अपनी अपनी माँ से कहता
हर व्यक्ति संसार का
मैं आकण्ठ ऋणी हूँ माता !
तेरे अनुपम प्यार का
तुमने मुझको जनम दिया माँ, ये दुनिया दिखलाई
तेरे आँचल में गूंजी मेरे शैशव की शहनाई
तेरी गोद में खेले मेरे बचपन और तरुणाई
तेरी ममता की छाया में मैंने प्रौढ़ता पाई
साँस साँस से मैं कृतज्ञ हूँ
तेरे लाड़ दुलार का
मैं आकण्ठ ऋणी हूँ माता !
तेरे अनुपम प्यार का
बेशक मुझको याद नहीं अब मैंने तुमको कितना सताया
कभी बीमारी, कभी शरारत, रोज़ नया उत्पात रचाया
कितने दिन का चैन हर लिया, कितनी रातें तुम्हें जगाया
फ़िर भी तुम गीले में सोयीं और मुझे सूखे में सुलाया
मैं ना क़र्ज़ चुका पाऊंगा
माँ तेरे उपकार का
मैं आकण्ठ ऋणी हूँ माता !
तेरे अनुपम प्यार का
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
5 comments:
"फ़िर भी तुम गीले में सोयीं और मुझे सूखे में सुलाया " अलबेला भाई इस पंक्ति का निहितार्थ तो माँ हुए बगैर समझना सम्भव ही नहीं है । हमारी वह क्षमता ही कहाँ कि इस मातृ ऋण से उऋण
हर बच्चे की यही पुकार
माँ कर दे मेरी नैय्या पार
बहुत ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाली रचना लिखा है आपने! माँ का प्यार अमूल्य है! कितने तकलीफें उठाकर हमें पाल पोसकर बड़ा करती हैं माँ और उनके लिए जितना भी कहा जाए कम है! माँ और पिताजी दोनों ही भगवान समान है! बहुत पसंद आया आपकी ये रचना!
"माँ"के प्रति आपकी रचना बेहद सुंदर।"माँ" जैसी ही!!!!
माँ तो ऐसी ही होती है.....बहुत सुन्दर रचना. आभार.
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