जाम लाये कोई, मय पिलाये कोई
महफ़िले-दिल में हमको बुलाये कोई
शोर सड़कों पे है जानलेवा बहुत
अपनी आँखों में हमको सुलाये कोई
कितना मुश्किल है जीना हयात आजकल
तेज़ रफ्तार साँसें चलाये कोई
जिस्म गलने लगा, दम निकलने लगा
कोढ़ उसकी जफ़ा का मिटाये कोई
ज़ख्म हमने तो खाये हैं गुल से ऐ-दिल
लाख काँटों से दामन बचाये कोई
साथ छूटे नहीं 'अलबेला' अब कभी
हाथ से हाथ ऐसे मिलाये कोई
अपनी आँखों में हमको सुलाये कोई...............
Labels: ग़ज़लनुमा like a ghazal
ये कैसी छटपटाहट थी भाई ? क्या आपको भी होती है ?
प्यारे ब्लॉगर बन्धुओ !
दो दिन के लिए मैं अपने परिवार के साथ शहर से दूर, देहात में समुद्र
किनारे एक रमणिक स्थल दमण और अम्भेटी गया था ताकि अपनी
श्रीमती और पुत्र के साथ नितान्त एकान्त का सुख ले सकूँ और माँ
प्रकृति के हरित आँचल में प्रसरे शुद्ध पर्यावरण में कोई सात्विक व
साहित्यिक सृजन कर सकूँ ।
मैं इस में सफल भी रहा किन्तु आंशिक रूप से............
क्योंकि भले ही मैं उस माहौल को भरपूर एन्जॉय कर रहा था ...लेकिन
मन में छटपटाहट भी थी... एक अजीब सी छटपटाहट ! ऐसी छटपटाहट
जो एक आशिक में अपने महबूब के लिए होती है, ऐसी छटपटाहट जो भक्त
में भगवान् के लिए होती है या ऐसी छटपटाहट जो परीक्षा देने के बाद
विद्यार्थी के मन में परिणाम जानने के लिए होती है.......... और ये सारी
छटपटाहट थी आप लोगों के लिए..............अर्थात अपने ब्लॉगर साथियों
के लिए....
मैं हैरान हूँ कि आख़िर क्यों थी इतनी छटपटाहट ?
किसने क्या लिखा होगा, किसने क्या चर्चा की होगी अथवा किसने किस
पोस्ट पर क्या टिप्पणी की होगी इस से क्या फ़र्क पड़ता है ? मेरा कौन सा
जन्म जन्म का नाता है या रिश्तेदारी है ब्लोगिंग से जिसके लिए मन
इतना व्याकुल था और घर में घुसते ही मैंने सच पूछो तो न पानी पिया है
और न ही व्यावसायिक e mail चैक किए हैं बस........खोल कर बैठ गया
हूँ dash bord और बात कर रहा हूँ आपसे..............
यार कुछ भी कहो ...यों लगता है मानो ब्लॉगिंग मेरे जीवन का एक अटूट
अंग बन चुका है और सारे ब्लॉगर मेरा एक विस्तृत परिवार ... जो लोग
निरन्तर सम्पर्क में हैं और मुझे अपनी टिप्पणियों से प्रोत्साहित करते हैं
वे तो प्रिय हैं ही, जो कभी मुझे घास नहीं डालते और पसन्द भी नहीं करते,
उन्हें भी मैं लगातार पढता हूँ और पसन्द करता हूँ ..सच ही कहा था भाई
अजय कुमार झा ने कि हिन्दी ब्लॉगिंग ...रिश्ते कायम करती है...
हालांकि ब्लॉगिंग से न तो मेरा कोई व्यावसायिक लाभ होने वाला है और न
ही 10-15 बधाई की टिप्पणियां कोई बहुत बड़ा प्रोत्साहन दे कर मेरे लेखन
को उर्जस्वित अथवा परिष्कृत कर सकती है ..क्योंकि मुझे आदत पड़ी है
भीड़ की ........ हजारों लोगों की वाह वाही और करतल ध्वनि की तुलना में
ये टिप्पणिया और पाठकों की संख्या बहुत ही कम है ..लेकिन इन दो दिनों
में ऐसा महसूस हुआ मानो ये चन्द टिप्पणियां और ये गिनती के पाठक
अब मेरे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गए हैं क्योंकि ये वो लोग नहीं जो भीड़
में हल्ला करते हैं ...........ये वो लोग हैं जोकि स्वयं बुद्धिजीवी हैं और मुझसे
कहीं बेहतर लेखन और सृजन कर रहे हैं..........इस कारण ये पाठक और
इन पाठकों की प्रतिक्रया बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और सम्मान्य हैं ।
मैं आप सभी को विनम्रतापूर्ण अभिवादन करता हूँ ..लेकिन एक बात जानना
चाहता हूँ की क्या आपको भी कभी ऐसा लगता है....?
क्या आपको भी कभी ऐसी छटपटाहट होती है ब्लॉगिंग से दूर रहने पर ?
क्या आपभी इस मुहब्बत की ज़द में आचुके हैं ? क्या आपका भी मन
छटपटाता है औरों को पढने के लिए और अपने लिखे पर टिप्पणियाँ
पाने के लिए ?
क्या dash bord आपको भी उतना ही खींचता ही जितना कि मुझे ?
आप बताओ तो कुछ पता चले.........
-अलबेला खत्री
Labels: अपनी बात
हे भगवान् ! ये रचना इतनी ज़्यादा sexy क्यों है ?
हे भगवान !
हे जगदीश्वर !
हे त्रिलोकी के प्राइम मिनिस्टर !
ये कैसा संसार है ?
जहाँ देखो...
sex का बाज़ार है
फ़िल्मों वाले अश्लील दैहिक खेल बेच रहे हैं
टी.वी. वाले व्यभिचारिक तालमेल बेच रहे हैं
अखबार वालों को
कुछ न मिला तो
विज्ञापन की आड़ में सांडे का तेल बेच रहे हैं
दाता !
विधाता !
ये तुमने.... कैसी रचना की रचना की है रचनाकार !
जिसकी संरचना में है 84 लाख योनियों की भरमार !
हम तो थक गए यार
हम तो टूट गए यार
इन योनियों को पार करते-करते
बार-बार जन्मते, बार-बार मरते
अब ये मानवी योनि मिली है
तो मन की कलियाँ खिली हैं
लेकिन दोबारा किसी योनि में न आना पड़े
इसका क्या इन्तेज़ाम है ?
ये बात मैं तब तक नहीं पूछूंगा जब तक कि
पहलू में ललना व हाथों में जाम है
लेकिन हे गोवर्धन गिरधारी !
नटवर नागर ! कृष्ण मुरारी !
मन करता है
एक सवाल करूँ तुझसे
जानूं तुझसे
कि आख़िर क्या लाचारी थी जो ये रचना ऐसी रचाई ?
ये रचना तुमने...क्या सोच कर इतनी sexy बनाई ?
जवाब तुम नहीं दोगे, मैं भलीभान्ति जानता हूँ
लेकिन ये अश्लील रचना
केवल वयस्कों के लिए है, मैं तो ऐसा मानता हूँ
Labels: हिन्दी कविता hindi poem
राखी सावंत ने विजेता पगड़ी पेश की हास्यकवि अलबेला खत्री को सोनी टी,वी. के "हँसेगा इंडिया" में, बधाई देते राजू श्रीवास्तव और पाकिस्तानी सुलतान
Rakhi Sawant presenting winning Paghdi to
Hasya kavi Albela Khatri on Sony TV along with
Raju Shrivastav and Pakistani artist Sutan
हास्यकवि अलबेला खत्री बने सोनी टी.वी.पर "कॉमेडी का बादशाह"-बधाई दे रही राखी सावंत साथ में हैं राजू श्रीवास्तव और दीपक राजा
आपने अपने लोहू से जो लिखा पैगम्बरो ! आपकी औलाद ...उलटा पढ़ रही है देखिये
चश्म पर परतें भरम की चढ़ रही हैं देखिये
देखिये, दर्पण से चिड़िया लड़ रही है देखिये
आपने अपने लोहू से जो लिखा पैगम्बरो !
आपकी औलाद ...उलटा पढ़ रही है देखिये
याद है कि आपने अमृत दिया था, याद है
पर हमारी लाश ....नीली पड़ रही है देखिये
एक दुनिया एक दुनिया को बसाने के लिए
किस तरह से रातदिन उजड़ रही है देखिये
आज क़ौमी एकता के दिवस हैं मनने लगे
बात ये भी याद रखनी पड़ रही है देखिये
Labels: ग़ज़लनुमा like a ghazal
अभिनव गुजरात गौरव समिति के मुकेश खोरडिया ने "हमारा गुज़रात" में किया सुप्रसिद्ध नृत्यांगना डिम्पल डेप्युटी का सम्मान .
Mukesh Khordia With Dimple Deputy in Abhinav Gujarat Gaurav Samiti Presents Albela Khatri’s Hamara Gujarat
Labels: मीडिया कवरेज़ हमारा गुजरात
अभिनव गुजरात गौरव समिति द्वारा सुप्रसिद्ध नाट्यकर्मी यज़दी करंजिया का सम्मान करते हुए घनश्याम बरेलिया
Mr.Ghanshyam barelia honoring to actor Mr. Yazdi karanzia with Hasyakavi Albela khatri in Hamara gujarat show presenting by Mukesh khordia's Abhinav gujarat gaurav samiti surat
Labels: मीडिया कवरेज़ हमारा गुजरात
अभिनव गुजरात गौरव समिति के पदाधिकारी मनोज अग्रवाल, मुकेश खोरडिया , दिनेश बंसल और सुदेश रावलवासिया ..हमारा गुज़रात के लोकार्पण में
Labels: मीडिया कवरेज़ हमारा गुजरात
अभिनव गुजरात गौरव समिति के दिनेश बंसल ने किया "हमारा गुजरात" के सम्मान समारोह का सफल संचालन ...
Labels: मीडिया कवरेज़ हमारा गुजरात
हर कोई यहाँ सेंक रहा अपने हिस्से की धूप.......
कहीं कील गड़े हैं कदम-कदम,
कहीं पग-पग है अंगार
कहीं खड़ी है शीतल छाया,
कर सोलहा सिंगार
कहीं जीत के गीत सजे हैं,
कहीं रो रही है हार
सुख और दुःख के धागों से ही
बुना गया संसार
ये जीवन क्या है?
इक ताश की बाज़ी
घर-आँगन क्या है?
इक ताश की बाज़ी
किसी के हाथ में राजा-इक्का,
किसी के हाथ तुरूप
हर कोई यहाँ सेंक रहा
अपने हिस्से की धूप
अपने हिस्से की धूप......अपने हिस्से की धूप
Labels: हिन्दी कविता hindi poem
पिताजी को बच्चे पैदा करने मत सिखाओ please.....
यों तो मैं अत्यन्त विनम्र और सहनशील प्रजाति का जीव हूं लेकिन
मेरी विनम्रता व सहनशीलता का बर्तन मीडियम साइज़ का ही है, ज्य़ादा
बड़ा नहीं है। इसलिए जब कोई व्यक्ति मुझे बिलावजह छेड़ता है तो मैं
गॉडज़िल्ला की भान्ति उग्र भी हो जाता हूं। ऐसे में मेरे शरीर के सारे अंग
हरकत में आ जाते हैं। इसका साक्षात अनुभव मेरे अनेक कवि मित्र कर
चुके हैं और आशा है, आगे भी करते रहेंगे।
माना कि हमारा देश इन दिनों राजनीतिक षड्यन्त्रों, आतंक की लपटों और
साम्प्रदायिकता वाली ज़हरीली हवाओं की ज़द में है, लेकिन इसका मतलब
ये नहीं कि कोई भी आदमी अपना मुंह उठा के भारत के लिए अपमानजनक
शब्द बोल दे और मैं सुन लूं। मैं तो एक की तीन सुनाता हूं। एक उदाहरण देता
हूं। बात ज़रा पुरानी है, लेकिन ढंग की है, इसलिए आपको बताता हूं।
उन दिनों मैं सैन जॉन केलिफ़ोर्निया में आयोजित एल.पी.एस.ऑफ यू.एस.ए.
के कन्वेन्शन में प्रस्तुति के लिए गया हुआ था। वहां चार पांच गोरे लोगों ने मुझे
घेर लिया और लगे पश्चिमी देशों का बखान करने कि इस देश ने ऐसा किया,
उस देश ने वैसा किया। जबकि भारत ने कोई तीर नहीं मारा, कोई बड़ा अविष्कार
नहीं किया। मैं बोला, 'छोड़ो यार, बाप को सब कुछ सिखाओ लेकिन बच्चे पैदा
करने मत सिखाओ। भारत से बढ़ कर कुछ नहीं है, दुनिया में जो कुछ भी दिख
रहा है उसका अधिकांशतः अविष्कार हमारे आर्यावर्त में, हमारे भारत में या यूं
कहो कि हमारे हिन्दुस्तान में ही हुआ है।' उनको भरोसा नहीं आ रहा था तो मैं
भी गर्म हो गया। कहा - सुनो, भारत में क्या क्या पहली बार हुआ :
दुनिया का सबसे पुराना और पहला मन्दिर है सोमनाथ
जिसे स्वयं चंद्रमा ने बनवाया था
दुनिया का पहला विश्वविद्यालय हैं नालंदा
जिसने सारी दुनिया में ज्ञान बहाया था
दुनिया में संगीत का पहला वाद्ययंत्र है डमरू
जिसे शिव आशुतोष ने बजाया था
और दुनिया की सबसे पवित्र नदी है गंगा
जिसे भगीरथ स्वर्ग से लेकर आया था
दुनिया की सबसे पहली फ़ायर प्रूफ़लेडी थी होलिका
जो गज़ब ढाती थी
जिस आग से हम डरते हैं
उसमें रोज़ नहाती थी
दुनिया का पहला वाटरप्रूफ़ रेसीडेन्स भगवान विष्णु का है
जो वैभव की देवी लक्ष्मी के साथ रमण करते हैं
और क्षीर सागर में
शेषनाग की सुकोमल शैय्या पर शयन करते हैं
पवन पुत्र हनुमान की हिस्ट्री तो और भी हार्ड है
उनके नाम तो दुनिया के बहुत सारे रिकार्ड हैं
वेट लिफ्टिंग-पहाड़ को उठा लिया
लॉंग जम्प-समुद्र को ही लांघ दिया
खेल-खेल में समूचा सूर्य खा लिया
और केवल अपनी पूंछ की आग से पूरी लंका को जला दिया
डब्ल्यु.डब्ल्यु. ई. के रैसलर
फोकट ही मद में झूम रहे हैं
उन्हें क्या मालूम कि
पहलवान तो था कुन्ती पुत्र भीम
जिसके उछाले हुए हाथी
आज तक अन्तरिक्ष में ही घूम रहे हैं
दुनिया की पहली पुस्तक वेद,
पहले पत्रकार नारद,
पहले संपादक हुए गुरू अर्जुनदेव
और पहले कवि थे बालमिकी
हेरी पोटर का भूत सिर्फ़ उनके सर पे चढ़ा है
जिन
अभागों ने अभी तक चन्द्रकांता नहीं पढ़ा है
लाखों वर्ष पहले
हमारे ऋषियों को ग्रहों की गति का ज्ञान था
फिजिक्स और केमिस्ट्री का भान था
अरे दुनिया ने सायकल भी नहीं खरीदी थी
तब हमारे पास पुष्पक विमान था
दुनिया के पहले वैद्य धनवंत्री,
पहले डाक्टर अश्विनी कुमार
पहले शिल्पकार विश्वकर्मा व
पहले इंजीनियर थे नल और नील
जिन्होंने समुद्र के सीने पर भी सेतु बांध दिया
ये कल्पना नहीं,
इतिहास की कथा है
कि ज़रूरत पड़ने पर हमने
समुद्र को भी मथा है
और बात यदि करो मेडीकल साइंस की
तो भइया...
मेडीकल साइंस को तो
सर्जरी का कॉन्सेप्ट ही हमने दिया
ऑपरेशन गणेश,
स्वयं भगवान शिव ने अपने हाथों से किया
आदमी का शरीर और हाथी का चेहरा
चिकित्सा विज्ञान का
अब तक का सबसे बड़ा चमत्कार है
और मैं गुजरात में रहता हूं तो गर्व से कहता हूं
कि दुनिया के
सबसे पुराने पर्वत का नाम गिरनार है
मेरा इतना कहना था कि वहां कोई नहीं टिका, सब जूते हाथ में लेकर भाग
लिये। अब मुझे क्या पता, कहां भाग लिये? मैंने क्या उनका ठेका ले रखा है
जो पूरा हिसाब दूं....... बात करते हो?
मज़ा आया ?
आया ?
तो करो....हा हा हा हा हा हा
जो ख़्वाबों में ही आजाओ तो अपना काम हो जाए ..........
निगाह उट्ठे तो सुबह हो, झुके तो शाम हो जाए
अगर तू मुस्कुरा भर दे तो क़त्लेआम हो जाए
ज़रूरत ही नहीं तुमको मेरी बांहों में आने की
जो ख़्वाबों में ही आजाओ तो अपना काम हो जाए
Labels: मुक्तक the albeli poem
मज़ा आ गया बड़ौदा में i-mint card के लोकार्पण में...
प्यारे ब्लोगर साथियो !
आज का दिन बहुत ही शानदार गुज़रा ।
एक तो सूरत में जमकर बरसात हुई और दूसरे बड़ौदा में अपने लतीफ़ों
पर जम कर तालियों और ठहाकों की बरसात हुई । i-mint card के
लोकार्पण समारोह में हालांकि मुख्य अतिथि मैं था लेकिन क्रिकेट जगत
की मशहूर हस्ती श्री जयन्त लेले के साथ मंच पर बैठना मुझे अच्छा लग
रहा था ।
चित्र देखिये....जब इस कन्या ने मुझे गुलदस्ता दे कर अभिनन्दित किया
होगा तब मेरे दिल में के बाग़ में कितने फूल एक साथ खिले होंगे...हा हा हा
ख़ूब हँसाया अलबेला खत्री ने गुज़रात की साँस्कृतिक राजधानी बड़ौदा वासियों को i-mint card के लोकार्पण समारोह में
हमारा गुजरात के सृजक laughter champion अलबेला खत्री ने किया बडौदा में i-mint कार्ड का लोकार्पण
भारत के First & largest loyalty network द्वारा जारी Reward card
i-mint का बड़ौदा में भव्य लोकार्पण आज समारोह के मुख्य अतिथि
laughter champion अलबेला खत्री ने किया ।
hotel wellcome में आयोजित शानदार समारोह में प्रमुख आकर्षण अलबेला
खत्री के अलावा क्रिकेट जगत की हस्ती BCCI के पूर्व प्रमुख जयन्त लेले,
laughter champion पराग कंसारा, i-mint के natinol sales head-retail
सचिन तिवारी समेत गुज़रात की अनेक हस्तियां उपस्थित रहीं ।
विशेषकर बड़ौदा शहर के तमाम बड़े व्यापारियों, स्टोर धारकों तथा मॉल
संचालकों ने i-mint card की खूबियों के चलते इसे ख़ूब पसन्द किया ।
हास्यकवि अलबेला खत्री द्वारा छात्र -छात्राओं के लिए मनोरंजक प्रस्तुति में बातें प्यार -मोहब्बत की....
फिर भी हमको कम लगती अपने हिस्से की धूप........
सागर में भी सूखा है मन
जाने कितना भूखा है मन
जितना चाहा उतना पाया, सपनों के अनुरूप
फिर भी हमको कम लगती अपने हिस्से की धूप
सपनों का संगीत अधूरा, अरमानों का गीत अधूरा
हार अधूरी, जीत अधूरी, जीवन की हर रीत अधूरी
मेले में भी तन्हा है मन
क्यों उलझा उलझा सा है मन
हाथों की इन रेखाओं में है सारा अभिरूप
फिर क्यों हमको कम लगती अपने हिस्से की धूप
कौन हैं अपने कौन पराये, हमको डराते अपने ही साये
छांव में बैठा मन ललचाये, धूप मिले तो खिल खिल जाए
चलते चलते हारा जीवन
बिखरा बिखरा सारा जीवन
और मिले कुछ धूप तो निखरे जीवन का रंग रूप
क्योंकि हमको कम लगती अपने हिस्से की धूप
Labels: करुणा के गीत सम्वेदना के गीत
नक़ल हो गई पास यहाँ पर और पढ़ाई फेल हो गई........
और नियमों को जेल हो गई
सुख के बादल बिखर चले हैं,
दु:ख की धक्कमपेल हो गई
किन शब्दों में व्यक्त करूं मैं
हैरत, तुम बतलाओ तो
नक़ल हो गई पास यहाँ पर
और पढ़ाई फेल हो गई
Labels: हास्य कविता मज़ाहिया funny poem
तज चाहे गीता और तज दे क़ुरान को...........
मान अभिमान तज,
तप और दान तज,
तज चाहे गीता और तज दे क़ुरान को
नौहा और नाला तज,
गिरजा शिवाला तज,
तज चाहे तीज चौथ नौमी रमज़ान को
काशी काबा ग्रन्थ तज,
चाहे सारे पन्थ तज,
तज दे तू भजनों की लम्बी लम्बी तान को
ईश की आराधना का
मन यदि करता है
प्रेम कर... प्रेम कर .....हर इन्सान को
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
अभिनव गुजरात गौरव समिति सूरत द्वारा प्रस्तुत "हमारा गुज़रात" कार्यक्रम की एक रंगारंग झलकी ....
Labels: मीडिया कवरेज़ हमारा गुजरात
दलाल स्ट्रीट से वाल स्ट्रीट तक हँसने का सामान मिला....
मुंबई की दलाल स्ट्रीट हो या न्यू यार्क की वाल स्ट्रीट अपने लिए दोनों
एक जैसी हैं, हॅंसी का कोई सामान इनमें कहीं भी नहीं मिलता। लेकिन
मैंने प्रयास किया कि थोड़ी हॅंसी इनमें से ढूंढ-ढांढ़ के लाई जाए। हालांकि
कैपिटल मार्केट के बारे में मैं ज्य़ादा कुछ जानता नहीं हूं। जब कैपिटल
ही नहीं है तो मार्केट के बारे में जानकर भी क्या झख मार लूंगा? लेकिन
मैंने कुछ ऐसे लोग देखे, जो इन गलियों में आकर दस ही दिनों में
लखपति बन गए। पहले वे सब करोड़पति थे। कल रात दो इन्वेस्टर
आपस में बात कर रहे थे। मैंने चुपके से सुना, पहला बोला -यार,
सेन्सेक्स की अस्थिरता ने तो मुझे परेशान कर दिया है, परेशान क्या
पूरा हैरान कर दिया है। रात-रात भर नींद नहीं आती, अगर आती
भी है तो बुरे-बुरे सपने आते हैं। दूसरा बोला-भइया, अपन तो बिल्कुल
बच्चों की नींद सोते हैं। पहला चौंका-बच्चों की नींद? दूसरा बोला-हां,
बच्चों की नींद सोते हैं, हर दो घंटे में जाग जाते हैं और रोते हैं।
शेयर मार्केट का जुनून आजकल लोगों पर कुछ ऐसा चढ़ा है कि उतरने
का नाम नहीं लेता। और तो और ... सुबह उठते ही पत्नी भी पति से यही
पूछती है -क्या कहता है... आज ऊपर चढ़ेगा या नीचे रहेगा?
मैंने एक ऐसा आदमी देखा, जिसने ज़िन्दगी में कभी अपने दान्त साफ़
नहीं किए, लेकिन उसके पास कॉलगेट के बीस हज़ार शेयर हैं। मैं बड़ा
प्रभावित हुआ। दोस्तों ने बताया कि फलां कम्पनी के शेयर बहुत अच्छे
हैं, तू भी खरीद ले, तो मैंने भी खरीद लिए। अब पहली - पहली बार
कुछ शेयर खरीदे, न मुझे पता ये क्या गोरखधन्धा है, न ही मेरी पत्नी को।
लेकिन खरीद लिए तो यों लगा जैसे आज मैं भी बिरलाजी की तरह
पूंजीपति हो गया हूं, निवेशक हो गया हूं इसलिए डा. मनमोहनसिंह के
साथ उठने-बैठने लायक हो गया हूं। मैंने अपने कॉलर टाइट किए और
बड़ी-बड़ी बातें करने लगा। जैसे भारत सरकार की आर्थिक नीति में क्या
खोट है, अम्बानी की कौनसी कम्पनी में सम्भावनायें हैं और चिदम्बरम
द्वारा प्रस्तुत आम बजट में क्या-क्या प्रावधान होने चाहिए थे
वगैरह वगैरह...
लेकिन सौभाग्य से अथवा दुर्भाग्य से मेरी पत्नी गांव की है। वो ये सब
नहीं समझती है। इसलिए मैं जब शेयर होल्डर बन कर घर गया तो
बड़ा मज़ा आयाः-
मैंने अपनी पत्नी से कहा-
गुड्डू की मां,
पांच सौ शेयर खरीद लिए
वो बोली -
बान्धोगे कहां?
घर में तो ले मत आना,
रसोई में ही आ गए तो?
तुम्हें छोड़ दिया और मुझे खा गए तो?
मैंने कहा -
प्यारी, शेयर तो काग़ज़ का एक टुकड़ा है
वो बोली - इसी बात का तो दुखड़ा है
कि जिस देश के
ऐतिहासिक किस्से
इतनी भव्य सजधज के हैं
उस देश में
अब शेर भी काग़ज़ के हैं
Labels: हास्य कविता मज़ाहिया funny poem