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Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

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Albela Khatri

हर कोई यहाँ सेंक रहा अपने हिस्से की धूप.......

कहीं कील गड़े हैं कदम-कदम,

कहीं पग-पग है अंगार


कहीं खड़ी है शीतल छाया,

कर सोलहा सिंगार


कहीं जीत के गीत सजे हैं,

कहीं रो रही है हार


सुख और दुःख के धागों से ही

बुना गया संसार


ये जीवन क्या है?

इक ताश की बाज़ी


घर-आँगन क्या है?

इक ताश की बाज़ी


किसी के हाथ में राजा-इक्का,

किसी के हाथ तुरूप


हर कोई यहाँ सेंक रहा

अपने हिस्से की धूप


अपने हिस्से की धूप......अपने हिस्से की धूप

5 comments:

समय चक्र August 28, 2009 at 4:03 PM  

sateek post abhaar.

Gyan Darpan August 28, 2009 at 7:25 PM  

बहुत खूब

प्रिया August 28, 2009 at 8:51 PM  

Sahi kaha aapne "हर कोई यहाँ सेंक रहा

अपने हिस्से की धूप".....insaan ko samajhana sabse jyada mushkil hai

शिवम् मिश्रा August 28, 2009 at 10:36 PM  

अपने हिस्से की धूप


बहुत खूब


बहुत खूब


बहुत खूब


बहुत खूब

राजीव तनेजा August 28, 2009 at 11:53 PM  

सच कहा आपने...हर किसी को किस्मत का मिलता है

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