तू कोयल है
मैं कागा हूं,
तू मैना है
मैं तोता हूं
नवासी है तू लैला की तो मैं मजनूं का पोता हूं
ये बरफ़ी जैसा गोरा तन
सरस रसगुल्ले सा यौवन
ये कतली से कटीले नैन
ये नीले और नशीले नैन
अधर हैं रस से मालामाल
इमरती जैसे लाल-म-लाल
समोसे जैसी तीखी नाक
गला लगता है गाजर पाक
ये केसरबाटी जैसे कान
होंठ का तिल शाही पकवान
ये चमचम जैसा चौड़ा भाल
मलाई बरफ़ी जैसे गाल
जलेबी सी उलझी ज़ुल्फ़ें
ये अमृतभोग सी अलकें
हुस्न तेरा सर से लेकर पांव तक रसवान है
कौन से अब अंग का लूं नाम, सब पकवान है
रूप क्या है, स्वाद का भण्डार है
इसलिए तो मुझको तुमसे प्यार है
तेरी चाहत में
मैं पागल,
न जगता हूं
न सोता हूं
नवासी है तू लैला की तो मैं मजनूं का पोता हूं
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
6 comments:
aap apne blog ko thoda clean rakhe to padne mein aasani hogi. jab bhi mein aapke blog pe khuch padhne aata hu, to content se zyada aapke photo milte hai ... isliye mein aapki blog pe aana pasand nahi karata, but aapke content acche hai.
गुस्ताखी माफ अलबेला भाई जी ........लगता आज आपके उपर किसी हलवाई का भूत सवार हो गया है .........क्योकि पकवान से रसोईया को अलग नही किया जा सकता.........वैसे ही आप जैसे रसोईया है तो महबूबा खालिश पकवान.......वाह वाह वाह वाह वाह
आज तो आपको पढकर सिर्फ मजा ही नही आया वरन पेट भी भर गया.......कमाल है .......लिखते रहे ऐसे ही गुदगुदाते रहे....
मजेदार ! वाह ! क्या खूब कहा है आपने।
वाह! वाह!!
आपकी कविता तो है श्रृंगार रस एक गान,
पर साथ ही हैं एक से एक पकवान,
आपने भी क्या जोरदार फरमाया है श्रीमान,
आपकी माशूका है या हलवाई की दुकान! :)
वाह ! बहुत ही सुन्दर रचना,
क्या अलबेला जी?....पूरे दो महीने से अपने ऊपर कंट्रोल कर के बैठा था कि कुछ वज़न कर लूँ लेकिन लगता है कि आप फिर से सौ का आँकड़ा पार करवा के रहेंगे..
सुन्दर...मस्त कविता
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