देखोजी , अपना किसी भी राजनैतिक दल से कोई भी जायज़ या
नाजायज़ सम्बन्ध नहीं है। अपन न तो ये वाले हैं, न वो वाले हैं
और न ही बीच वाले हैं, अपन तो सिर्फ़ एक भ्रम पाले हुए हैं कि
हम हैं । हैं कुछ भी नहीं ........कुछ भी अगर होते तो क्या सिर्फ़
रोना ही रोते रहते ....हल न ढूंढ लेते समस्या का ?
खैर .......अनेक पाठकों को लगता होगा कि मैं देश के नेताओं का
मज़ाक उड़ाता हूँ .........मैं उनसे आज विनम्र निवेदन करता हूँ कि
हाँ भाई ! उड़ाता हूँ । ये जानते हुए भी उड़ाता हूँ कि देश के नेताओं
का उपहास करना कोई अच्छी बात नहीं है...........लेकिन मित्रो !
जो लोग अपनी हरकतों से हमारे पूरे देश का मज़ाक उड़ा रहे हैं
सच पूछो तो उनका मज़ाक उड़ाना भी देश भक्ति है ....हम
उनका और कुछ नहीं बिगाड़ सकते, लेकिन मज़ाक तो कर ही
सकते हैं ..........जो हमारे देश का मज़ाक उड़ाए उसका मज़ाक
ही उड़ाओ, दिल को कुछ तो सुकून मिलेगा ..यही सोच कर मेरे
आलेख बाँचियेगा ..और सिर्फ़ आनन्द लीजियेगा, तनाव नहीं....
________________________अलबेला खत्री
'देव न मारै लाकड़ी
देव कुमति देय'
यह एक राजस्थानी सूक्ति है जो मेरे पूज्य पिताश्री अक्सर सुनाया करते थे।
सन 1970 में जब मैं छोटा सा, नन्हा सा, मुन्ना सा बच्चा था तब बताया
करते थे कि देवता किसी व्यक्ति को दण्ड देने के लिए लकड़ी, डण्डे या लाठी
से नहीं पीटते, बल्कि उसे कुमति दे देते हैं, बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं जिससे वह
व्यक्ति उलटे-पुलटे काम करने लगता है और स्वयं ही जूते-वूते खा लेता है,
यानी मार खाने में आत्म निर्भर हो जाता है किसी का मोहताज़ नहीं रहता,
चलते-चलते स्वयं ही मुंह के बल गिरता है और चोट खाता है। इसी गोत्र की
एक सूक्ति संस्कृत में भी है :
विनाश काले विपरीत बुद्धि।
इसीलिए जब हम ईश्वर के आगे नतमस्तक होते हैं और मंगते की तरह कुछ
मांगते हैं तो केवल सद्बुद्धि मांगते हैं ताकि बिला वजह जूते न पड़ें लेकिन
सत्ता के मद में चूर लोगों की बुद्धि भ्रष्ट होते देर नहीं लगती। इसका प्रमाण
हमें इस बार लोकसभा चुनाव परिणामों में भी मिल रहा है। कल तक जो
लोग भारतीय राजनीति का केन्द्र बिन्दू बने हुए थे, वे आज हाशिये पर आ
गये हैं और सिर्फ़ इसलिए आ गए हैं क्योंकि उन्होंने निर्णय गलत लिया था।
रामविलास पासवान व लालू यादव जैसे लोग अब अपने अपने सिर पे हाथ
रखके रो रहे हैं कि हमने गलत निर्णय किया। कांग्रेस के साथ मिलकर
चुनाव नहीं लड़ने का जो दण्ड इन्हें मिला है वह सबके सामने है। कल तक
इन्हें घमण्ड था कि इनके बिना कोई सरकार बन नहीं सकती और आज ये
लोग भिखारी की भान्ति सोनिया देवी के दरबार में नाक रगड़-रगड़ कर
बिना शर्त अपना समर्थन देने को गिड़गिड़ा रहे हैं। यही हालत मुलायम
सिंह एंड पार्टी की है। इन्होंने यूपी में इन्का के साथ सम्मानजनक सौदा
नहीं किया और घाटे में रहे। आज वे भी इसी कतार में खड़े हैं कि किसी
तरह सोनियाजी व राहुल बाबा को दया आ जाए और वे उन्हें भी साथ ले ले।
सबसे ज्य़ादा दुर्गति हुई लाल झण्डे वालों की जिनको सपने में भी यह
सन्देह नहीं था कि ऐसा हो जाएगा। वे तो हमेशा हवा में ही उड़ते रहे और
सरकार के साथ रहकर भी लगातार कुचरणी करते रहे तथा अपनी ढाई
चावल की अलग खिचड़ी पकाने के चक्कर में रहे। अब ये ऐसे गिरे हैं कि
कई सालों तक हाथ लगा लगा कर देखते रहेंगे अपने घावों को। ये सब
कुमति का ही परिणाम है। और कुमति केवल इन्हीं लोगों को नहीं आई,
भाजपाइयों को भी आई थी। बुद्धि नरेन्द्र मोदी की भी भ्रष्ट हो गई थी
इसीलिए उन्होंने कांग्रेस आई को कभी बुढिय़ा तो कभी गुडि़या कह कर न
केवल अपना मज़ाक उड़ाया बल्कि जहां जहां चुनाव प्रचार करने गए, वहां
के प्रत्याशियों का भी भठ्ठा बैठा दिया। यानी हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें
भी ले डूबेंगे। नरेन्द्र मोदी की सदबुद्धि सलामत होती तो सबसे पहले वे
अपना घर यानी गुजरात में भाजपा की स्थिति मजबूत करते जहां 26 में
केवल 15 सीटें ही भाजपा को मिलीं, बाकी पर इन्का ने कब्जा जमा लिया।
देश भर में घूम-घूम कर उन्होंने अपनी पार्टी के लिए जितनी सीटों का
फ़ायदा नहीं कराया, उतना नुकसान अकेले गुजरात में हो गया।
इसीलिए मैं तो भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि हे दाता, हमारे
राजनीतिकों को देशभक्ति दे या न दे, ईमानदारी दे या न दे, त्याग व
बलिदान की भावना दे या न दे, लेकिन सदबुद्धि ज़रूर दे। ताकि इनकी
वाणी पर संयम बना रहे और तीव्रता से सभ्य हो रहा हमारा समाज ऐसी
कुत्सित राजनीतिक टिप्पणियों, अभद्र भाषणों और वैमनस्य की
भावनाओं से ऊपर उठ कर ठीक-ठाक वातावरण में सांस ले सके।
नाजायज़ सम्बन्ध नहीं है। अपन न तो ये वाले हैं, न वो वाले हैं
और न ही बीच वाले हैं, अपन तो सिर्फ़ एक भ्रम पाले हुए हैं कि
हम हैं । हैं कुछ भी नहीं ........कुछ भी अगर होते तो क्या सिर्फ़
रोना ही रोते रहते ....हल न ढूंढ लेते समस्या का ?
खैर .......अनेक पाठकों को लगता होगा कि मैं देश के नेताओं का
मज़ाक उड़ाता हूँ .........मैं उनसे आज विनम्र निवेदन करता हूँ कि
हाँ भाई ! उड़ाता हूँ । ये जानते हुए भी उड़ाता हूँ कि देश के नेताओं
का उपहास करना कोई अच्छी बात नहीं है...........लेकिन मित्रो !
जो लोग अपनी हरकतों से हमारे पूरे देश का मज़ाक उड़ा रहे हैं
सच पूछो तो उनका मज़ाक उड़ाना भी देश भक्ति है ....हम
उनका और कुछ नहीं बिगाड़ सकते, लेकिन मज़ाक तो कर ही
सकते हैं ..........जो हमारे देश का मज़ाक उड़ाए उसका मज़ाक
ही उड़ाओ, दिल को कुछ तो सुकून मिलेगा ..यही सोच कर मेरे
आलेख बाँचियेगा ..और सिर्फ़ आनन्द लीजियेगा, तनाव नहीं....
________________________अलबेला खत्री
'देव न मारै लाकड़ी
देव कुमति देय'
यह एक राजस्थानी सूक्ति है जो मेरे पूज्य पिताश्री अक्सर सुनाया करते थे।
सन 1970 में जब मैं छोटा सा, नन्हा सा, मुन्ना सा बच्चा था तब बताया
करते थे कि देवता किसी व्यक्ति को दण्ड देने के लिए लकड़ी, डण्डे या लाठी
से नहीं पीटते, बल्कि उसे कुमति दे देते हैं, बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं जिससे वह
व्यक्ति उलटे-पुलटे काम करने लगता है और स्वयं ही जूते-वूते खा लेता है,
यानी मार खाने में आत्म निर्भर हो जाता है किसी का मोहताज़ नहीं रहता,
चलते-चलते स्वयं ही मुंह के बल गिरता है और चोट खाता है। इसी गोत्र की
एक सूक्ति संस्कृत में भी है :
विनाश काले विपरीत बुद्धि।
इसीलिए जब हम ईश्वर के आगे नतमस्तक होते हैं और मंगते की तरह कुछ
मांगते हैं तो केवल सद्बुद्धि मांगते हैं ताकि बिला वजह जूते न पड़ें लेकिन
सत्ता के मद में चूर लोगों की बुद्धि भ्रष्ट होते देर नहीं लगती। इसका प्रमाण
हमें इस बार लोकसभा चुनाव परिणामों में भी मिल रहा है। कल तक जो
लोग भारतीय राजनीति का केन्द्र बिन्दू बने हुए थे, वे आज हाशिये पर आ
गये हैं और सिर्फ़ इसलिए आ गए हैं क्योंकि उन्होंने निर्णय गलत लिया था।
रामविलास पासवान व लालू यादव जैसे लोग अब अपने अपने सिर पे हाथ
रखके रो रहे हैं कि हमने गलत निर्णय किया। कांग्रेस के साथ मिलकर
चुनाव नहीं लड़ने का जो दण्ड इन्हें मिला है वह सबके सामने है। कल तक
इन्हें घमण्ड था कि इनके बिना कोई सरकार बन नहीं सकती और आज ये
लोग भिखारी की भान्ति सोनिया देवी के दरबार में नाक रगड़-रगड़ कर
बिना शर्त अपना समर्थन देने को गिड़गिड़ा रहे हैं। यही हालत मुलायम
सिंह एंड पार्टी की है। इन्होंने यूपी में इन्का के साथ सम्मानजनक सौदा
नहीं किया और घाटे में रहे। आज वे भी इसी कतार में खड़े हैं कि किसी
तरह सोनियाजी व राहुल बाबा को दया आ जाए और वे उन्हें भी साथ ले ले।
सबसे ज्य़ादा दुर्गति हुई लाल झण्डे वालों की जिनको सपने में भी यह
सन्देह नहीं था कि ऐसा हो जाएगा। वे तो हमेशा हवा में ही उड़ते रहे और
सरकार के साथ रहकर भी लगातार कुचरणी करते रहे तथा अपनी ढाई
चावल की अलग खिचड़ी पकाने के चक्कर में रहे। अब ये ऐसे गिरे हैं कि
कई सालों तक हाथ लगा लगा कर देखते रहेंगे अपने घावों को। ये सब
कुमति का ही परिणाम है। और कुमति केवल इन्हीं लोगों को नहीं आई,
भाजपाइयों को भी आई थी। बुद्धि नरेन्द्र मोदी की भी भ्रष्ट हो गई थी
इसीलिए उन्होंने कांग्रेस आई को कभी बुढिय़ा तो कभी गुडि़या कह कर न
केवल अपना मज़ाक उड़ाया बल्कि जहां जहां चुनाव प्रचार करने गए, वहां
के प्रत्याशियों का भी भठ्ठा बैठा दिया। यानी हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें
भी ले डूबेंगे। नरेन्द्र मोदी की सदबुद्धि सलामत होती तो सबसे पहले वे
अपना घर यानी गुजरात में भाजपा की स्थिति मजबूत करते जहां 26 में
केवल 15 सीटें ही भाजपा को मिलीं, बाकी पर इन्का ने कब्जा जमा लिया।
देश भर में घूम-घूम कर उन्होंने अपनी पार्टी के लिए जितनी सीटों का
फ़ायदा नहीं कराया, उतना नुकसान अकेले गुजरात में हो गया।
इसीलिए मैं तो भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि हे दाता, हमारे
राजनीतिकों को देशभक्ति दे या न दे, ईमानदारी दे या न दे, त्याग व
बलिदान की भावना दे या न दे, लेकिन सदबुद्धि ज़रूर दे। ताकि इनकी
वाणी पर संयम बना रहे और तीव्रता से सभ्य हो रहा हमारा समाज ऐसी
कुत्सित राजनीतिक टिप्पणियों, अभद्र भाषणों और वैमनस्य की
भावनाओं से ऊपर उठ कर ठीक-ठाक वातावरण में सांस ले सके।
5 comments:
भा.ज.पा. के कुएँ में भाँग घुली है तो मोदी पर तो नशा चढ़ेगा ही।
अलबेला जी मै आपके कथन से बिल्कुल सहमत हूं कि भगवान दडं देने के लिए किसी को मारते नही उसे कुमति दे दते है, और यही हाल हमारे यहां के नेताओ की है, सत्ता मे आने के बाद इनकी भी बुद्धी भ्रष्ट हो जाती है, तब इन्हे अपना भाई भी दुश्मन नजर आता है, देश की तो बात ना करें।
मोदी जी मैनपुरी भी आए थे ..... बेचारी भजन गायिका तृप्ति शाक्य ............ जमानत भी न बचा पाई | सामने मुलायम चाचा जो थे | सीटे एसे जीती जाती है क्या ???? कोई टक्कर ही नहीं थी....... BJP को जीतने की कोशिशे बहुत की थी हम लोगो ने पर .................... हुआ कुछ भी नहीं !!!!!!!!
कोई भी हो अतंतः वह है तो इनसान ही
आपने सही फरमाया कि जब विनाश का वक्त आता है तो बुद्धि सबसे पहले साथ छोड़ देती है
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