भगवान श्रीराम अत्यन्त व्याकुल दिखाई दे रहे थे। वे किसी गहन चिन्ता में डूबे
हुए, बेडरूम से ड्राइंग हॉल के बीच धीमे-धीमे चहल कदमी कर रहे थे। तभी
वहाँ धम-धम की पदचाप के साथ पवनपुत्र हनुमान आ धमके। उनके सिर पर
एक बड़ी सी टोकरी थी जिसे उन्होंने बड़ी मुश्किल से उतार कर भगवान श्रीराम
के समक्ष रखा और हाथ जोड़कर विनीत भाव से खड़े हो गए। 'क्या लाए हो
बजरंगी' श्रीराम ने पूछा। 'दाता, लड्डू लाया हूं, सूरत के श्रद्धालुओं ने मेरे बर्थ डे
पर प्रेजेन्ट किया है, यदि आप चट से भोग लगा लें तो मैं भी पट से प्रसाद ग्रहण
कर लूं, बड़ी भूख जग गई है इसकी स्वादिष्ट सुगन्ध पाकर' हनुमान ने कहा।
'लड्डू, ये लड्डू है, इतना बड़ा?' श्रीराम ने पूछा। 'हां प्रभु' हनुमत बोले,
'पूरे 1751 किलो का है वो भी असली घी का।' श्रीराम के अधरों पर व्यंग्यात्मक
मुस्कान उभर आई, 'क्यों मज़ाक करते हो। जिस देश में आजकल आँखों में
झोंकने की धूल के सिवाय असली कुछ भी नहीं मिलता वहां तुम्हें असली घी
मिल गया वो भी इस मन्दी के दौर में जबकि सेन्सेक्स 21000 से लुढक़ कर
सीधा 9000 पर आ चुका है।' 'वो मैं कुछ नहीं जानता प्रभु' हनुमान बोले,
' दलाल स्ट्रीट के दलाल जाने या स्टॉक एक्सचेंज के आगे खड़ा सांड जाने।
अपने पास तो ना कैपिटल है और न ही कैपिटल मार्केट की समझ। यहां तो
ले दे के एक लड्डू है जिसका आप जल्दी से भोग लगा लो तो मैं भी जल्दी ने
निपटा लूं, नहीं तो पड़-पड़ा ही खराब हो जाएगा। देखो कितनी गर्मी पड़ रही है।'
'तो तुम खा लो' श्री राम बोले, 'मैं नहीं चखूंगा, मेरा मूड आज कुछ ठीक नहीं है।'
'मूड ठीक नहीं है। प्रभु का मूड ठीक नहीं है?' हनुमान ने हैरत से प्रभु को देखा।
'हां अन्जनी के लाल, मैं आज बहुत दुःखी हूं।' श्रीराम ने धीमे से कहा, 'दुःखी से
भी ज्यादा चिन्तित हूं। कुछ सम्पट नहीं पड़ रही है कि क्या करूं और क्या न
करूं?' 'अपनी चिन्ता का कारण इस दास को बताएं दाता' हनुमान ने विनम्रता
पूर्वक कहा, 'कदाचित मैं कुछ समाधान कर सकूं..' 'अरे जब मुझसे कुछ करते
नहीं बन रहा है तो तुम क्या तीर मार लोगे हनुमान?' श्रीराम का स्वर रुआंसा
हो गया था। सुनकर हनुमान के नेत्र ऐसे भीग गए जैसे सोनिया के उदास
होने पर पीएम के भीग जाते हैं। वे सुबक़ते हुए बोले 'ऐसी भी क्या विपदा आन
पड़ी है प्रभो? क्या अमर सिंह ने मुलायम की धोती छोड़कर मायावती का
दुपट्टा थाम लिया? क्या जयललिता और उमा भारती ने देवगौड़ा के साथ
मिलकर पाँचवाँ मोर्चा बना लिया है? आखिर हुआ क्या, कुछ बोलो तो प्रभु।
' 'अरे यार, तालिबानी घुस आए है भारत में तालिबानी।' श्रीराम के स्वर में
का पुट था। 'क्या बात कर रहे हो प्रभु, आर यू कन्फर्म अबाउट दिस सनसनी?'
हनुमान ने अविश्र्वास प्रस्ताव रखने का प्रयास किया। 'देखते नहीं , सारे
चैनल चिल्ला चिल्ला कर बता रहे हैं कि 26 मार्च की रात लगभग 30
तालिबानी हत्यारे कश्मीर में घुसपैठ कर चुके हैं, कुछ एक तो दिल्ली के
पहुंच चुके हैं। सारी गुप्तचर एजेंसियां लगातार चेतावनी दे रही हैं। कभी भी
कोई वारदात हो सकती है। पूरा देश चिन्तातुर है लेकिन भारत के नेता
केवल कुर्सी के मोह में हैं। वोट के सिवा इन्हें न कुछ दिखाई देता है और न ही
सुनाई देता है। सब के सब प्रधानमंत्री बनने के लिए मुंह धो कर बैठे हैं। एक
भी पार्टी अथवा नेता ऐसा नहीं जिसने चुनाव प्रचार छोड़कर, देश बचाने की
बात की हो। सोचो हनुमत सोचो, चुनावी यज्ञ में यदि तालिबानी राक्षसों ने
रक्तपात किया तो कितना बड़ा नरसंहार हो सकता है..कुछ फिक्र है?
' रामजी ने एक ही सांस में इतना लंबा डायलॉग बोल दिया। 'आपकी
व्याकुलता वाजिब है दाता, किन्तु चिन्ता किस बात की?' हनुमान ने ढांढस
बंधाते हुए कहा, 'ये देश रघुकुल भूषण राम का देश है और राम त्रिलोकी के
श्रेष्ठतम धनुर्धर हैं जिन्होंने अपने शारंग धनुषबाण से समूची पृथ्वी के
राक्षसों का संहार किया है। उठाइए अपने बाण, कीजिए धनुष से सन्धान
और नाश कर दीजिए समूचे तालिबान का।' 'रोना तो इसी बात का है
हनुमान कि धनुष बाण इस वक्त मेरे पास नहीं है।' रामजी ने खेद पूर्वक कहा,
'आडवाणी जी 10 साल पहले ले गए थे रथयात्रा में, कह गए थे जल्दी लौटा
दूंगा, आज तक नहीं लौटाए, मेरे नाम पे वोट मांगते हैं और मुझसे ही
चीटिंग करते हैं।' 'जाने दो प्रभु, राजनीतिक व्यस्तता में ऐसी भूल हो जाती है,
' हनुमान ने मुस्कुराते हुए कहा 'आपके परम मित्र देवाधिदेव महादेवजी को
कॉल करके उनसे त्रिशूल ही मंगा लो आखिर वे किस दिन काम आएंगे।'
'मांगा था, मैंने त्रिशूल मांगा था लेकिन शिवजी ने भी हाथ खड़े कर दिए,
बोले मेरे सारे त्रिशूल तो तोगडि़या ले गए। मैं स्वयं निहत्था बैठा हूं' राम की
आवाज़ भर्रा गई। 'तब तो वाकई चिन्ता करनी होगी' हनुमान बोले, 'क्योंकि
मेरी गदा भी बजरंग दल वालों ने कहीं छिपा दी है।' 'इसीलिए मैं कहता हूं
केसरीनन्दन के ये समय लड्डू खाने का नहीं बल्कि भारत पर तरस खाने
का है 'रामजी बोले, 'बचालो.....बचालो मेरे देश को, अगर बचा सकते हो,
लड्डू का क्या है, ये तो अगले बर्थ डे पर भी खा सकते हो' कहकर भगवान
श्री राम अपने बेडरूम की ओर बढ़ गए। हनुमानजी ठगे से देखते रह गए
1751 किलो के लड्डू को, कभी उदास ड्राइंग रूम को और कभी अपनी
विवशता को। उनकी भूख मिट चुकी थी, उनका उत्साह मर चुका था।
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
10 comments:
वाह वाह क्या मारा है सब को धो धो कर !!!!!
बहुत बढ़िया |
काश कि देश के नेता भी जाग जाये और अपनी अपनी कुर्सी की चिंता छोड़ कर देश की भी थोडी चिंता कर ले |
वैसे आपकी चिंता वाजिब है प्रभु |
Too Good.
ऐसे ही लड्डूओं के चक्कर में बंटाधार हुआ जा रहा है.
उत्तम व्यंग... सही नब्ज पकड़ी हैं वर्तमान राजनीति की
वाह बहुत अच्छे। आपकी चिन्ता वाजिब है।
बढिया व्यंग्य।बधाई।
मैं इसे व्यंग नहीं कहता हूँ ,साहित्यिक दृष्टिकोण से अति उत्तम रचना ! देखन में छोटा लागे पर घाव करे गंभीर ! बधाई स्वीकार हो अलबेलाजी !
कितना अच्छा लड्डू था यार सबकी आँखें खोल गया सिवा जनता और नेता के।
वाह्! अल्बेला जी, क्या व्यंग्य रचा है! बहुत खूब्!!
लेकिन ये नेता लोग नहीं समझने वाले!
AAAAALLLLLLBBBBBBBEEEEELLLLLAAAAAAAAAA JI JI JI JI JI
Such batata hun mera hal bhii kuchh aisa hii hai
Laddu khane kii ichha hii mar chukii. Bhookh bhii nahin bachii.
JAI HO PRABHU.
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