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Albela Khatri

दलाल स्ट्रीट से वाल स्ट्रीट तक हँसने का सामान मिला....


मुंबई की दलाल स्ट्रीट हो या न्यू यार्क की वाल स्ट्रीट अपने लिए दोनों

एक जैसी हैं, हॅंसी का कोई सामान इनमें कहीं भी नहीं मिलता। लेकिन

मैंने प्रयास किया कि थोड़ी हॅंसी इनमें से ढूंढ-ढांढ़ के लाई जाए। हालांकि

कैपिटल मार्केट के बारे में मैं ज्य़ादा कुछ जानता नहीं हूं। जब कैपिटल

ही नहीं है तो मार्केट के बारे में जानकर भी क्या झख मार लूंगा? लेकिन

मैंने कुछ ऐसे लोग देखे, जो इन गलियों में आकर दस ही दिनों में

लखपति बन गए। पहले वे सब करोड़पति थे। कल रात दो इन्वेस्टर

आपस में बात कर रहे थे। मैंने चुपके से सुना, पहला बोला -यार,

सेन्सेक्स की अस्थिरता ने तो मुझे परेशान कर दिया है, परेशान क्या

पूरा हैरान कर दिया है। रात-रात भर नींद नहीं आती, अगर आती

भी है तो बुरे-बुरे सपने आते हैं। दूसरा बोला-भइया, अपन तो बिल्कुल

बच्चों की नींद सोते हैं। पहला चौंका-बच्चों की नींद? दूसरा बोला-हां,

बच्चों की नींद सोते हैं, हर दो घंटे में जाग जाते हैं और रोते हैं।


शेयर मार्केट का जुनून आजकल लोगों पर कुछ ऐसा चढ़ा है कि उतरने

का नाम नहीं लेता। और तो और ... सुबह उठते ही पत्नी भी पति से यही

पूछती है -क्या कहता है... आज ऊपर चढ़ेगा या नीचे रहेगा?


मैंने एक ऐसा आदमी देखा, जिसने ज़िन्दगी में कभी अपने दान्त साफ़

नहीं किए, लेकिन उसके पास कॉलगेट के बीस हज़ार शेयर हैं। मैं बड़ा

प्रभावित हुआ। दोस्तों ने बताया कि फलां कम्पनी के शेयर बहुत अच्छे

हैं, तू भी खरीद ले, तो मैंने भी खरीद लिए। अब पहली - पहली बार

कुछ शेयर खरीदे, मुझे पता ये क्या गोरखधन्धा है, ही मेरी पत्नी को।

लेकिन खरीद लिए तो यों लगा जैसे आज मैं भी बिरलाजी की तरह

पूंजीपति हो गया हूं, निवेशक हो गया हूं इसलिए डा. मनमोहनसिंह के

साथ उठने-बैठने लायक हो गया हूं। मैंने अपने कॉलर टाइट किए और

बड़ी-बड़ी बातें करने लगा। जैसे भारत सरकार की आर्थिक नीति में क्या

खोट है, अम्बानी की कौनसी कम्पनी में सम्भावनायें हैं और चिदम्बरम

द्वारा प्रस्तुत आम बजट में क्या-क्या प्रावधान होने चाहिए थे

वगैरह वगैरह...


लेकिन सौभाग्य से अथवा दुर्भाग्य से मेरी पत्नी गांव की है। वो ये सब

नहीं समझती है। इसलिए मैं जब शेयर होल्डर बन कर घर गया तो

बड़ा मज़ा आयाः-



मैंने अपनी पत्नी से कहा-

गुड्डू की मां,

पांच सौ शेयर खरीद लिए

वो बोली -

बान्धोगे कहां?

घर में तो ले मत आना,

रसोई में ही गए तो?

तुम्हें छोड़ दिया और मुझे खा गए तो?

मैंने कहा -

प्यारी, शेयर तो काग़ज़ का एक टुकड़ा है

वो बोली - इसी बात का तो दुखड़ा है

कि जिस देश के

ऐतिहासिक किस्से

इतनी भव्य सजधज के हैं

उस देश में

अब शेर भी काग़ज़ के हैं

9 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' August 26, 2009 at 8:32 AM  

चलो कुछ तो मिला।
रचना बहुत अच्छी मिली।
बधाई!

ताऊ रामपुरिया August 26, 2009 at 9:00 AM  

भाई अब शेयर कागजी भी नही रहे मायावी हो गये हैं.:)

रामराम.

शिवम् मिश्रा August 26, 2009 at 11:46 AM  

"शेयर मार्केट का जुनून आजकल लोगों पर कुछ ऐसा चढ़ा है कि उतरने

का नाम नहीं लेता। और तो और ... सुबह उठते ही पत्नी भी पति से यही

पूछती है -क्या कहता है... आज ऊपर चढ़ेगा या नीचे रहेगा?"

गुरु , डबल meaning ????

निर्मला कपिला August 26, 2009 at 3:31 PM  

ये जनून तो आज कल हमारे पतिदेव पर बहुत असर कर गया है अच्छा है इसी बहाने हमे कम्प्यूटर् पर बैठने का समय मिल जाता है अपने ब्लोग पर आपके शेर बहुत अच्छी लगे आभार कविता के लिये बधाइ

अर्चना तिवारी August 26, 2009 at 3:32 PM  

वाह जी !बहुत खूब... kya baat ahi... superb

ओम आर्य August 26, 2009 at 3:34 PM  

बहुत ही सुन्दर बात बताई है गुड्डू के बाबु जी..........

ओम आर्य August 26, 2009 at 3:36 PM  

हा हा हा हा हा हा हा

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद August 26, 2009 at 4:07 PM  

छोडो सेंसेक्स की बातें, कुछ सेक्स की करो, कुछ सक्सेस की:)

राजीव तनेजा August 27, 2009 at 11:14 PM  

क्या अलबेला जी?...आप भी कमाल करते हैँ..इतनी मज़ेदार पोस्ट ...इतनी छोटी क्यूँ लिखी?...

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