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Albela Khatri

ताऊ रामपुरिया और हसीना की ज़ुल्फ़ें.....

कहना मत किसी से ......एक राज़ की बात बता रहा हूँ ।


ताऊ रामपुरिया ने मूड में आ कर अपनी एक परिचित हसीना

से कहा - प्रिये, मैं तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से खेलना चाहता हूँ ।


हसीना को दया आ गई ।

उसने अपनी विग उतार कर ताऊ के

हाथ में पकड़ा दी ।

बोली - ले ताऊ, खेलता बैठ ,

शाम नै वापिस कर दियो ............. हा हा हा हा हा हा

___________300th post_____हा हा हा हा हा हा

5 comments:

Murari Pareek July 7, 2009 at 11:34 AM  

खेल लियो ताउजी जी भर के जुल्फां स्यूं जी भर जाये तो लौटा दियो!! हा..हा.. मजा आ गया !!!

राज भाटिय़ा July 7, 2009 at 2:52 PM  

अरे वो वाली बिंग ताऊ ने राम प्यारी को पहना दी...

शिवम् मिश्रा July 7, 2009 at 4:43 PM  

Thanks for visiting my blog and for posting your valuable comment there.It was really a pleasure seeing your comment on my blog.Thanks once again.

ताऊ रामपुरिया July 7, 2009 at 6:56 PM  

भाटिया जी आप मेरी सब जगह पोल क्युं खोल देते हो? ये अच्छी बात नही है (स्टाईल अटलजी):)

रामराम.

Udan Tashtari July 9, 2009 at 2:21 AM  

मजेदार. ताऊ भी अटका.

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