शूलों से जो डर-डर
चलता है आदमी तो
पांव नीचे फूलों को मसलता है आदमी
अन्न जैसे कंचन को
कूड़ा कर फैंकता है
अमृत पी ज़हर उगलता है आदमी
जाने किस बात की
अकड़ है जो ऐंठ -ऐंठ
दो-दो फीट ज़मीं से उछलता है आदमी
गौर से जो देखा बन्धु
मुझे ऐसा लगा जैसे
अपनी ही आग में उबलता है आदमी
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
5 comments:
अलबेला जी, बहुत सुंदर.
वाकई जबरदस्त कहा.
रामराम.
बहुत सुन्दर रचना अलबेला जी बधाई.
वाह वाह कुछ ऐसा :
इन्सां से ज्यादा किसकी है हालत तबाह|
इन्सां से ज्यादा कौन है नामा-स्याह ||
यह वो जिसकी रोज घटती है उम्र|
यह वो है जिसके रोज बढ़ते है गुनाह ||
bahut hi zabardast rachna..
badhai
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