कब तलक़ आँसू बहायें बोलिये !
दर्दो-ग़म कैसे मिटायें बोलिये !
कुर्सी है लंगड़ी, खाट टूटी हुई
आपको किस पर बिठायें बोलिये !
ब्लैक में भी गैस जब मिलती नहीं
रोटियां कैसे पकायें बोलिये !
हाथ हैं जब दूसरों की जेब में
तालियां कैसे बजायें बोलिये !
क्यों मेरे प्राणों के पीछे हैं पड़ीं
आपकी क़ातिल अदायें बोलिये !
क्या भला कर पाएंगी इस देश का
रैलियां और जन-सभायें बोलिये !
दिल मिलाना चाहते थे, न मिला
हाथ भी फिर क्यों मिलायें बोलिये !
एक ही काफ़ी है इस महंगाई में
और बच्चे क्यों बढ़ायें बोलिये !
कब तलक़ बाज़ार में बिकती रहेंगी
बेधड़क नकली दवायें बोलिये !
पत्नी से झगड़े का दण्ड मालूम है
किसलिए ज़ोख़िम उठायें बोलिये !
जब तलक़ ज़िन्दा था जलता ही रहा
अब इसे फिर क्यों जलायें बोलिये !
इस क़दर ज़हरीली क्यों कर हो गईं
मज़हबियत की हवायें बोलिये !
8 comments:
जब तलक़ ज़िन्दा था जलता ही रहा
अब इसे फिर क्यों जलायें बोलिये !
अच्छी रचना है अलबेला जी। सुन्दर भाव।
"हाथ हैं जब दूसरों की जेब में
तालियां कैसे बजायें बोलिये!"
इशारों में सब कुछ कह गये हो अवबेला जी!
बधाई।
हाथ हैं जब दूसरों की जेब में
तालियां कैसे बजायें बोलिये
क्या भला कर पाएंगी इस देश का
रैलियां और जन-सभायें बोलिये !बहुत बदिया अभिव्यक्ति है
पत्नी से झगड़े का दण्ड मालूम है
किसलिए ज़ोख़िम उठायें बोलिये ! हा हा हा लाजवाब बधाई
aap kavita likhen sirf,aur hum parhate rahe fakat,
kyo na hum tum sabhi ise jindgi me utare boliye.
kavita shandar hai
creative, senstive also,
in deep good positivity.
हाथ हैं जब दूसरों की जेब में
तालियां कैसे बजायें बोलिये ! और....
जब तलक़ ज़िन्दा था जलता ही रहा
अब इसे फिर क्यों जलायें बोलिये !
संजोडने वाली कविता। बधाई।
महाराज ,
एक बात तो है आप जब भी लिखते हो दिल और दिमाग दोनों पर छाप छोड़ने के लिए ही लिखते हो |
बहुत बहुत बधाई इस बार भी आप सफल हुए |
एक तीर से कई निशाने साधती आपकी ये प्रभावी रचना बहुत पसन्द आई...
कितनी तारीफ करें हम आपकी बोलिए
कौन देगा इन प्रश्नों का उत्तर....बोलिये....?. बहुत सुन्दर.
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