आंगन की
तुलसी के
मुलायम-मुलायम पातों पर
शयनित
शीतल-सौम्य ओस कणिकाओं को
सड़क किनारे
गलीज़ गड्ढे में सड़ रही
कळकळे कादे की
कसैली और कुरंगी जल-बून्दों पर
व्यंग्यात्मक हँसी हँसते देख
जब मेघ का
वाष्पोत्सर्जित मन भर आया
तो सखा सूरज ने उसे समझाया
भाया,
धीरज रख,
बिफर मत
क्योंकि इन ओस कणिकाओं को
अभी भान नहीं है
इस सचाई का ज्ञान नहीं है
कि कादा स्वभाव से कादा नहीं था
और कादा होने का
उसका इरादा नहीं था
प्रारब्ध की ब्रह्मलिपि
यदि कादे में छिपा जल
पढ़ गया होता
तो वह भी
किसी तुलसी के पातों पर
चढ़ गया होता
ख़ैर..
इस दृश्य को भी बदलना है,
सृष्टि का चक्र अभी चलना है
मेरी लावा सी लपलपाती कलाओं से
झरती आग
शोष लेगी शीघ्र ही -
तुलसी को भी,
कादे को भी
चूंकि दोनों में से
किसी के पास नहीं है अमरपट्टा
इसलिए
दोनों को ही
त्याजनी होगी धरती
और मेरे ताप के परों पर बैठ कर
जब दोनों ही
निर्वसन होकर पहुंचेंगे तेरे पास
तो तू स्वयं देख लेना-
कोई फ़र्क नहीं होगा दोनों में
बल्कि
तू पहचान भी न पाएगा
कौन ओस ?
कौन कादा ?
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
4 comments:
गूढ रहस्यों को अपने में समेटे हुए सुन्दर रचना
जब दोनों ही
निर्वसन होकर पहुंचेंगे तेरे पास
तो तू स्वयं देख लेना-
कोई फ़र्क नहीं होगा दोनों में
बल्कि
तू पहचान भी न पाएगा
कौन ओस ?
कौन कादा ?
बहुत खूब , ज़िन्दगी की सच्ची तस्वीर खीची है |
बधाई |
सब आपका ही आर्शीवाद है |
वाह! दार्शनिक अभिव्यक्ति !! साधू!!!
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