एक जागृत ब्लोगर मनीषाजी ने मेरी किसी पोस्ट पर आज एकमात्र पसन्द देख
कर प्रश्न उठाया कि ये कैसे सम्भव है ? क्योंकि ब्लोग्वानी के उस पेज पर पाठक
तो कोई दिखाया ही नहीं गया..जब पाठक ही नहीं दिखाया गया तो पसन्द किसने
किया ? ये बड़ा गम्भीर और सम्वेदनशील मामला है । सामाजिक दृष्टि से तो ये
अत्यन्त आपराधिक मामला बनता है । इस विषय पर चिन्ता होनी स्वाभाविक है
क्योंकि ये तो सूअर के बिना ही स्वाइन फ्लू फ़ैल गया, मुर्गे के बिना ही बर्ड फ्लू
फ़ैल गया...........कमाल है ! ऐसा कैसे सम्भव है ?
ये तो ऐसा होगया मानो कन्या को अभी कोई वर मिला ही नहीं और वह गर्भवती
हो गई .....भला ये कैसे सम्भव है ? इस सवाल पर अनेक साथी ब्लोगरों ने जवाब
दिए और आगे भी देंगे लेकिन चूँकि बात मेरी है इसलिए मुझे तो जवाब देना ही
चाहिए इसलिए दे रहा हूँ............
सभी पाठक कृपया ध्यान दें :
वो क्या है कि अपनी पोस्ट पर सबसे पहला पसन्द का चटका तो मैं ही
लगाता हूँ और मुझे लगाना भी चाहिए क्योंकि उस पोस्ट का पहला पाठक
मैं ही होता हूँ साथ ही मैं उस पोस्ट को पसन्द भी करता हूँ । क्यों न करूं ? अरे
भाई मैं लिखता ही इतना अच्छा हूँ कि पसन्द आ ही जाता है और ब्लोगवाणी में
मैंने कहीं भी ये नियम नहीं पढा कि लेखक अपनी पोस्ट पर ख़ुद पसन्द का
चटका नहीं लगा सकता.................
भाई दूसरे के भरोसे क्यों रहना कि कोई आएगा और चटका लगायेगा ?
"अपना हाथ-जगन्नाथ"
जो बन्दा अपने हाथ से रसोई बना सकता है वो अपने हाथ से खा नहीं सकता ?
स्वयं की प्रशंसा के मामले में अपन पूर्ण आत्मनिर्भर हैं भाई.................
दूसरी महत्व पूर्ण बात ये है कि ये पसन्द का स्टीकर एक तरह का भिक्षापात्र
है जो कि मैंने भी अनेक मित्रों की देखादेखी अपने ब्लॉग पर टांग रखा है और
भिक्षा शास्त्र में साफ़ साफ़ लिखा है कि भिक्षा और दान की शुरुआत अपने ही
घर से करनी चाहिए..........इसीलिए आमतौर पर अनुभवी भिखारी जब घर
से अपने धन्धे पर निकलता है तो सबसे पहले वह ख़ुद ही उस पात्र में बहुत सी
चिल्लर डाल देता है ताकि लोग प्रेरित हो कर उसका अनुसरण करें........लिहाज़ा
मैंने अगर ऐसा किया है तो शास्त्रोक्त कार्य ही किया है ।
रहिमन वे नर मर चुके, जो कहीं मांगन जाय
उनसे पहले वे मरे, जो हो कर भी नट जाय
मेरे पास सुविधा हो कर भी मैं नट जाऊं पसन्द देने से ...ये तो भाई जीतेजी
मरना हो गया....और मैं ज़िन्दगी से बहुत प्रेम करता हूँ इसलिए अपनी एक
पसन्द भी मैं चिटका देता हूँ...............
"ओशो" की एक पुस्तक ॐ पद्ममणिहुम में एक चुटकुला पढ़ा था वह यहाँ
बिल्कुल फिट हो रहा है .....एक बहुत ही धार्मिक आदमी की शादी हो गई...
सुहागरात को दुल्हन बेचारी सजी संवरी अपने पिया के प्रेम-स्पर्श को आकुल
व्याकुल थी जबकि वो पट्ठा धार्मिकता पर उतर आया था । सुहागरात को कभी
वह इस देवता की आरती करता, कभी उस देवता की स्तुति करता...
करते करते जब सुबह के चार बज चुके तो दुल्हन के सब्र का बाँध टूट गया
वो अपने सुहागजी पर दहाड़ते हुए बोली - अबे ओ पुजारी की औलाद !
खाली आरतियाँ ही करता रहेगा कि दान-पात्र में कुछ डालेगा भी ?
लिहाजा मैं तो भाई अपने दान-पात्र में ख़ुद ही दाल देता हूँ ताकि कोई मुझे
यों डांटे नहीं ..............हा हा हा हा हा हा हा हा
मुझसे एक गलती ज़रूर हुई कि मैंने मनीषा का नाम पहले मनीष
लिख दिया था लेकिन अब सुधार दिया है और मनीषा कर दिया है ।
मनीषाजी,
जितनी आसानी से मैंने आपको मनीष से पुनः मनीषा कर दिया है
उतनी आसानी से अगर ब्रह्मा जी अपनी गलतियां सुधार लें तो मैं
भी अब तक अलबेला से अलबेली हो गई होती .....हा हा हा हा हा
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
13 comments:
Badhiya hai.
{ Treasurer-S, T }
सही है .. मैं भी अपने लेख को सबसे पहले पसंद करती हूं !!
महाराज, अपन भी येही करते है पहेले ख़ुद फ़िर आप से उम्मीद करते है कि आप भी पसंद का चटका लगाये |
वैसे बढ़िया लिखा हमेशा की तरह |
आपके इस भिक्षापात्र में हमने भी भिक्षा डाल दी है जी:)
sahi bat hai , apna hat jagarnath
अलवेला जी आपसे पूर्ण सहमति पर मैं मनीष नहीं मनीषा हूं।
मनीषा
www.hindibaat.com
albela ji sach to ye hai ki aisa mere khayal se lagbhag sabhi karte hai, haan kahte bas aap hai, sach ka samana karane ke liye badhai, waise lekhini bhi bahut sundar hai.
aap to mayadhar hai.....kisi ko nahi bakshte :-)
अपुन भी येईच्च करता है.... सबसे पहले अपनी पोस्ट की पसन्द को चटकाता हूँ और उसके बाद अपने साथियों की....
अपना हाथ जगन्नाथ्।
सत्य वचन। स्पष्टवादिता में आपका जबाब नहीं...
काश ब्रम्हा ने अपनी गलती सुधर ली होती तो आप अलबेला
से अलबेली हो जाते और सबके लिए जलेबी हो जाते।
लेकिन अभी तो आप अलबेले हैं,
दुनिया में नहीं अकेले हैं
हर किसी सवाल पर जवाब ठेले हैं
ये तो जिंदगी के मेले हैं
वाह अपना हाथ जगन्नाथ, हम तो अभी तक वाकई खुद की पोस्ट पर चटका नहीं लगाते थे पर अब हम भी लगाया करेंगे, मनीषा जी को धन्यवाद कि उन्होंने इतनी महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत करवाया और अलबेला जी आपको भी बहुत धन्यवाद जो इस ब्लोगवाणी जादूगरी से परिचित करवाया अब हम भी अपने भिक्षापात्र में अपने आप पहली भिक्षा डाल दिया करेंगे। :)
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