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समलैंगिंगता समाज के लिए अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है


समलैंगिंगता में फ़ायदे ही फ़ायदे  :
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 सब के सब सम्भ्रांत किस्म के भले लोग हाथ धोकर, बल्कि नहा धो कर समलैंगिंगों  के पीछे पड़े हैं । जिससे अपना सूटकेस तक नहीं उठता, उसने भी लट्ठ उठा रखा है और ढूंढ रहा है समलैंगिंगों को .............क्यों भाई ? क्या बिगाड़ा है उन्होंने आपका ? क्या वो आपके साथ कुछ हरकत कर रहे हैं ? क्या वो आपको कोई तकलीफ़  पहुँचा रहे हैं ? नहीं न ?

तो जीने दो न उन को अपने हिसाब से ... तुम क्यों ज़बरदस्ती उनकी खीर में अपना चम्मच हिला रहे हो ? अरे आपको तो उनका सम्मान करना चाहिए...

नागरिक अभिनन्दन करना चाहिए ... और आप उनका अपमान कर रहे हैं । असल में आप ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपकी समझदानियाँ छोटी हैं

जिनमें  अभी तक ये बात आई ही नहीं कि समलैंगिंगता  समाज के लिए अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है।  सम यानी some का मतलब होता है कम,

अब कोई लैंगिंग सम्बन्ध कम बनाए तो आपको क्या तकलीफ़  है ? कौआ अगर कूड़े में मुंह मारता है ,गिद्ध अगर मुर्दों का मांस नोंचते हैं या कोई सूअर गन्दगी में ऐश करता है तो क्या हमें तकलीफ़  होती है ? बिल्कुल नहीं होती, जो जैसे भाग्य लेकर आया है वैसा जीवन जीता है । तो फ़िर ये गे लोग जो नर्क अपने भाग्य में लिखा कर लाये हैं उससे हमें तकलीफ़  क्यों ?

___________समलैंगिंगता के फायदे :

१ जब कुत्सित और कामी पुरूष आपस में ही संतुष्टि प्राप्त कर लेंगे तो महिलाओं और कन्याओं पर होने वाले अनाचार में कमी आएगी । वे निश्चिंत हो कर घर से बाहर जा सकेंगी ...

२ सजातीय सम्बन्धों के कारण अनैच्छिक गर्भाधान और भ्रूण हत्या जैसे पाप भी कम होंगे । बल्कि ख़त्म ही हो जायेंगे ।

३ सबसे बड़ा खतरा आज हमें तेज़ी से बढती जनसँख्या का है । समलैंगिंगता से यह खतरा भी कम होगा, आबादी पर विराम लगेगा । और भी बहुत से फ़ायदे हैं जो मैं गिना सकता हूँ लेकिन डर ये है कि इनका इतना पक्ष लेते लेते कहीं मैं ख़ुद ही समलैंगिंग न हो जाऊं .....हा हा हा हा हा हा हा

समलैंगिंगों आगे बढो ..हम तुम्हारे साथ हैं .........हा हा हा हा हा

जय हिन्द
-अलबेला खत्री

11 comments:

ताऊ रामपुरिया July 8, 2009 at 3:10 PM  

कौआ अगर कूड़े में मुंह मारता है ,गिद्ध अगर मुर्दों का मांस नोंचते हैं

या कोई सूअर गन्दगी में ऐश करता है तो क्या हमें तकलीफ होती है ?
एक हद तक यह भी सही है पर समाज मे असमाजिक होकर तो नही रहा जा सकता ना. पर क्या किजियेगा? हर बात के अपने २ इफ़ेक्ट हैं.

रामराम.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" July 8, 2009 at 3:25 PM  

असली काम की बात तो आपने भी छोड़ दी जनाव , जब सारे ही समलैंगिक होंगे तो देश में सौहार्द ही सौहार्द ! किसकी राम जन्म भूमि और किसकी बाबरी मस्जिद, भाड़ में गए सब के सब ! संसद में क्या पक्ष और क्या प्रतिपक्ष, सब एक मत ! बीजेपी का गे चुनाव में खडा होगा तो कोंग्रेस और बाम्पंथ के गे अपने आप मैदान से हट जायेंगे ! कोई मतदान ही नहीं होगा तो खर्चा बचेगा, देश का आर्थिक विकास होगा ! आर्थिक विकास होगा तो देश उन्नति करेगा, देश उन्नति करेगा तो जल्दी विकसित हो जाएगा, विकसित देश के गे विदेशो में भी फैलगे और एक दिन पूरे विश्व में गे ही गे............... बस, फिर क्या चाहिए? और इस दुनिया में सिर्फ एक ही देश होगा " united state of gey & lesbian ( समलैंगिक सयुंक्तराज्य) " .........................!!!

Jyoti July 8, 2009 at 3:46 PM  

हा हा हा...
खत्री जी , क्या सूझ है।
बेकार में परिवार नियोजन पे इंदिरा जी ने इतने खर्चे कर दिए।
यह योजना तो पहले लागू होनी चाहिए थी।
और सबसे विशेष तो आपका यह तर्क की 'जो जैसा भाग्य लेकर आया है ...'
हा हा हा
लिखते रहिये .. समाज की कई समस्याओं का समाधान आपके चिट्ठों के माध्यम से हो जाएगा ;)

संजय बेंगाणी July 8, 2009 at 3:49 PM  

ऐसे सम्बन्ध सदा से बनते आए है. बस उन्हे अब कानूनन अपराध नहीं माना जाएगा. बात केवल इतनी ही है.

स्वप्न मञ्जूषा July 8, 2009 at 10:07 PM  

अलबेला जी,

बालक बालक से, बालिका बालिका से विवाह करें इतने में बात ख़तम नहीं न होगी, अभी आप आगे देखते जाइये, घर में कुकुर बिलाई भी अब दामाद, पतोहू बन कर आने वाले हैं बस स्वागत की तैयारी कर दें हमलोग...

दिनेशराय द्विवेदी July 8, 2009 at 11:43 PM  

जय हो आप की! अगली कड़ी पढ़ने का इंतजार है।

Girish Kumar Billore July 9, 2009 at 9:27 AM  

bahut sahee dada

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: July 9, 2009 at 12:34 PM  

मुझे अब लग रहा है की मैंने " स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से " आलेख व्यर्थ लिखा , काश पहले मैं आप की शरण में आ जाता ,मेरा समय व श्रम दोनों बच जाते | पर 'अदा 'जी तो कुछ और बता रहीं थीं ,मैं तो यह सोच के आया था की जब यह प्यार अंजाम को पहुंचे तो बारातियों में मेरा भी नाम हो

Murari Pareek July 9, 2009 at 12:34 PM  

waah some langing ke phaayde !!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" July 9, 2009 at 1:00 PM  

अल्बेला जी, एक "समलैंगिक मुक्ति मोर्चा" खोल लीजिए.झण्डा उठाए हम सब भी चल पडेगे आप के पीछे जिन्दाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए:)

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर July 9, 2009 at 1:45 PM  

SAMLAINGIKTA GEET (hamaari najar men GEY GEET) aapne to padha hi hai. SAB CHALTA HAI.

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