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Albela Khatri

आपको हो न हो, हमें तो आपकी घरवाली ( रचना ) में इन्ट्रेस्ट है, इस चांडालनी (रचना) में नहीं ..........

बात बहुत पुरानी है1992 की ............


मुंबई के पश्चिमी उप नगर विलेपार्ले के भाईदास हॉल में हास्य सम्राट कवि

सुरेन्द्र शर्मा का 'चार लाईनां ' शो चल रहा था


मैं यानी अलबेला खत्री, श्याम ज्वालामुखी, आसकरण अटल और सुभाष

काबरा काव्यपाठ करके महफ़िल जमा चुके थे और हास्य व्यंग्य का माहौल

भरपूर यौवन पर थाक्लाईमैक्स के लिए सुरेन्द्र शर्मा माइक पर आए तो

हॉल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा....और सुरेन्द्र जी ने अपने चुटकुलों

से हँसाया भी बहुत लेकिन जैसे ही उन्होंने "चांडालनी" कविता शुरू की, लोगों

ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया " घरवाली..........घरवाली............"


सुरेन्द्रजी ने अनसुना कर दिया और यथावत 'चांडालनी' सुनाते रहे तो चार

पाँच दर्शक मंच के पास गए और बोले- " सुरेन्द्र जी, घरवाली सुनाओ,

घरवाली ! हमने हसने के लिए पैसे खर्च किए हैं ..इस "चांडालनी" पर रोने


के लिए नहीं ........."



सुरेन्द्रजी ने मज़ाक में कहा- कमाल है यार जिस घर वाली में मुझे ही कोई

इन्ट्रेस्ट नहीं रहा, उसमें आपको क्या इन्ट्रेस्ट है ?



लोगों ने कहा- भाई आपको हो हो,

हमें
तो आपकी घरवाली ( रचना ) में इन्ट्रेस्ट है,

इस चांडालनी (रचना) में नहीं ..........

इतना
सुनना था कि पूरा हॉल ठहाकों से गूँज
उठा

और सुरेन्द्र शर्मा को घरवाली की चार लाईनां सुनानी ही पड़ी.............

3 comments:

राजीव तनेजा August 12, 2009 at 12:44 AM  

बात भी सही है...सबको दूसरे की घरवाली में ही इंटरैस्ट होता है

शरद कोकास August 12, 2009 at 1:12 AM  

दर असल सभी लोग सुरेन्द्र जी की "घरवाली " मे अपनी घरवाली की छवि देखते है लेकिन सुरेन्द्र जी जिस तरह अपनी घराड़ी का सम्मान करते है उस से वे सीख नहीं लेते. बाकी ,ऐसे लोग जो उनकी घरवाली मे इंट्रेस्ट रखते है उनके लिये सुरेन्द्र जी ने कह ही दिया है.." अरे ओ बावरी औलाद तू हाथ लगा के तो देख..ये करेंट भी मारती है "

Mithilesh dubey August 12, 2009 at 9:11 AM  

बात तो मजेदार है अलबेला जी, आजकल दुसरे की घरवाली को लोग ज्यादा पसंद करते है।

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