लड़ाई इस बात पर नहीं है कि देश का विकास कैसे हो, लड़ाई इस बात की भी
नहीं है कि महंगाई, गरीबी, बेरोज़गारी और भुखमरी दूर कैसे हो, लड़ाई हमारी
लगातार बढ़ती आबादी अथवा जानलेवा प्रदूषण पर नियन्त्रण की भी नहीं है
और न ही ये लड़ाई आतंक, हिंसा, भ्रष्टाचार व कालाबाज़ारी से निपटने के लिए
हो रही है। ये लड़ाई केवल और केवल इस मुद्दे पर चल रही है कि देश का
प्रधानमन्त्री कौन बने?
पिछले कई सालों से हमारा देश इस त्रासदी को झेल रहा है। जिनके कान्धों पर
समूचे देश को एकजुट रखने की ज़िम्मेदारी है, वे आपस में लड़ रहे हैं , लगातार
लड़ रहे हैं और इतनी बुरी तरह लड़ रहे हैं कि आम आदमी को घिन आने लगी है
के नाम से लड़ने वाले सभी योद्धा हैं, सभी रणबांकुरे हैं और सभी अपने-अपने
हथियारों से सुसज्जित हैं। किसी के पास ब्राह्मण हैं, किसी के पास यादव हैं,
किसी के पास गुर्जर हैं, कोई मुस्लिमों का झण्डा बरदार है तो कोई पिछड़ों और
आदिवासियों पर कब्जा जमाये हुए है। इनकी सेनाओं के झण्डों पर पंजा है,
कमल है, हाथी है, हंसिया है, घड़ी है, साइकल है, लालटेन है और पता नहीं
क्या क्या है, लेकिन जनता कहीं नहीं है, जनता की वेदना कहीं नहीं है।
कोई गुजरात का मसीहा होने दावा करता है, तो कोई मराठी माणूस का ठेकेदार है,
कोई यूपी, बिहार और झारखण्ड के नाम पर मोर्चाबन्दी किये हुए है तो कोई
पूर्वोत्तर तथा बंगाल को लिए आगे बढ़ रहा है, सबके पास देश का कुछ न कुछ है,
लेकिन देश किसी के पास नहीं है। भारत किसी के पास नहीं है। यह देख कर दुःख
होता है, बहुत दुःख होता है क्योंकि ये लड़ने वाले लोग कोई मवाली नहीं हैं,
देशी दारू के ठेके पर बैठे बेवड़े नहीं हैं, सड़कछाप उठाईगिरे नहीं हैं और नादान
भी नहीं हैं बल्कि ये सबके सब समाज के श्रेष्ठ लोग हैं, पढ़े-लिखे लोग हैं, महंगा
कपड़ा पहनने वाले, बड़ी-बड़ी बातें करने वाले इज्ज़तदार लोग हैं तथा राजनीति,
कूटनीति, अर्थनीति, विदेशनीति इत्यादि जितनी भी नीतियां हैं उनके पैरोकार हैं।
बस एक ही कमी रह गई है इनमें, वो ये कि इनकी नीति तो साफ़ है पर नीयत
साफ नहीं है। यदि नीयत साफ हो और वाकई देश के लिए कुछ अच्छा करने की
भावना हो, तो यूं आपस में नहीं लड़ते बल्कि एक साथ मिलकर लड़ते। देश के
से लड़ते और देश की समस्याओं से लड़ते।
रहा सवाल प्रधानमंत्री बनने का तो इस टुच्ची सी बात का इतना बतंगड़ क्यों
बना रहे हो? मेरी मानो तो पांच सात प्रधानमंत्री बना दो, एक मुख्य प्रधानमंत्री
बना दो, एक कार्यवाहक प्रधानमंत्री, दो अतिरिक्त प्रधानमंत्री बना दो, चार-पांच
उपप्रधानमंत्री और फिर भी कम पड़े तो हर मंत्री को ही प्रधानमंत्री बना दो जैसे
प्रधान गृहमंत्री, प्रधान रेल मंत्री, प्रधान वित्तमंत्री , प्रधान रक्षामंत्री, प्रधान
उद्योगमंत्री, प्रधान स्वास्थ्य मंत्री - वगैरह।
पार्टी-वार्टी छोड़ो, क्योंकि न तो हर पार्टी पूरी तरह साफ़ सुथरी है और न ही हर
पार्टी पूरी तरह भ्रष्ट। इसलिए हर पार्टी में से उसके बड़े-बड़े नेताओं को एक साथ,
एक मंच पर लाओ, सबको प्रधानमंत्री बनाओ और मिलजुल कर सरकार चलाओ।
क्योंकि पार्टी बहुत छोटी चीज है और ये देश बहुत बड़ा है, इतना बड़ा है कि अकेले
अकेले खाओगे तो कई जनमों
तक नहीं खा पाओगे। इसलिए एक साथ मिल कर .जोर लगाओ और
मिल-जुलकर देश को खाओ। ये देश आप सबका है, किसी एक के बाप की जागीर
नहीं है। बस.....ख्याल इतना रहे कि जितना पचा सको उतना ही खाना वरना
अजीर्ण और अफारा जैसी तकलीफ हो सकती है और इलाज के लिए सीबीआई
हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ सकता है। समझ गये ना?
,,,,,,,,,,,,हा हा हा हा हा हा हा हा
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
नहीं है कि महंगाई, गरीबी, बेरोज़गारी और भुखमरी दूर कैसे हो, लड़ाई हमारी
लगातार बढ़ती आबादी अथवा जानलेवा प्रदूषण पर नियन्त्रण की भी नहीं है
और न ही ये लड़ाई आतंक, हिंसा, भ्रष्टाचार व कालाबाज़ारी से निपटने के लिए
हो रही है। ये लड़ाई केवल और केवल इस मुद्दे पर चल रही है कि देश का
प्रधानमन्त्री कौन बने?
पिछले कई सालों से हमारा देश इस त्रासदी को झेल रहा है। जिनके कान्धों पर
समूचे देश को एकजुट रखने की ज़िम्मेदारी है, वे आपस में लड़ रहे हैं , लगातार
लड़ रहे हैं और इतनी बुरी तरह लड़ रहे हैं कि आम आदमी को घिन आने लगी है
के नाम से लड़ने वाले सभी योद्धा हैं, सभी रणबांकुरे हैं और सभी अपने-अपने
हथियारों से सुसज्जित हैं। किसी के पास ब्राह्मण हैं, किसी के पास यादव हैं,
किसी के पास गुर्जर हैं, कोई मुस्लिमों का झण्डा बरदार है तो कोई पिछड़ों और
आदिवासियों पर कब्जा जमाये हुए है। इनकी सेनाओं के झण्डों पर पंजा है,
कमल है, हाथी है, हंसिया है, घड़ी है, साइकल है, लालटेन है और पता नहीं
क्या क्या है, लेकिन जनता कहीं नहीं है, जनता की वेदना कहीं नहीं है।
कोई गुजरात का मसीहा होने दावा करता है, तो कोई मराठी माणूस का ठेकेदार है,
कोई यूपी, बिहार और झारखण्ड के नाम पर मोर्चाबन्दी किये हुए है तो कोई
पूर्वोत्तर तथा बंगाल को लिए आगे बढ़ रहा है, सबके पास देश का कुछ न कुछ है,
लेकिन देश किसी के पास नहीं है। भारत किसी के पास नहीं है। यह देख कर दुःख
होता है, बहुत दुःख होता है क्योंकि ये लड़ने वाले लोग कोई मवाली नहीं हैं,
देशी दारू के ठेके पर बैठे बेवड़े नहीं हैं, सड़कछाप उठाईगिरे नहीं हैं और नादान
भी नहीं हैं बल्कि ये सबके सब समाज के श्रेष्ठ लोग हैं, पढ़े-लिखे लोग हैं, महंगा
कपड़ा पहनने वाले, बड़ी-बड़ी बातें करने वाले इज्ज़तदार लोग हैं तथा राजनीति,
कूटनीति, अर्थनीति, विदेशनीति इत्यादि जितनी भी नीतियां हैं उनके पैरोकार हैं।
बस एक ही कमी रह गई है इनमें, वो ये कि इनकी नीति तो साफ़ है पर नीयत
साफ नहीं है। यदि नीयत साफ हो और वाकई देश के लिए कुछ अच्छा करने की
भावना हो, तो यूं आपस में नहीं लड़ते बल्कि एक साथ मिलकर लड़ते। देश के
से लड़ते और देश की समस्याओं से लड़ते।
रहा सवाल प्रधानमंत्री बनने का तो इस टुच्ची सी बात का इतना बतंगड़ क्यों
बना रहे हो? मेरी मानो तो पांच सात प्रधानमंत्री बना दो, एक मुख्य प्रधानमंत्री
बना दो, एक कार्यवाहक प्रधानमंत्री, दो अतिरिक्त प्रधानमंत्री बना दो, चार-पांच
उपप्रधानमंत्री और फिर भी कम पड़े तो हर मंत्री को ही प्रधानमंत्री बना दो जैसे
प्रधान गृहमंत्री, प्रधान रेल मंत्री, प्रधान वित्तमंत्री , प्रधान रक्षामंत्री, प्रधान
उद्योगमंत्री, प्रधान स्वास्थ्य मंत्री - वगैरह।
पार्टी-वार्टी छोड़ो, क्योंकि न तो हर पार्टी पूरी तरह साफ़ सुथरी है और न ही हर
पार्टी पूरी तरह भ्रष्ट। इसलिए हर पार्टी में से उसके बड़े-बड़े नेताओं को एक साथ,
एक मंच पर लाओ, सबको प्रधानमंत्री बनाओ और मिलजुल कर सरकार चलाओ।
क्योंकि पार्टी बहुत छोटी चीज है और ये देश बहुत बड़ा है, इतना बड़ा है कि अकेले
अकेले खाओगे तो कई जनमों
तक नहीं खा पाओगे। इसलिए एक साथ मिल कर .जोर लगाओ और
मिल-जुलकर देश को खाओ। ये देश आप सबका है, किसी एक के बाप की जागीर
नहीं है। बस.....ख्याल इतना रहे कि जितना पचा सको उतना ही खाना वरना
अजीर्ण और अफारा जैसी तकलीफ हो सकती है और इलाज के लिए सीबीआई
हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ सकता है। समझ गये ना?
,,,,,,,,,,,,हा हा हा हा हा हा हा हा
जय हिन्द !
अलबेला खत्री
6 comments:
bahoot khoob...........maza aa gaya
इतना लफड़ा मचा है तो मुझे प्रधान मंत्री बना दो और झंझट से मुक्ति पा लो. :)
इनकी नीति तो साफ़ है पर नीयत साफ नहीं है।
आपकी चिन्ता जायज है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मिल-जुलकर देश को खाओ। ये देश आप सबका है, किसी एक के बाप की जागीर नहीं है।
बहुत बढ़िया।
दोस्ती का जज़्बा सलामत रहे।
मित्रता दिवस पर शुभकामनाएँ।
सही सोचा आपने सभी दलों के पास भारत व उसकी जनता के लिए सिर्फ एक ही नीति है "कैसे इन्हें खाया जाय" और ये कभी कभी क्या अक्सर मिलबांट कर खा ही रहे है गठबंधन सरकारे बनाकर |
बहुत ही तीखे...तगड़े एवं मसालेदार व्यंग्य के लिए बहुत-बहुत बधाई
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