प्रिय बन्धु प्रवीण जाखड़जी,
आपका जवाब अच्छा लगा...................
आपका अनुभव पत्रकारिता में अच्छा है ये तो ख़ुशी की बात है, क्योंकि
व्यक्ति जिस काम को अपना समय देता है वह उसे अच्छा न लगे तो ज़्यादा
दिन नहीं कर पायेगा ........ अच्छा लगेगा तो ही वह पूर्ण समर्पण व श्रम के
साथ उसे आनन्द के संग कर पाता है ।
मैंने लगभग 9 वर्ष तक इसका मज़ा लिया लेकिन मेरा रुझान पत्रकारिता
से ज़्यादा कविता में था इसलिए मैंने अपना कार्यक्षेत्र बदल लिया । ये कोई
विशेष बात नहीं है । हाँ, खोजी पत्रकार भी मैंने दो तरह के बताये थे , ये
भी कोई ग़लत तो नहीं कहा मेरे मित्र ! दो तरह के लोग हर क्षेत्र में होते हैं ।
मुझे आपसे कोई वैयक्तिक भड़ास नहीं है, होने का कोई कारण भी नहीं है,
बस....ज़रा सी बात मुझे आपकी इसलिए चुभ गई कि बिना पढ़े टिप्पणी
करने के अपराध में आपने एक उदार किस्म के ब्लोगर को कुछ ज़्यादा ही
झाड़ दिया था.......जबकि आप को ये जान कर हैरानी होगी कि रोज़ाना
कम से कम पचास ऐसे लोगों ( इन में कवि, लेखक, समीक्षक, चित्रकार,
पत्रकार और अन्य कलाकार शामिल हैं ) को बाकायदा मंच पर
सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाता है, जिनके बारे में सम्मानकर्ता
ये भी नहीं जानते कि वे सम्मान क्यों कर रहे हैं, उसका क्या योगदान है ।
और तो और रोज़ाना बीस से ज़्यादा बड़े लेखक व कवि किसी न किसी
किताब की भूमिका लिखते हैं लेकिन बिना पढ़े.... मैंने देखा है कि कैसे
गोलमोल भाषा में सुन्दर शब्दावली के ज़रिये उस किताब के लेखक की
पीठ ठोकी जाती है,,,,,,,,,यह कह कर कि बाकी अपने हिसाब से संशोधन
कर लेना । यह सब सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए होता है क्योंकि हर वरिष्ठ
अपने कनिष्ठ को उत्साहित करता है.... उसकी उपेक्षा नहीं करता.......
किसी नए बलोगर का स्वागत यदि शाबासी से , प्रशंसा से और शुभ-
कामना से दिया जाता है तो उसमे हर्ज़ ही क्या है ? फ़िर अभिव्यक्ति की
स्वतन्त्रता तो है न भाई ! उसे आप क्यों चुनौती देते हो ? जिसको जो
लिखना हो लिखे, आप वो लिखो जो आपको पसन्द हो.....
मैं मेरा ही उदाहरण देता हूँ ......... कभी-कभी अच्छी रचनाएँ भी लिख
लेता हूँ और ब्लॉग पर डाल देता हूँ , लेकिन जब देखता हूँ कि अपनी
दूकान पे ग्राहक कम आए हैं तो एक दो टुच्ची बातें भी डाल देता हूँ
और उसका परिणाम ये आता है कि लोग आते हैं तो टुच्ची के साथ-
साथ अच्छी बात भी बांचते हैं और सराहते हैं .........अच्छी बात पे
टिप्पणी देते हैं और टुच्ची बात पे पसन्द का चटका लगाते हैं क्योंकि
उसपे टिप्पणी देते हुए उन्हें संकोच होता है ..लेकिन मज़ा पूरा लेते हैं ।
प्रवीण भाई,
इस मामले में राज कपूर एक आदर्श हैं..............उनका गणित बिल्कुल
सही था... भीड़ जुटाने के लिए वे नायिका को निर्वस्त्र करते थे...
लेकिन फ़िल्म कभी घटिया नहीं बनाई। लोग जाते हैं "राम तेरी गंगा
मैली" में मन्दाकिनी के स्तन देखने..... लेकिन जब घर लौटते हैं तो
उनके दिमाग में मन्दाकिनी नहीं, गंगा के रूप में देश की विसंगतियों
से लड़ने और जूझने की ऊर्जा होती है............
हम बहोत थोड़े से लोग हैं मेरे भाई,
अगर एक दूसरे को एन्जॉय करेंगे तो ये यात्रा मज़े से कटेगी और
अगर आपस में ही बहस करते रहे, तो असली मुद्दे पीछे छूट जायेंगे ।
खैर ....मैं ज़रा मस्त मौला और मौजी किस्म का प्राणी हूँ ,,,,दिमाग पे
ज़्यादा ज़ोर तो नहीं डालता लेकिन क्या करूँ ? मैंने भी गंगानगर का
पानी पिया है इसलिए ज़रा लिख दिया था....आपको मेरे शब्दों से यदि
ज़रा भी तकलीफ़ हुई हो तो बड़ा भाई समझ कर बर्दाश्त कर लेना,
नहीं कर सको तो मैं क्षमा माँगता हूँ क्षमा कर देना और आगे के लिए
अपन ध्यान रख लेंगे कि "उड़ता हुआ तीर पकड़ कर अपने कान में
नहीं डालना ....." बात ख़त्म ।
ये मैं लिख तो रहा था टिप्पणी के लिए लेकिन इतनी बड़ी टिप्पणी पढेगा
कौन ? इसलिए अब मैं इसे पोस्ट ही कर देता हूँ .....इस पोस्ट पर अपनी
टिप्पणी ज़रूर देना......अरे दे देना यार ! टिप्पणी ही मांग रहा हूँ, कोई
तुम्हारा वोट थोड़े न मांग रहा हूँ ..............हा हा हा हा हा हा हा
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
6 comments:
बहुत ही बढिया अलबेला जी...विवादों में कुछ नहीं धरा है..
आपका ये वाला वाक्य पढकर बहुत मज़ा आया कि ...
"उड़ता हुआ तीर पकड़ कर अपने कान में
नहीं डालना ....." ...
प्रणाम गुरूवर
बहुत सुंदर लिखा .. मैने तो पहले सोंच लिया था मानो मैने कोई बडी गल्ती कर दी हो .. पर आप सबों का साथ देना अच्छा लगा .. बहुत बहुत आभार !!
पुराना किस्सा देखना पड़ेगा..
आज ही दस दिनों की टेक्सस यात्रा से लौटा. अब सक्रिय होने का प्रयास है.
नियमित लिखें..
सादर शुभकामनाऐं.
बहुत बढ़िया ! विवादों में उर्जा खर्च करने का क्या फायदा ! प्रवीण जी भी समझदार है शायद इस विवाद को वे भी यहीं ख़त्म समझेंगे !
मैं आपकी दिलचस्पी और विषयों के प्रति लगाव की दाद देता हूं खत्री जी। यही कारण है कि नौ साल पत्रकारिता में रहने के बाद आप कवि बन गए। हिम्मत वाला काम होता है। वैसे आपने सबसे दिलचस्प बात कही है कि आपने गंगानगर का पानी पीया है। थोड़ा सा नीचे उतर आइए। मैंने झुंझुनंंू का पानी पीया है। दोनों का पानी बोलता है खत्री साहब। इस इलाके में ही ओज है, चुप कैसे रहता।
राज कपूर को मैं बेहद पसंद करता रहा हंू, बचपन से। आपका उदाहरण बिलकुल सटीक है। लेकिन आप बड़े भाई हैं इस लिए क्षमा नहीं स्नेह रखिए इस छोटे भाई के साथ। आपको दिलचस्प लगेगा लेकिन पिछले चार-छह दिन में जो भी बवाल बना, बखेड़ा बना इसमें जो भी चर्चाएं हुई मुझे कहीं कोई बात ने तकलीफ नहीं दी। क्योंकि मैं चाहता था कि सही मुद्दों पर चर्चा हो। जितनी चर्चाएं होंगी, मुद्दे उतने ही परिपक्व होते चले जाएंगे। जिसका फायदा सभी ब्लॉगर्स को होगा।
आपने बिलकुल सही कहा कि इन चर्चाओं में मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। हां, मैं बताना भूल गया था कि कल रात मैंने एक और मुद्दा उठाया था, शायद व्यस्तताओं के बीच आप देख नहीं पाए। बेनामे ब्लॉगर्स अपनी ऊल-जलूल टिप्पणियों से ब्लॉगिंग में अच्छा काम कर रहे लोगों को बेवहज परेशान करते हैं। खुद पहचान छिपाते हैं और बेहतर कर रहे लोगों को फेक आइडेंटिटी से लपेटने की कोशिश करते हैं। उसे पढि़एगा जरूर और टिप्पणी वहां आपका इंजतार कर रही है।
आपने टिप्पणी मांगी, खत्री साहब आप हमारे इलाके के हैं, 'जान दे देतेÓ आपके लिए। अच्छा लगा आपने इस जवाब को इतना खूबसूरत तरीके से पिरोया। कोई पढ़े ना पढ़े मैंने पूरे इत्मिनान से पढ़ा है। शुक्रिया। कल वाला मुद्दा आपकी टिप्पणी का इंतजार कर रहा है मेरे ब्लॉग पर....। शेष मंगल, अपने छोटे भाई लायक सेवा हो जरूर बताइएगा।
राम राम सा!
बिलकुल सही बात
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