महिलाओं का मैं बहुत सम्मान करता हूं। हंसने की बात नहीं है, सचमुच करता हूं,
वाकई करता हूं और मैं तो क्या मेरे पिताजी भी किया करते थे। हो सकता है
उनके पिताजी भी करते हों लेकिन मैं गारंटी से कुछ नहीं कह सकता क्योंकि
उस वक्त मैं था नहीं इसलिए देखा नहीं। पर इतना .जरूर जानता हूं कि आदमी
जिससे डरता है उसका सम्मान करता ही है और करना भी चाहिए
नहीं तो महिलायें इतनी तेज़ तथा आत्म निर्भर होती हैं कि ख़ुद करवा लेती हैं
और अपने तरीके से करवा लेती हैं। इतिहास साक्षी है, जिस-जिस व्यक्ति ने
महिलाओं का सम्मान किया, वह मज़े में रहा और जिसने नहीं किया
वह कहीं का नहीं रहा। कंस, रावण, दुर्योधन और दुःशासन जैसे
महाबलियों की कैसी वाट लगी थी, ये हम बचपन से पढ़ते आए हैं।
पुरानी बात छोड़ो, आज के हालात देख लो....
डॉ. मनमोहन सिंह ने एक महिला का विश्र्वास जीत लिया तो बिना चुनाव
लड़े भी देश के प्रधानमंत्री बन गए जबकि अटल बिहारी वाजपेयी कुंवारे
होकर भी एक अखण्ड कुंवारी को ख़ुश नहीं रख सके और उनकी बनी बनाई
गवर्नमेन्ट सि़र्फ एक महिला यानी महारानी जयललिता के कारण गिर गई थी।
लालू यादव ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया तो उसके पुण्य-प्रताप से
केन्द्र में रेलमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया जबकि उन्हीं के बिरादरी भाई
मुलायम सिंह ने मायावती से टक्कर ली तो ऐसी मुंह की खाई
कि सारी हवा निकल गई। ऊपर से मतवाला हाथी सायकल पर ऐसा चढ़ा
था कि पुर्ज़ा पुर्ज़ा रगड़ दिया, रायता बनाकर रख दिया।
इसलिए मेरे भाई, नारी का सम्मान करना .जरूरी है, लाज़िमी है, अनिवार्य है।
क्योंकि सारा का सारा माल महिलाएं दबा के बैठी हैं, पुरूष तो बेचारा
अपने मुंह पर थप्पड़ मार कर गाल लाल रखता है ताकि समाज में
उसकी हेकड़ी बनी रहे। धन दौलत लक्ष्मी मां के पास है,
शक्ति-सामर्थ्य दुर्गा मां के पास है, विद्या-बुद्धि शारदा मां के पास है,
अन्न-औषधि धरती मां के पास है, जल की धारा गंगा-यमुना आदि
माताओं के पास है, दूध-दही की व्यवस्था गाय-भैंस माता के पास है
और बाकी जो बचा वो सब प्रकृति मां के पास है। पुरूषों के पास
छोड़ा क्या है? यहां तक कि जिसके कारण हम सांस लेकर .जिन्दा हैं
वो हवा भी माताजी ही हैं। इसलिए मैंने तो कान पकड़ लिए हैं और
क़सम खा ली है कि चाहे में ख़ुद का सम्मान न करूं, पर महिलाओं का
अवश्य करूंगा और मरते दम तक करता रहूंगा।
हालांकि इस मामले में कुछ लोग मेरे भी उस्ताद हैं। इतने उस्ताद हैं कि
दिन-रात महिलाओं के बारे में ही सोचते रहते हैं और उनका सम्मान
करने का सही मौका ढ़ूंढते रहते हैं। ये पठ्ठे इतने उत्साहीलाल हैं कि
सुबह सवेरे ही घर से निकल पड़ते हैं महिलाओं की तलाश में और
शाम होने तक लगे रहते हैं महिलाओं का सम्मान करने में। इनकी गिद्ध दृष्टि
लगातार ऐसी महिलाओं को ढूंढती रहती है जिसका मन सम्मान
करवाने को मचल रहा हो। आम तौर पर ये भले लोग अपने मिशन में
कामयाब हो जाते हैं और सम्मान प्रक्रिया पूर्ण होने पर
शरीफ़ लोगों की तरह अपने घर चले जाते हैं लेकिन जिस दिन इन्हें कोई
सम्मान कराऊ महिला नहीं मिलती उस दिन वे बेचैन हो जाते हैं
और .जबर्दस्ती सम्मान करने पर उतारू हो जाते हैं। इन्हें रोकने के लिए
तब महिलाओं को शक्ति प्रदर्शन करना पड़ता है कई बार तो पुलिस भी
बुलानी पड़ती है। लेकिन ये पठ्ठे इतने मजबूत हैं कि पुलिसिया मार
खाके भी सुधरते नहीं हैं, थाने से छूटते ही फिर किसी महिला को ढ़ूंढऩे
निकल पड़ते हैं सम्मान करने के लिए। असल में ये लोग कुंवारे होते हैं
इसलिए महिलाओं का सम्मान करने के लिए मरे जाते हैं, जो शादीशुदा
लोग हैं वे इस पचड़े में नहीं पड़ते।
शादीशुदा आदमी तो महिला के नाम से ही आतंकित हो जाता है उनका
सम्मान करना तो दूर की बात है। इसलिए हे मेरे देश के औलाद वालो,
अपनी औलाद को सम्हालो, इनकी दिनचर्या का ध्यान रखो और बेटे की
उम्र शादी लायक होते ही उसके हाथ लाल-पीले कर डालो वरना
किसी दिन वह मुंह काला करता पकड़ा जाएगा तो तुम्हारा सारा सम्मान
हवा हो जाएगा। समझ गए ना?
जय हिन्द !
- अलबेला खत्री
वाकई करता हूं और मैं तो क्या मेरे पिताजी भी किया करते थे। हो सकता है
उनके पिताजी भी करते हों लेकिन मैं गारंटी से कुछ नहीं कह सकता क्योंकि
उस वक्त मैं था नहीं इसलिए देखा नहीं। पर इतना .जरूर जानता हूं कि आदमी
जिससे डरता है उसका सम्मान करता ही है और करना भी चाहिए
नहीं तो महिलायें इतनी तेज़ तथा आत्म निर्भर होती हैं कि ख़ुद करवा लेती हैं
और अपने तरीके से करवा लेती हैं। इतिहास साक्षी है, जिस-जिस व्यक्ति ने
महिलाओं का सम्मान किया, वह मज़े में रहा और जिसने नहीं किया
वह कहीं का नहीं रहा। कंस, रावण, दुर्योधन और दुःशासन जैसे
महाबलियों की कैसी वाट लगी थी, ये हम बचपन से पढ़ते आए हैं।
पुरानी बात छोड़ो, आज के हालात देख लो....
डॉ. मनमोहन सिंह ने एक महिला का विश्र्वास जीत लिया तो बिना चुनाव
लड़े भी देश के प्रधानमंत्री बन गए जबकि अटल बिहारी वाजपेयी कुंवारे
होकर भी एक अखण्ड कुंवारी को ख़ुश नहीं रख सके और उनकी बनी बनाई
गवर्नमेन्ट सि़र्फ एक महिला यानी महारानी जयललिता के कारण गिर गई थी।
लालू यादव ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया तो उसके पुण्य-प्रताप से
केन्द्र में रेलमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया जबकि उन्हीं के बिरादरी भाई
मुलायम सिंह ने मायावती से टक्कर ली तो ऐसी मुंह की खाई
कि सारी हवा निकल गई। ऊपर से मतवाला हाथी सायकल पर ऐसा चढ़ा
था कि पुर्ज़ा पुर्ज़ा रगड़ दिया, रायता बनाकर रख दिया।
इसलिए मेरे भाई, नारी का सम्मान करना .जरूरी है, लाज़िमी है, अनिवार्य है।
क्योंकि सारा का सारा माल महिलाएं दबा के बैठी हैं, पुरूष तो बेचारा
अपने मुंह पर थप्पड़ मार कर गाल लाल रखता है ताकि समाज में
उसकी हेकड़ी बनी रहे। धन दौलत लक्ष्मी मां के पास है,
शक्ति-सामर्थ्य दुर्गा मां के पास है, विद्या-बुद्धि शारदा मां के पास है,
अन्न-औषधि धरती मां के पास है, जल की धारा गंगा-यमुना आदि
माताओं के पास है, दूध-दही की व्यवस्था गाय-भैंस माता के पास है
और बाकी जो बचा वो सब प्रकृति मां के पास है। पुरूषों के पास
छोड़ा क्या है? यहां तक कि जिसके कारण हम सांस लेकर .जिन्दा हैं
वो हवा भी माताजी ही हैं। इसलिए मैंने तो कान पकड़ लिए हैं और
क़सम खा ली है कि चाहे में ख़ुद का सम्मान न करूं, पर महिलाओं का
अवश्य करूंगा और मरते दम तक करता रहूंगा।
हालांकि इस मामले में कुछ लोग मेरे भी उस्ताद हैं। इतने उस्ताद हैं कि
दिन-रात महिलाओं के बारे में ही सोचते रहते हैं और उनका सम्मान
करने का सही मौका ढ़ूंढते रहते हैं। ये पठ्ठे इतने उत्साहीलाल हैं कि
सुबह सवेरे ही घर से निकल पड़ते हैं महिलाओं की तलाश में और
शाम होने तक लगे रहते हैं महिलाओं का सम्मान करने में। इनकी गिद्ध दृष्टि
लगातार ऐसी महिलाओं को ढूंढती रहती है जिसका मन सम्मान
करवाने को मचल रहा हो। आम तौर पर ये भले लोग अपने मिशन में
कामयाब हो जाते हैं और सम्मान प्रक्रिया पूर्ण होने पर
शरीफ़ लोगों की तरह अपने घर चले जाते हैं लेकिन जिस दिन इन्हें कोई
सम्मान कराऊ महिला नहीं मिलती उस दिन वे बेचैन हो जाते हैं
और .जबर्दस्ती सम्मान करने पर उतारू हो जाते हैं। इन्हें रोकने के लिए
तब महिलाओं को शक्ति प्रदर्शन करना पड़ता है कई बार तो पुलिस भी
बुलानी पड़ती है। लेकिन ये पठ्ठे इतने मजबूत हैं कि पुलिसिया मार
खाके भी सुधरते नहीं हैं, थाने से छूटते ही फिर किसी महिला को ढ़ूंढऩे
निकल पड़ते हैं सम्मान करने के लिए। असल में ये लोग कुंवारे होते हैं
इसलिए महिलाओं का सम्मान करने के लिए मरे जाते हैं, जो शादीशुदा
लोग हैं वे इस पचड़े में नहीं पड़ते।
शादीशुदा आदमी तो महिला के नाम से ही आतंकित हो जाता है उनका
सम्मान करना तो दूर की बात है। इसलिए हे मेरे देश के औलाद वालो,
अपनी औलाद को सम्हालो, इनकी दिनचर्या का ध्यान रखो और बेटे की
उम्र शादी लायक होते ही उसके हाथ लाल-पीले कर डालो वरना
किसी दिन वह मुंह काला करता पकड़ा जाएगा तो तुम्हारा सारा सम्मान
हवा हो जाएगा। समझ गए ना?
जय हिन्द !
- अलबेला खत्री
4 comments:
हमे भी औरतो का सम्मान करना चाहिये ।
हा...हा...हा...
मज़ेदार
wah ............ bahut khub raajniti mein mahilaon ki bhumika par prakash dalne hetu shukriya !
बहुत खूब...
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