कारगिल विजय की
पूर्व संध्या पर
देश के बहाद्दुर बलिदानियों को
विनम्र प्रणाम !
आओ देशवासी एक काम कर लें
देश के शहीदों को सलाम कर लें
ऑंखों में अक़ीदत के आंसू भर कर
दो घड़ी का मौन उनके नाम कर लें...आओ देशवासी...
दुश्मनों की गोली जिनका काल हो गई,
जिनके लहू से धरा लाल हो गई
तन-मन-धन दिलो-जान दे गए,
जो हमारे लिए बलिदान दे गए
उन मुस्लिमों को हम अलविदा कहें,
उन हिन्दुओं को राम-राम कर लें ...आओ देशवासी
दुनिया को जिन्होंने पूरा देखा न था,
ज़िन्दगी का स्वाद अभी चखा भी न था
फूल कामनाओं के खिले भी न थे,
सजनी से नैन मिले ही न थे
उनके अभागे परिवार के लिए,
थोड़ा दुःख सारे ख़ासो-आम कर लें...आओ देशवासी...
बारूदी आग से जो खेलते रहे,
गोलियों को छाती पर झेलते रहे
तिरंगे की आन-बान-शान के लिए,
वो जो मिट गए हिन्दोस्तान के लिए
जिनकी चिताओं पे तिरंगा झुक गया,
उन्हें गीली ऑंखों से प्रणाम कर लें ...
आओ देशवासी एक काम कर लें
देश के शहीदों को सलाम कर लें
देश के शहीदों को सलाम कर लें
ऑंखों में अक़ीदत के आंसू भर कर
दो घड़ी का मौन उनके नाम कर लें...आओ देशवासी...
दुश्मनों की गोली जिनका काल हो गई,
जिनके लहू से धरा लाल हो गई
तन-मन-धन दिलो-जान दे गए,
जो हमारे लिए बलिदान दे गए
उन मुस्लिमों को हम अलविदा कहें,
उन हिन्दुओं को राम-राम कर लें ...आओ देशवासी
दुनिया को जिन्होंने पूरा देखा न था,
ज़िन्दगी का स्वाद अभी चखा भी न था
फूल कामनाओं के खिले भी न थे,
सजनी से नैन मिले ही न थे
उनके अभागे परिवार के लिए,
थोड़ा दुःख सारे ख़ासो-आम कर लें...आओ देशवासी...
बारूदी आग से जो खेलते रहे,
गोलियों को छाती पर झेलते रहे
तिरंगे की आन-बान-शान के लिए,
वो जो मिट गए हिन्दोस्तान के लिए
जिनकी चिताओं पे तिरंगा झुक गया,
उन्हें गीली ऑंखों से प्रणाम कर लें ...
आओ देशवासी एक काम कर लें
देश के शहीदों को सलाम कर लें
6 comments:
हमारे अमन और चैन के लिए जिन्होने
अपनी कई की रातों की नींद कुर्बान कर दी..
और फिर एक दिन चिर निद्रा मे सो गये...
ऐसे वीर जवानों को हम दिल से सलाम करते है.
waah ye to 15th august ke liye me le letaa hun aapkaa naam bataanaa nahi bhulungaa !!
जिनकी चिताओं पे तिरंगा झुक गया,
उन्हें गीली ऑंखों से प्रणाम कर लें ।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
bahut hi bhaawamay likha hai aapane .......atisundar .......badhaaee
रचना तथा उसके पीछे की भावना ..दोनों अति सुंदर ..दोनों को नमन ..!
लेकिन , हम 2 minutes की खामोशी रख सकते हैं , एक श्रधांजली के रूपमे ?( अपने आपसे तो नही ही ...सायरन बजने परभी नही ..)...30 जनवरी के दिन ..उस राष्ट्र पिता के लिए ..जिसके कारन हम आज , जिसे जो चाहे कहनेका अधिकार रखते हैं ..? "पिता " कहते हैं ,(जबकि, उन्हों ने ख़ुद को न महात्मा कहलवाया न 'पिता ')...लेकिन भूल गए ...हम हर शहीद को भूल गए ...1948 तो दूरका दिन ..कारगिल कुछ
करीब...हम तो २६/११/१००८ भी भूल गए...! किसे परवाह थी,कि, ATS के मुख्य की जगह तबसे खाली पड़ी थी..अभी,अभी ५/६ दिन पूर्व काफ़ी हो हल्ले के बाद वहाँ नियुक्ती की गयी?
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बहुत सुंदर.
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