आदर्शों को फाँसी हो गई
और नियमों को जेल हो गई
सुख के बादल बिखर चले हैं,
दु:ख की धक्कमपेल हो गई
किन शब्दों में व्यक्त करूं मैं
हैरत, तुम बतलाओ तो
नक़ल हो गई पास यहाँ पर
और पढ़ाई फेल हो गई
और नियमों को जेल हो गई
सुख के बादल बिखर चले हैं,
दु:ख की धक्कमपेल हो गई
किन शब्दों में व्यक्त करूं मैं
हैरत, तुम बतलाओ तो
नक़ल हो गई पास यहाँ पर
और पढ़ाई फेल हो गई
9 comments:
नकल पास हो गई और पढ़ाई फेल हो गई
बहुत बढ़िया सर जी...
hmmm...kya baat hai...bahut khoob
वाह!!!
क्या बात है। सच्ची सच्ची बात बस चंद लाईनों में कह दी!!!
बुद्धिजीवी लोग इस पर बड़े बड़े समिनार किया करते हैं...
यथार्थ आज का!
वाह छोटी सी प्यारी सी सुंदर सी रचना में आपने सच्चाई का बयान किया है ! बिल्कुल सही कहा है आपने हर एक लाइन में जो हमारे ज़िन्दगी से जुड़ी हुई है!
बहुत बढ़िया
सटीक कहा.
रामराम.
सुन्दर प्रस्तुति!
हिन्दी रही कँटीली की पौध
अंग्रेजी चम्पा की बेल हो गई
ये कलयुग है...
इस युग की...
यही है...
यही है रीत
Post a Comment