अदावत नहीं
आ
दावत की बात कर
अलगाव की नहीं
आ
लगाव की बात कर
नफ़रत नहीं
तू
उल्फ़त की बात कर
बात कर रूमानियत की
मैं सुनूंगा
बात कर इन्सानियत की
मैं सुनूंगा
मैं न सुन पाऊंगा तेरी साज़िशें
रंजिशें औ खूं आलूदा काविशें
किसने सिखलाया तुझे संहार कर !
कौन कहता है कि पैदा खार कर !
रे मनुज तू मनुज सा व्यवहार कर !
आ प्यार कर
आ प्यार कर
आ प्यार कर
मनुहार कर
मनुहार कर
मनुहार कर
सिंगार बन तू ख़ल्क का तो खालिकी मिल जायेगी
खूब कर खिदमत मुसलसल मालिकी मिल जायेगी
पर अगर लड़ता रहेगा रातदिन
दोज़ख में सड़ता रहेगा रातदिन
किसलिए आतंक है और मौत का सामान है
आईना तो देख, तू इन्सान है ..... इन्सान है
कर उजाला ज़िन्दगी में
दूर सब अन्धार कर !
बात मेरी मानले तू
जीत बाज़ी,हार कर !
____प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..प्यार कर !
____प्यार में मनुहार कर ..रसधार कर ... उजियार कर !
6 comments:
प्यार कर रे ..प्यार कर रे ..उम्दा संदेशा!!
बहुत खूब
सन्देश देती खूबसूरत रचना
वाह वाह ..............एक आह भी लम्बी निकलती है जिसमे यह निकलती है ............आ प्यार कर रे आ प्यार कर रे
बहुत सही कहा. बस प्यार और नफ़रत में जरा सा ही फ़र्क होता है.
रामराम
lajwaab bahut hi umdaa rachnaa !!
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