने तो ग्रहण लगाने के लिए भी
किसी की स्वीकृति नहीं मांगी थी।
Sehmat hun, Nirmala ji se..!
Kya cheez hai chand bhee...sooraj kee raushanee se raushan, phirbhee grahan usee ko...!
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पर चंदा कलंकित क्यों हुआ?
ये तो जोर की उड़ान हो गई. चाँद बच्चा है, नहीं जानता क्या कर रहा है, उसे माफ कर दें :)
भई मैने 29 साल पहले के सूर्य ग्रहण पर एक कविता लिखी थी मेरे ब्लोग शरद कोकास पर देख लेना
vaah kya likha hai bahut mast achcha laga
O chanda
gila na karna ki tera naam kalankit ho gaya hai..
kam nahi hai yeh baat ki tera naam is blog par ankit ho gaya hai..
waah badhiyaa manthan hai ......aisa bahut hi kam log hote hai .......jo is tarah ki rachana karate hai .......pyari kawita
Wah! Chanda Mama se panga le liya aapne
रोष न करें, न चंदा को दें दोष |
ये तो शनि का चक्कर है बोस ||
शनि से कहाँ कोई बच पाया है |
पुत्र की करतूतों ने बाप को लजाया है ||
दो पाटन के बिच चन्दा तो बिचारा खुद पिस गया है |
कहे मुरारी देख अलबेला चन्दा पे रिस गया है ||
भाई बच्चों का तो काम ही बदमाशी करना है. :) बहुत सुंदर कविता.
रामराम.
बहुत सुंदर कविता
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