बुज़ुर्गों को नमन करना प्रभु की अर्चना सा है
बड़ों का चरण स्पर्श करना हरि की वन्दना सा है
ये हैं मुखिया हमारे, इनकी आज्ञा धर्म है अपना
बड़ों की आज्ञा में रहना सतत आराधना सा है
पिता-माता की आशीषों से बिगड़े काम बन जाते
रखें इनको हमेशा ख़ुश तो यह इक साधना सा है
इन्हें अनुभव भी ज़्यादा हैं, इन्हें है ज्ञान भी ज़्यादा
घड़ी भर इनसे बातें करना गीता बांचना सा है
ये दीर्घायु,शतायु हों, स्वस्थित हों, आनन्दित हों
तबस्सुम इन बुज़ुर्गों का किसी शुभ-कामना सा है
रहे साया सदा इनका हमारे सर पे और घर पे
यही कहना मेरे ह्रदय की अन्तर्भावना का है
बड़ों का चरण स्पर्श करना हरि की वन्दना सा है
ये हैं मुखिया हमारे, इनकी आज्ञा धर्म है अपना
बड़ों की आज्ञा में रहना सतत आराधना सा है
पिता-माता की आशीषों से बिगड़े काम बन जाते
रखें इनको हमेशा ख़ुश तो यह इक साधना सा है
इन्हें अनुभव भी ज़्यादा हैं, इन्हें है ज्ञान भी ज़्यादा
घड़ी भर इनसे बातें करना गीता बांचना सा है
ये दीर्घायु,शतायु हों, स्वस्थित हों, आनन्दित हों
तबस्सुम इन बुज़ुर्गों का किसी शुभ-कामना सा है
रहे साया सदा इनका हमारे सर पे और घर पे
यही कहना मेरे ह्रदय की अन्तर्भावना का है
7 comments:
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.
लाजबाब
ये हैं मुखिया हमारे, इनकी आज्ञा धर्म है अपना
बड़ों की आज्ञा में रहना सतत आराधना सा है
शिक्षाप्रद रचना के लिए बधाई!
अच्छा है
हास्य व्यंग्य से अलग
उतना ही सुंदर.
बहुत बढ़िया , सच में आज कल लोगो को इन बुजुर्गो का ध्यान ही नहीं रहेता |
शिक्षाप्रद रचना के लिए बधाई!
शिक्षाप्रद .......एक अच्छी रचना....बधाई
बहुत बशिया रचना बधाई
शिक्षाप्रद रचना के लिए आपका बहुत-बहुत आभार
Post a Comment