प्यारे ब्लॉगर बन्धुओ !
दो दिन के लिए मैं अपने परिवार के साथ शहर से दूर, देहात में समुद्र
किनारे एक रमणिक स्थल दमण और अम्भेटी गया था ताकि अपनी
श्रीमती और पुत्र के साथ नितान्त एकान्त का सुख ले सकूँ और माँ
प्रकृति के हरित आँचल में प्रसरे शुद्ध पर्यावरण में कोई सात्विक व
साहित्यिक सृजन कर सकूँ ।
मैं इस में सफल भी रहा किन्तु आंशिक रूप से............
क्योंकि भले ही मैं उस माहौल को भरपूर एन्जॉय कर रहा था ...लेकिन
मन में छटपटाहट भी थी... एक अजीब सी छटपटाहट ! ऐसी छटपटाहट
जो एक आशिक में अपने महबूब के लिए होती है, ऐसी छटपटाहट जो भक्त
में भगवान् के लिए होती है या ऐसी छटपटाहट जो परीक्षा देने के बाद
विद्यार्थी के मन में परिणाम जानने के लिए होती है.......... और ये सारी
छटपटाहट थी आप लोगों के लिए..............अर्थात अपने ब्लॉगर साथियों
के लिए....
मैं हैरान हूँ कि आख़िर क्यों थी इतनी छटपटाहट ?
किसने क्या लिखा होगा, किसने क्या चर्चा की होगी अथवा किसने किस
पोस्ट पर क्या टिप्पणी की होगी इस से क्या फ़र्क पड़ता है ? मेरा कौन सा
जन्म जन्म का नाता है या रिश्तेदारी है ब्लोगिंग से जिसके लिए मन
इतना व्याकुल था और घर में घुसते ही मैंने सच पूछो तो न पानी पिया है
और न ही व्यावसायिक e mail चैक किए हैं बस........खोल कर बैठ गया
हूँ dash bord और बात कर रहा हूँ आपसे..............
यार कुछ भी कहो ...यों लगता है मानो ब्लॉगिंग मेरे जीवन का एक अटूट
अंग बन चुका है और सारे ब्लॉगर मेरा एक विस्तृत परिवार ... जो लोग
निरन्तर सम्पर्क में हैं और मुझे अपनी टिप्पणियों से प्रोत्साहित करते हैं
वे तो प्रिय हैं ही, जो कभी मुझे घास नहीं डालते और पसन्द भी नहीं करते,
उन्हें भी मैं लगातार पढता हूँ और पसन्द करता हूँ ..सच ही कहा था भाई
अजय कुमार झा ने कि हिन्दी ब्लॉगिंग ...रिश्ते कायम करती है...
हालांकि ब्लॉगिंग से न तो मेरा कोई व्यावसायिक लाभ होने वाला है और न
ही 10-15 बधाई की टिप्पणियां कोई बहुत बड़ा प्रोत्साहन दे कर मेरे लेखन
को उर्जस्वित अथवा परिष्कृत कर सकती है ..क्योंकि मुझे आदत पड़ी है
भीड़ की ........ हजारों लोगों की वाह वाही और करतल ध्वनि की तुलना में
ये टिप्पणिया और पाठकों की संख्या बहुत ही कम है ..लेकिन इन दो दिनों
में ऐसा महसूस हुआ मानो ये चन्द टिप्पणियां और ये गिनती के पाठक
अब मेरे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गए हैं क्योंकि ये वो लोग नहीं जो भीड़
में हल्ला करते हैं ...........ये वो लोग हैं जोकि स्वयं बुद्धिजीवी हैं और मुझसे
कहीं बेहतर लेखन और सृजन कर रहे हैं..........इस कारण ये पाठक और
इन पाठकों की प्रतिक्रया बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और सम्मान्य हैं ।
मैं आप सभी को विनम्रतापूर्ण अभिवादन करता हूँ ..लेकिन एक बात जानना
चाहता हूँ की क्या आपको भी कभी ऐसा लगता है....?
क्या आपको भी कभी ऐसी छटपटाहट होती है ब्लॉगिंग से दूर रहने पर ?
क्या आपभी इस मुहब्बत की ज़द में आचुके हैं ? क्या आपका भी मन
छटपटाता है औरों को पढने के लिए और अपने लिखे पर टिप्पणियाँ
पाने के लिए ?
क्या dash bord आपको भी उतना ही खींचता ही जितना कि मुझे ?
आप बताओ तो कुछ पता चले.........
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
-
शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
18 comments:
जी हाँ , इसे ही कहते हैं ब्लॉग्गिंग फोबिया ,अपनी बताएं , पहली बार तो हैरान से हो गए थे कि अरे ये लोग कहाँ से आगये , फिर बहुत अच्छा सा लगने लगा , फिर और काम छोड़ कर इसी की सनक से की वजह से थोड़ी डान्ट-वांट पड़ने लगी , तो समझ में आया कि इसको नियंत्रण में रखना पड़ेगा , हर चीज की अपनी जगह होती है , पतिदेव को भी समझाया कि हर इन्सान की हौबी को थोड़ा वक़्त जरुर मिलना चाहिए , अब उनके घर आने के बाद जहां तक हो सकता है इससे मन को हटाये रखना पड़ता है |
आप भी वक़्त रहते इलाज कर लें , वर्ना मर्ज़ लाइलाज हो जाएगा | दवा को दवा की तरह पियें |पोस्ट पढ़ कर मज़ा भी आया और सलाह दिए बिना भी न रह सकी |
अरे खत्री जी सभी का लगभग आप जैसा ही हाल है कुछ दिन ब्लॉगजगत से दूर रहना ही भारी पड़ जाता है |
bilkul sahi kaha apane sir
esa hota hain blogging hain hi esi cheez kai
rishtey bana deti hain
and mujhe to aur khushi hui jab apane mere blog par comment kara
thanks for this
सच है अलबेला जी एकदम सच है !!!
पहेले घर में घुसते ही घर की females (माँ और बीवी) को चेक किया करता था कि भाई दोनों का मूड ठीक ठाक है कि नहीं ?? खाना क्या मिलेगा ?? बाद में emails चेक करता था |
आज कल आलम यह ही कि सब से पहेले कंप्यूटर ओन कर के dashboard चेक करता हूँ कि किस ने नई पोस्ट डाली और क्या डाली ?? मेरी पोस्ट पर किस किस की निगाह गई और उन्होंने क्या क्या टिप्पणी की ??
लाइफ बदल सी गई है अब तो | अब सोच रहा हूँ अपने विजिटिंग कार्ड पे भी अपने ब्लॉग का जिक्र कर दिया जाए ...
क्या ख्याल है आपका ??
खत्री जी,
ये छटपटाहट है अपनों के साथ बने रहने की।
सभी का एक जैसा हाल है बहुत बदिया पोस्ट । पोस्ट लिखते ही लगता है जैसे पोस्त खा ली है और टिप्पणी का नशा सा सवार होने लगता है हा हा हा
Sabhi ko kheenchta hai bhaai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही भावुक हो रहे आप .......शायद इसे ही कहते है ब्लोगिंग फोबिया कहते है शायद ......मेरे साथ भी यही होता है !
खत्री जी ब्लोगिंग एक लत है जिसे लग गई समझो गया काम से..."अमल दास की अमल तलब को अमली ही पहचाने रे...अमल बिना क्यूँ अमली तडपे ये सूफी क्या जाने रे...." आपने सच ही कहा है...हर ब्लोगर का हाल आप सा ही है..
नीरज
good
बस अब बन गये आप ब्लोग्गर ..हा..हा..हा...अब जाओ कहां जाओगे आप हमसे दूर..अब आप शुरू हो जाओ दना दन...दना दन..
"शोर सड़कों पे है जानलेवा बहुत
अपनी आँखों में हमको सुलाये कोई "
गणेशोत्सव के इन दिनों में आपका यह शेर राहत दे रहा है । घर मे यह सवाल पूछके देखता हूँ ।
पत्नि गुस्से में चार दिन खाना न दे तो कोई बात नहीं।
घर में मेहमान आए हो तो उनके पास दो घडी बैठने की फुरसत नहीं।
लाईट चली जाये, ईन्वर्टर काम न करे तो कोई बात नहीं जनरेटर लगवा लेंगे......लेकिन ये मुई ब्लागिंग की आदत नहीं छूटने वाली:)
अरे आप तो हमारे जैसे ही हैं :-)
वो वाला गीत याद आ गया
हम से बिछड़ कर चैन कहाँ तुम पायोगे …
सच कहा खत्री जी आपने...ब्लॉगिंग का नशा ही ऐसा है कि बीवी भी कहती है कि....
दिन को दिन नहीं...रात को रात नहीं...
ऐ राजीव ज़रा अपने दिल को थाम यहीं
अजी इसे हि तो सचा इश्क कहते है, ओर आप को भी यह इशक हो गया है इस ब्लांगिंग से, अभी भी समय है सम्भल जाओ,
सत्य बचन अलबेला जी....बडी जालिम लत है इ चिठ्ठाकारी, मुई लग गई तो जाती ही नही...
सब की स्थिति एक जैसी है सभी को यही मर्ज है |
Post a Comment