सच कहा कबीर ने....................
साधो ! ये मुर्दों का गाँव
________गुरदास मान का एक गीत भी है -
ऐथे तमगे मिलदे मरयां नूं
ऐथे जयोणा सख्त गुनाह सजणा -
आ सजणा आ सजणा
__________________ये मैं इसलिए कह रहा हूँ कि
कुछ दिन पहले एक सड़क दुखान्तिका में कविवर
ॐ प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी, लाड सिंह गुर्जर, ॐ व्यास ॐ ,
एक फोटोग्राफर व वाहन चालक इत्यादि कुल 6 लोग मारे
गए थे । बहुत दुःख मनाया गया , श्रद्धांजलियाँ दी गईं लेकिन
किसी को ये याद नहीं रहा कि उस वाहन में
एक मात्र कवि ऐसा भी था जो कि घायल तो हुआ था लेकिन
बच गया............मरा नहीं ।
जानी बैरागी नाम का वह कवि चूँकि राजोद नाम के एक छोटे से
गाँव का रहने वाला है और मंच पर भले ही कितना जम
जाए, तथाकथित (बड़े) कवियों के किसी ख़ास गुट में
अभी वह नहीं जमा है इसलिए न तो किसी ने उसे सार्वजनिक
तौर पर ज़िन्दा बचने पर बधाई दी, न ही उसे किसी
तरह की आर्थिक मदद के लिए पूछा ..........
वह क्या कर रहा है ?
कैसे घर चला रहा है ?
शायद उससे हमें सरोकार नहीं है
क्योंकि इस मृत्युलोक में सम्मान व श्रद्धा के लिए
मरना पड़ता है
ज़िन्दों को शायद ये अधिकार नहीं है
जीवित लोग यहाँ पर दरकार नहीं है
__________________साधो ! ये मुर्दों का गाँव........
__________________साधो ! ये मुर्दों का गाँव....
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
4 comments:
ज़िन्दों को शायद ये अधिकार नहीं है
जीवित लोग यहाँ पर दरकार नहीं है
__________________साधो ! ये मुर्दों का गाँव........
__________________साधो ! ये मुर्दों का गाँव....
इस अटल सत्य को याद दिलाने के लिये आभार आपका.
रामराम.
वाकई बहुत ही जबरदस्त सच कहा है आपने मरने के बाद ही सब बड़ाई, भलाई करते हैं, और गरीब का तो भगवान् भी नहीं होता !!शायद कविवर जानी बैरागीको इतना मलाल न हुआ हो | पर आपकी व्यथा से हम भी आहत हुए हैं!! सचमुच मुर्दों का की बस्ती ही है |
सच कहा आपने...जीते जी जिनकी कदर नहीं होती...मरने के बाद उन्हें पूजा जाता है
जिन्दा हाथी लाख का तो मारा सवा लाख का . आज आदमी की पहचान उसके लेबल से होती है
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