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Albela Khatri

लौजी.........लग गई वाट लौहपुरूषजी की

धत्‌ तेरे की! साली तक़दीर ही फूटेली है। फूटेली क्या फटेली भी है और
इतनी ज़ोर से फटेली है कि इधर सिर मुण्डवाया नहीं कि उधर ओले
खड़े तैयार। वो भी छोटे-मोटे नहीं, बड़े-बड़े.... इतने बड़े कि खोपड़ी का
कचूमर बना दे। माँ क़सम, सैलून से घर तक जाना भारी हो गया। बदनसीबी
इतनी है कि जिस घर में छाछ माँगने जाएं वहां भैंस मर जाती है, सू-सू
करने के लिए दीवार की ओट लेते हैं तो दीवार गिर जाती है, अब क्या
बतायें कि जान हमारी किस कदर जल रही है... अरे बच्चे पैदा हमने
किये और शक्ल उनकी पड़ौसियों से मिल रही है। ये तो कुछ भी नहीं
प्यारे... दुर्भाग्य का बस चले तो वह अक्खे यूनीवर्स के सारे रिकार्ड
तोड़ दे... अगर हम क़फ़न बेचना शुरू कर दें, तो लोग मरना छोड़ दें।


एक तो पहले ही कंगाली थी, ऊपर से आटा गीला हो गया। गांधीजी रहे
नहीं, नेहरूजी रहे नहीं, सरदार पटेल रहे नहीं, इन्दिरा गांधी भी रही
नहीं... यहां तक कि मोरारजी देसाई, चौ. चरण सिंह, बाबू जगजीवन
राम और ताऊ देवीलाल तक निकल लिए हमें हमारे हाल पे छोड़ के।
ले दे के एक ही लौहपुरूष बचे थे श्रीमान लालकृष्णजी अडवाणी,
लेकिन इस चुनाव में उनकी भी वाट लग गई। इनकी भारतीय जनता
पार्टी जहां से चली थी वापस वहीं पहुंच गई। यानी इतने सालों तक
हज़ारों तरह की जो बयानबाज़ियां की, रथ यात्रायें की, लालचौक पर
ध्वज वन्दन किया और फीलगुड का नारा शोधा, गई सबकी भैंस
पानी में.... बैठे रहो अब हाथ पे हाथ रख के। क्योंकि दूसरा मौका
जल्दी मिलने वाला नहीं.. पांच साल बाद अगर मिला भी तो क्या
तीर मार लेंगे आप? क्योंकि लौहा तब तक ज़ंग खा चुका होगा और
आपके सिपहसालार ख़ुद इतने आगे निकल चुके होंगे कि ये आपके
बजाय ख़ुद हीरो बनना चाहेंगे... इसलिए अडवाणीजी, काल करे
सो आज कर, आज करे सो अब... यानी आप स्वीकार कर लीजिए कि
आपके सारे अरमान आंसुओं में बह गए हैं और आप वफ़ा करके भी
तन्हा रह गए हैं यानी कि कुल मिलाकर कांग्रेस ने आपको उस खुड्डा
लाइन पर टिका दिया है जहां से कोई भी गाड़ी आगे नहीं जा सकती।


कितने पूजा पाठ कराये, कितने पंडित बुलाये, शुभ मुहूर्त और
चौघडि़ये दिखाये, घर में रंग-रोगन करवाया,वास्तुशास्त्र के हिसाब से
कार्यालय का स्थापत्य भी ठीक कराया तथा जिम में जाकर डोळे भी
बनाये यानी कोशिश तो आपने पूरी ही की थी। जान के सारे घोड़े
खोल दिये आपने, लेकिन मिला क्या? ठन-ठन गोपाल! अब आपका
बैडलक ही इतना खराब चल रहा है तो नरेन्द्र मोदी भी कहां-कहां
हाथ लगायें... आपकी स्थिति तो ऐसी है कि जहां-जहां पांव पड़े
सन्तन के, तहां-तहां बन्टाधार हुआ। आपने सरकार बनाई तो संसद
पर हमला हो गया, विमान का अपहरण हो गया और अज़हर मसूद
जैसा आतंकवादी छोड़ना पड़ा। आपने मुशर्रफ़ को यहां बुलाया तो वो
आगरे में खा-पी के पिछवाड़े पर हाथ पोंछता हुआ चला गया। स्वयं
पाकिस्तान गए तो आपने जिन्ना की मज़ार पर चढ़ाने वाले फूल खुद
पर चढ़ा लिए, बस चलाईं तो पाकिस्तान से नकली करंसी और असली
दहशतगर्द आने शुरू हो गए। आपके श्रीचरण गुजरात में पड़े तो ये
भी हैरान हो गया। विपदाओं ने सामूहिक आक्रमण कर दिया। कभी
चक्रवात, कभी भूकम्प, कभी माता के मंदिर में भगदड़ तो कभी
मन्दी के मारे रत्न कलाकारों द्वारा आत्महत्या। गांधीनगर के अक्षरधाम
पर अटैक हो गया, गोधरा में ट्रेन जल गईं, सूरत में भयंकर बाढ़ आ
गई और अहमदाबाद व मोडासा में बम ब्लास्ट हो गए। मतलब ये
है कहने का कि आपके लिए शगुन कुछ ठीक नहीं है।


अब आप कुछ दिन पूर्णतः आराम कीजिए और भूल जाइये बाकी
चोंचलेबाज़ी व 'मजबूत नेता-निर्णायक सरकार' का नारा, यही है
निवेदन हमारा। आपको पसन्द आए तो ठीक, नहीं तो हमारा माल पड़ा
है हमारे पास.. किसी और को टिका देंगे। हा हा हा हा.........

10 comments:

रज़िया "राज़" August 23, 2009 at 2:53 PM  

वाह! अलबेला सरकार वाह!एक तीर कंई निशाने!!!!

दर्पण साह August 23, 2009 at 3:06 PM  

ae bhidu mast likhela hai baap !!

शिवम् मिश्रा August 23, 2009 at 3:26 PM  

भाई जी ,
नहा धो कर पीछे पड़ गए आप तो अडवाणी जी के !!
कोनो खास बैर है का ??
नहीं...., मतलब...... है..... तो ठीक है ...
हम को कोनो तकलीफ नाहीं है बस उ का है न कि बुजूर्ग आदमी है
मान लो आप बात सुन कर कभी हार्ट फ़ेल जैसा कुछ हुआ तो
वोही बात होगी न कि सड़ी हत्या ब्राह्मण के सर ....!!
बाकी आप लगे रहो .................... आराम से !!!!

शिवम् मिश्रा August 23, 2009 at 3:28 PM  

गणेश चतुर्थी की आप को और आपके परिवार को बहुत बहुत शुभकामनाये |

विवेक रस्तोगी August 23, 2009 at 4:09 PM  

अब क्या चाहते हैं कि आडवाणीजी भी अपने आप को जिन्ना के भूत से कटवायें :)

ओम आर्य August 23, 2009 at 4:19 PM  

बहुत ही सुन्दर
गणेश चतुर्थी की आप को और आपके परिवार को बहुत बहुत शुभकामनाये

परमजीत सिहँ बाली August 23, 2009 at 4:54 PM  

बढिया निशाना साधा है.....;)

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" August 23, 2009 at 9:53 PM  

टेढे तरीके से बिल्कुल सीधी बात.....:)

राजीव तनेजा August 24, 2009 at 12:51 AM  

मेरे ख्याल से निशाने तो हर तरफ से लगाए हैँ अलबेला जी ने लेकिन शिकार एक ही है...अपना जंग खा चुका लौहपुरुष...


वैसे...कुछ दिन बाद शायद इतनी मिट्टी पलीद हो जाएगी कि लोग पुरुष कहने से भी शरमाने और कतराने लगें

Gyan Darpan August 24, 2009 at 7:32 AM  

आज तो पूरी वाट लगा दी जी आपने बेचारे लोह्पुरुष की |
अब देश में बेचारे ये एक ही तो लोह्पुरुष बचे थे और हम भी कितने गए गुजरे है कि ऐसे लोह्पुरुष को प्रधानमंत्री न बनाकर इनके लोह्पुरुश्त्व से देश को वंचित कर रहे है |

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