कल तक हँसी-किलकारी
गूंजती थी जहां,
आज हैं वे आंगन वीरान मेरे देश में
बिखरा है मौत का सामान मेरे देश में
ख़ून से ही खेत-खलिहान मेरे देश में
खाली तो होने लगा है स्थान मेरे देश में
कल तक हँसी-किलकारी
गूंजती थी जहां,
आज हैं वे आंगन वीरान मेरे देश में
बिखरा है मौत का सामान मेरे देश में
ख़ून से ही खेत-खलिहान मेरे देश में
खाली तो होने लगा है स्थान मेरे देश में
Labels: छन्द घनाक्षरी कवित्त
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6 comments:
"खाली तो होने लगा है स्थान मेरे देश में
ख़ून से सने हैं खलिहान मेरे देश में"
लाजवाब!
बधाई स्वीकार करें।
बिखरा है मौत का सामान मेरे देश में
क्योंकि ...
जीने का सामान देने वालों की कद्र नहीं मेरे देश में
100%satya wachan.......bahut khub
कटु सत्य
"पानी का अकाल है तो
ग़म नहीं, सींच लेंगे
ख़ून से ही खेत-खलिहान मेरे देश में"
बेहद खूबसूरत रचना |
आपने सत्य का उदघाटन किया है......यही सब तो हो रहा है मेरे देश में.
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