मैं सूरत हूँ
सूर्य पुत्री ताप्ती का शहर
वीर कवि नर्मद का शहर
मेरे कई नाम हैं
सिल्क सिटी
डायमण्ड सिटी ..................
आज
मेरी छाती पे मेला लगेगा तमाशबीनों का
उन तमाशबीनों का
जो ताप्ती के पिता का खग्रास ग्रहण देखने आ रहे हैं
दूर दूर से
बड़े लोगों की बड़ी बात है भाई.................
मामला सूर्य का है
इसलिए
मुख्यमंत्री भी आ रहे हैं अपने लाव-लश्कर के साथ
वरना
देखने को तो पहले भी बहुत से ग्रहण लगे थे
कन्याओं के शील पर बलात्कार का ग्रहण लगा
बात बिना बात हिंसाचार का ग्रहण लगा
जानलेवा रोगों के आक्रमण का ग्रहण लगा
भोजन और पानी में संक्रमण का ग्रहण लगा
सुरक्षा और आराम को ग्रहण लगा
मन्दी के दौर में काम को ग्रहण लगा
कच्ची बस्तियों में गन्दगी का ग्रहण लगा
दारू बनाने वालों की दरिंदगी का ग्रहण लगा
मगर
कोई देखने नहीं आया
किसी को
फ़ुर्सत नहीं थी
आज चूँकि सूरज को दाग लगने वाला है
इसलिए उसकी दुर्दशा देखने
वो भी आए हैं
जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में कभी सूर्योदय देखा ही न होगा
सुबह नौ बजे उठने वाले
रात नौ बजे ही पहुँच गए हैं
अपनी जगह आरक्षित करने के लिए
ताकि ग्रहण को देख सकें
देखो...............देखो.................
खूब देखो
मगर याद रखो
____________सूरज फ़िर निकलेगा
______________उतना ही प्रकाशमान निकलेगा
तुम कितना भी उपहास उडाओ
उसकी बेबसी का
वो कुछ नहीं बोलेगा
लेकिन जिस दिन वह तुम्हें देखने पर आमादा हो जाएगा
उस दिन न तुम बचोगे
और न ही तुम्हें
कोई देखने वाला बचेगा
इसलिए अभी सम्हल जाओ............
धरती को
इतना गर्म न करो कि
वह सूरज होजाए
और सब-कुछ ख़त्म हो जाए
आगे तुम समझदार हो ................
मैं तो आज सोऊंगा
जी भर सोऊंगा
क्योंकि
मैं
मेरी माँ तापी के पिता की दुर्दशा
नहीं देख सकता
नहीं देख सकता
नहीं देख सकता
4 comments:
बहुत उम्दा!! वाह!
सच कहा आपने..अगर हम इसी तरह पेड़ काटते रहे तो धरती एक दिन सूर्य के समान तपने लगेगी...
बहुत बढिया रचना
aapne aise topic per kavita likhi hai.. ki mai to soch hi nahi sakti thi. nice one.. :)
वाह बेजोड़ बात कही है, एक एक लफ्ज कितने सही हैं, और सबसे बड़ी बात की मौके पर मौके की बात कहना ही सबसे बड़ी बात है|
निकी हूँ फीकी लगे बिन अवसर की बात|
जैसे रण के बिच में श्रंगहार ना सुहात||
फीकी हूँ निकी लगे कहिये समय विचार |
सबको मन हर्षित करै ज्यों ब्याह में गार ||
Post a Comment