इक मुख यदि है
गुलाब जैसा महका तो
सैकड़ों के चेहरे उदास मेरे देश में
पांच सौ पे उधड़ा लिबास मेरे देश में
काग़ज़ो में हो रहे विकास मेरे देश में
आदमी के ख़ून का गिलास मेरे देश में
इक मुख यदि है
गुलाब जैसा महका तो
सैकड़ों के चेहरे उदास मेरे देश में
पांच सौ पे उधड़ा लिबास मेरे देश में
काग़ज़ो में हो रहे विकास मेरे देश में
आदमी के ख़ून का गिलास मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
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10 comments:
बहुत खूब अलबेला भाई।
हैं अधिक तन चूर थककर खुशबू से तर कुछ बदन
इत्र से बेहतर पसीना सूँघना अच्छा लगा
"काम सारे हो रहे हैं
कुर्सी की टांगों नीचे
काग़ज़ो में हो रहे विकास मेरे देश में"
सत्य वचन महाराज ||
"मैनपुरी के पत्रकारों के साथ हुयी अभद्रता - कवरेज करने से रोका गया"
जरा इस पर भी नज़र-ऐ-इनायत करे |
दूध है जो महंगा तो
पीयो ख़ूब सस्ता है
आदमी के ख़ून का गिलास मेरे देश में
वाह अलबेला जी सच्चाई को उकेरती एक और शनादार रचना। बधाई
कभी होता था स्वर्ग का,
आज होता है, नर्क का ,
एह्सास मेरे देश में...
घट रहा है, प्रेम, अपनापन,
स्नेह, दया, और,
विश्वास मेरे देश में...
सच कहा अलबेला जी....
सचमुच विडंबना है मेरे देश में...शनादार रचना
अलबेला जी आप ने जो लेख मेरे बारे लिखा उस के लिये मै आप का दिल से आभारी हुं,मेरे पास शव्द नही आभार प्रकट करने लिये, बस मै दोनो हाथ जोड कर धन्यवाद कर रहा हुं , स्वीकार कर ले
अल्बेला जी
आदरणीय राजजी,
स्मरण के लिए धन्यवाद.......
हम सबने वही किया जो हमारे दिल ने कहा..........
दिल कहता है....आप स्वस्थ रहें..मस्त रहें और
ब्लॉगिंग में व्यस्त रहें...........
__________स्नेह बनाए रखें
एक के शरीर पे
रेमण्ड का सफ़ारी है तो
पांच सौ पे उधड़ा लिबास मेरे देश में
wah sir ji kya likha hai.
gehra bhaav hai.
hazaron sakdon ki bheed main ek aur kum hoga
magar maa baap ka apne wahi to ek lauta hai,
mere is desh ke saare hi neta saaf dikhte hain,
suan hai ganga ka paani abhi bhi paap dhota hai.
"काम सारे हो रहे हैं
कुर्सी की टांगों नीचे
काग़ज़ो में हो रहे विकास मेरे देश में"
तीखा व्यंग्य
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