देशद्रोही बाज़ी जीतते हैं
और देशप्रेमी
बार-बार खा रहे शिक़स्त मेरे देश में
कुछ हैं अकाल, बाढ़-ग्रस्त मेरे देश में
सूरज स्वतन्त्रता का अस्त मेरे देश में
देशद्रोही बाज़ी जीतते हैं
और देशप्रेमी
बार-बार खा रहे शिक़स्त मेरे देश में
कुछ हैं अकाल, बाढ़-ग्रस्त मेरे देश में
सूरज स्वतन्त्रता का अस्त मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
Copyright 2009 - Albelakhatri.com
6 comments:
फिर भी जय हो भारत देश ....सुंदर कविता...
बस यही उम्मीद कर सकते है को धीरे धीरे हम इन सब समस्याओं से मुक्त होंगे,क्योंकि आज़ादी की माँग बहुत है..और हमारे पास बस आज़ादी नाम का एक शब्द भर है.
बढ़िया कविता...बधाई..
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
----
INDIAN DEITIES
देशद्रोही बाज़ी जीतते हैं
और देशप्रेमी
बार-बार खा रहे शिक़स्त
जनता बेचारी है पस्त
और अलबेला गाए मस्त-मस्त:)
देशद्रोही बाज़ी जीतते हैं
और देशप्रेमी
बार-बार खा रहे शिक़स्त
जनता बेचारी है पस्त
bahi wah kya bat hai.
आजादी के 62 साल मुबारक...
Post a Comment