अटल बिहारी वाजपेयी हमारे देश के बहोत बड़े कवि हैं। बहोत बोले तो बहो... त
बड़े कवि हैं। इस बात का पता देश को तब चला जब वे प्रधानमन्त्री बन गए।
क्योंकि उससे पहले न तो लता मंगेश्कर ने उन्हें गाया, न जगजीतसिंह ने गाया,
न कुमार सानू ने गाया, न कविताओं का कोई हाहाकारी संकलन प्रकाश में आया
और न ही अखिल भारतीय कवि सम्मेलन कराने वालों ने उन्हें वरिष्ठ कवि के
रूप में बुलाया। लेकिन इससे क्या फ़र्क पड़ता है?, कवि तो वे हैं और बड़े भी हैं।
उन्होंने अपने शासनकाल में दो चीजें मुख्य रूप से बनाईं। एक स्वयं की
कविताओं का एलबम और दूसरा परमाणु बम। एलबम चला नहीं और बम को
चलाने की .जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन अटलजी चलते रहे। कविता में न सही,
राजनीति में ही सही, कहीं न कहीं चलते रहे। चलते-चलते उनके घुटने रिटायर
हो गए लेकिन वे न हुए। होते भी कैसे? वे ही तो वह डण्डी थे जिस पर कमल के
दल खिले हुए थे। डण्डी ही रिटायर हो जाए तो पत्तियां सूख नहीं जाएंगी?
कल रात अटलजी मेरे सपने में आ गए। अब मैं क्या जानूं क्यों आ गए?
बस....आ गए। हालांकि आजकल उनको ख़ुद के सपनों में भी आने की फ़ुर्सत नहीं
है, लेकिन मेरे में आ गए और बोले 'उठ! कविता सुन।' मैंने कहा, 'आदरणीय आज
नहीं कल।' वे बोले, 'नहीं आज, अभी और इसी वक्त।' उनके तेवर देख कर मैं कांप
गया लेकिन मैंने जाहिर नहीं होने दिया कि मैं उनके आभामण्डल से आतंकित हो
गया हूं। मैंने कहा, 'कविता बाद में होगी। पहले ये बताओ कि शादी हुई नहीं या
करवाई नहीं?' वे बोले, 'हो भी जाती और करा भी लेता, लेकिन अडवाणीजी ने
भण्डमार दिया। वे पूरे देश में चिल्ला चिल्ला कर कहते रहे, अटलजी को बहुमत
दो-अटलजी को बहुमत दो। अब इतना बड़ा नेता कहे कि अटलजी को बहु मत दो,
तो कोई कैसे दे देता?' मैंने कहा, 'ठीक है, अब ये बताओ कि कुंवारे आदमी के घुटने
कैसे घिस गए? चलो घिस भी गए तो इतने कैसे घिस गए कि बदलने पड़ गए,
साथ ही ये बताओ कि आप तो स्वदेशी वाले हो, फिर ख़ुद के घुटनों में अमेरिकी
पार्ट्स क्यों लगवाये?' वे मुस्कुराके बोले, 'बेटा, घुटने घिस तो इसलिए गए कि
तीन-तीन देवियों के सामने टिकाने पड़ते थे और बार-बार टिकाने पड़ते थे
सरकार बचाने के लिए। जबकि स्वदेशी बन्दे को विदेशी घुटने इसलिए लगवाने
पड़े, ताकि देश का मान-सम्मान बना रहे। अब ये घुटने कहीं भी टिकें, कितने भी
टिकें, कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि ये घुटने अब भारत के नहीं, अमेरिका के हैं।'
मैंने कहा, 'धन्य हो अटलजी, सुनाइए... अब आप अपनी कविता सुनाइए।'
अटलजी ने धोती ठीक की, बालों में हाथ फिराया
और आँखें मून्द कर शुरू हो गए-
पहले जैसे दिवस नहीं है,
पहले जैसी रात नहीं है
नेता तो अब भी हूं लेकिन पी.एम. जैसे ठाठ नहीं हैं
माया... ममता...
ललिता... सुषमा....
कोई कन्या साथ नहीं है...ये अच्छी बात नहीं है
अडवाणीजी अड़े हुए हैं,
घोड़ी पर ही चढ़े हुए हैं
मोदी, जोशी, राजनाथ सब उनके पीछे खड़े हुए हैं
मेरे होते वो बन जाएं
ऐसे तो हालात नहीं है, ये अच्छी बात नहीं है
अब हममें फीलगुड नहीं है,
क्योंकि सत्तारूढ़ नहीं हैं
क्या सुनायें कविता तुमको, कविताई का मूड नहीं है
मूड अगर बन जाए भी
तो कोई कविता याद नहीं है... ये अच्छी बात नहीं है
ये अच्छी बात नहीं है
ये अच्छी बात नहीं है
ये अच्छी बात नहीं है
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
7 comments:
क्या व्यंग किया है आपने.....हा हा हा हा हा!!!!!
ये अच्छी बात नहीं है .....
wonderfull कविता तो मैं आपकी वीडियो में देख चुका हूँ बहुत मजा आया था| पर ऊपर लिखी बातें वाह वा वाह वा कितनी गहरी और हंसाने को मजबूर करने वाली बाते है | वो घुटनों का घसना | वो बहुमत देना की बातें ग़ज़ब अलबेला जी तुस्सी सच्ची ग्रेट हो |
बरहतरिन व्यंग हा-हा-हा।
भई क्या बात है खत्री जी, क्या खूब व्यंग कसा है और वो इस रोचक अंदाज़ में की पढ़कर मज़ा आ गया. धन्य धन्य.
अटल जी पर भी व्यंग्य!!......ये अच्छी बात नही है।:)
बाप रे...क्या धांसू व्यंग्य लिख मारा है
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