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Albela Khatri

बिखरा है मौत का सामान मेरे देश में............

कल तक हँसी-किलकारी

गूंजती थी जहां,

आज हैं वे आंगन वीरान मेरे देश में


यहां-वहां, जहां-तहां,

मत पूछो कहां-कहां

बिखरा है मौत का सामान मेरे देश में


पानी का अकाल है तो

ग़म नहीं, सींच लेंगे

ख़ून से ही खेत-खलिहान मेरे देश में


खालिस्तां बने न बने,

कौन जानता है किन्तु

खाली तो होने लगा है स्थान मेरे देश में

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' August 24, 2009 at 8:00 PM  

"खाली तो होने लगा है स्थान मेरे देश में
ख़ून से सने हैं खलिहान मेरे देश में"

लाजवाब!
बधाई स्वीकार करें।

alka mishra August 24, 2009 at 8:14 PM  

बिखरा है मौत का सामान मेरे देश में
क्योंकि ...
जीने का सामान देने वालों की कद्र नहीं मेरे देश में

ओम आर्य August 24, 2009 at 8:55 PM  

100%satya wachan.......bahut khub

राजीव तनेजा August 24, 2009 at 9:30 PM  

कटु सत्य

शिवम् मिश्रा August 24, 2009 at 10:42 PM  

"पानी का अकाल है तो

ग़म नहीं, सींच लेंगे

ख़ून से ही खेत-खलिहान मेरे देश में"



बेहद खूबसूरत रचना |

Chandan Kumar Jha August 25, 2009 at 2:09 AM  

आपने सत्य का उदघाटन किया है......यही सब तो हो रहा है मेरे देश में.

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