1982 में कविवर मोहन आलोक ने मुझे मंच पर सुन कर
मुझे एक नया व अनूठा नाम दिया था "अलबेला"
आज मुझे एक और नाम मिला ..........' बड़बोला '
अच्छा लगा
क्योंकि
सच्चा लगा
ये नाम अथवा इनाम मुझे प्रदान किया है श्रीमान अनूप शुक्ल ने ।
मैं, मेरी इकलौती पत्नी आरती और पुत्र आलोक तीनों ह्रदय पूर्वक आकण्ठ
आभारी हैं श्रीमान अनूपजी के जिन्होंने ये परम अनूप नाम मुझे मुफ़्त में
दिया और मज़े की बात है कि बिना मांगे दिया जबकि मुझसे तो कोई इतना
बढ़िया नाम मांगे तो मैं तो ब्लैक में भी न बेचूं .....मुफ़्त की तो बात ही छोड़ो ।
पहले भी कुछ भाषाविदों व विद्वानजन ने मुझे घमण्डी तथा आत्ममुग्ध कहने
की कृपा की थी, मैं उन सब विनम्र प्राणियों का भी सपरिवार साभारी हूँ ।
हो गया विनम्रता का नाटक ?
अब आते हैं मुद्दे पर !
जी हाँ ! मैं घमण्डी हूँ..............
और नाज़ है मुझे अपने घमण्ड पर..............
गर्व है अपने बड़बोलेपन पर .............क्योंकि एक यही तो सरमाया है जो
मेरा अपना है, मेरा निजी है । जिसे कोई छीन नहीं सकता, जिसे कोई लूट
नहीं सकता ....बाकी सब तो इस दुनिया के भले लोग लूट ही चुके हैं मेरा ॥
घमण्ड मेरी ऊर्जा है , घमण्ड मेरा पेट्रोल है , घमण्ड मेरे लिए वही है, जो
एक बिच्छु अथवा सांप के लिए उसका ज़हर होता है.........
क्यों न करूं मैं घमण्ड ?
आप नंग, बाप नंग, तीजे नंग नानके !
न मेरे पास विद्या है
न मेरे पास धन है
न मेरे पास रूप-रंग है
न मेरे पास इज्ज़त है
न मेरे पास शक्ति-सामर्थ्य है
और न ही मैं धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक ,राजनैतिक अथवा शैक्षणिक क्षेत्र
की कोई हस्ती हूँ जिसे विनम्रता का लबादा ओढ़ना पड़े
विनम्रता अथवा झुकाव उसी को शोभा देता है जिस में या जिस पर वज़न हो...
जैसे आम पकता है तो झुकता है क्योंकि उसमे रस का वज़न होता है जबकि
अरण्ड पकता है तो ऊपर की ओर उठता है क्योंकि उसमे कोई वज़न नहीं होता
ले दे के इस बन्दे में सिर्फ़ एक घमण्ड बचा है वो तो रहने दो यार !
जो आदमी कभी कॉलेज तो क्या, स्कूल में भी नहीं गया लेकिन 12 भाषाओं में
लेखन करता है और पुस्तकों का सम्पादन व प्रकाशन करता है क्या उसे
ख़ुद की प्रतिभा पे घमण्ड नहीं करना चाहिए ?
जिस आदमी ने अपनी बीस साल की मेहनत से कमाए धन व सम्मान को
बीस दिन के भीतर जुए में हार दिया हो और अर्श से फ़र्श पर आकर औंधे
मुंह गिर पड़ा हो.....कई वर्षों तक अपने ही साथियों की कुटिल साज़िशों के
चलते दर-दर की ठोकरें खाई हों और फ़िर केवल हिम्मत और दुसाहस के
दम पर अपनी दुनिया फ़िर से आबाद कर ली हो यानी सब कुछ लुटा,
लेकिन हिम्मत और हौसला नहीं टूट पाया जिसका वो भी घमण्ड नहीं करेगा
ख़ुद पर तो कौन करेगा घमण्ड इस दुनिया में..........
मेरे पास अनेक ऐसे भी कारण हैं घमण्ड करने के जिन्हें मैं इस आलेख में
आम नहीं कर सकता ...
रही बात बड़बोला होने की तो आज ज़माना बोलने का है, बोल-बोल कर ख़ुद
को बेचने का है। वो ज़माना हवा हो गया कि -
बड़े बड़ाई ना करें, बड़े न बोलें बोल
रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल
अभी तो अपने आप की बड़ाई करने और कराने का युग है । ये प्रचार युग है ।
जिनके पास पाले हुए आलोचक, समीक्षक , स्तम्भकार और प्रचार सचिव हैं
वे उनके ज़रिये करवाते हैं और जो मेरे जैसे साधनहीन हैं वे अपना काम ख़ुद
ही कर लेते हैं ।
इसमे किसी को बुरा लगता हो तो मेरे ठेंगे से !
एक बात याद आ गई... एक बहुत ही गरीब आदमी अपनी गरीबी की बड़ाई कर
रहा था । वह साबित कर रहा था कि दुनिया में उस से गरीब और कोई नहीं.......
बोला - भइया हम तो इतने गरीब हैं, इतने गरीब हैं कि अपने बंगले की सुरक्षा
के लिए एक कुत्ता तक अफोर्ड नहीं कर सकते ....
लोगों ने हैरत से पूछा - अच्छा ? तो जब कभी चोर आते हैं तो क्या करते हो ?
वो बोला - करते क्या हैं भइया "ख़ुद ही भौंक लेते हैं " हा हा हा हा हा हा हा हा
भाई..........मैं भी अपनी बडाई ख़ुद ही कर लेता हूँ ...........हा हा हा हा हा
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
14 comments:
मैं भी क्षमां याचना के साथ नेक नाम सुझा रहा हूँ -बड़बडिया ! आप भी गजबै हैं !
क्यों भिगो-भिगो के मारते हो यार?....
अलबेला जी आज ही पता चला की आप स्कूल-कॉलेज नहीं गए और १२ भाषाओं मैं लिख रहे हैं | वाह भाई क्या बात है |
अपनी ऊर्जा बनाये रखिये और लड़ते रहिये | जब तक जीवन है तब तक संघर्ष है |
हमारी सुभ कामनाएं आपके साथ है |
मन में सब सोचते येई हैं, पर जुबान पे नईं बोलते
पसन्द आया सो पसन्द पे चटका लगा दिया है
Bhai vah bina school gaye jo aadmi 12 bhasao ka gyan rakhta ho to uska ghamand karna to lajimi hai.
सपरिवार आभार क्यों? सारी उपाधियाँ तो केवल आपको ही दी गई हैं!
अलबेला खत्री पर जो अनाप-शनाप टिप्पणियां करते हैं,दरअसल वे आपकी ख्याति से परेशान हैं, आपको उनलोगों की परवाह नहीं करनी है, जो बेगार होते हैं, जिनको कोई काम नहीं रहता, वे दूसरों की हंसी उडाने का काम करते हैं, आप परेशान न हों .... हाथी चले बाजार ..कुत्ते भूंके हजार !
एकदम खरी खरी:)
यदा-कदा आपका ब्लाग देखता रहता हूं, आप घमन्डी नहीं है, ये पक्का है, लेकिन अगर अनुप जी आपको बड़बोला कह रहे है, तो ये उनका अनुमान है। आपके बारे में। जबकि मैं सोचता हूं आप आत्ममुग्ध है, और इतने आत्ममुग्ध कि आपको अपना भौढांपन भी सर्वश्रेष्ठ कला लगता हैं।
जो आदमी कभी कॉलेज तो क्या, स्कूल में भी नहीं गया लेकिन 12 भाषाओं में
लेखन करता है और पुस्तकों का सम्पादन व प्रकाशन करता है क्या उसे
ख़ुद की प्रतिभा पे घमण्ड नहीं करना चाहिए ?
सुभानाल्लाह .....!!
जिस आदमी ने अपनी बीस साल की मेहनत से कमाए धन व सम्मान को
बीस दिन के भीतर जुए में हार दिया हो और अर्श से फ़र्श पर आकर औंधे
मुंह गिर पड़ा हो.....कई वर्षों तक अपने ही साथियों की कुटिल साज़िशों के
चलते दर-दर की ठोकरें खाई हों और फ़िर केवल हिम्मत और दुसाहस के
दम पर अपनी दुनिया फ़िर से आबाद कर ली हो यानी सब कुछ लुटा,
लेकिन हिम्मत और हौसला नहीं टूट पाया जिसका वो भी घमण्ड नहीं करेगा
नमन है आपकी साफगोई और हिम्मत को ...... !!
जिन्हें आपके भौंकने से
यानी हा हा हा हंसने से
जो जख्म हुए हैं
उनको टीके लगवाने की
लाईन में खड़े देखा है
जमकरबोला जी
अलबेला जी
जय हो।
अलबेला जी
सच कहूं तो मुझे आपमें मस्तमौला व्यक्तित्व का आभास होता है।
दीपक भारतदीप
post kaa link kehaan haen
jahaan kehaa haen
badboale ko badbola
अलबेला भाई आप सौभाग्यशाली हो हजारभाग्यशाली हो क्युंकि अनूप शुक्ल महाराज ने आपको बड़बोला कहा है। वे खुद ही सैकड़ों बार कह चुके हैं कि वह अभागा होता है जिसे कोई टोकता नहीं। आपको तो उनके चरण धो धो पीने चाहिये जो उन्होंने आपको टोका नहीं सीधे बड़बोला कहा
हा हा हा
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