लोग कहते हैं कि शहरों की अपेक्षा गाँव के लोग ज़्यादा सुखी और
स्वस्थ हैं। हो सकता है ये सच हो लेकिन गाँव के लोग भी कम दुखी
नहीं हैं । अभाव अभाव और अभाव के साथ साथ असुविधा और
अशिक्षा के चलते गाँव में गरीब का शोषण होता है और इतना
होता है कि सुनने वाले शहरी की रूह कांप उठे..............इसी बात
को सरल राजस्थानी भाषा में कहने की कोशिश की है मैंने इस
तुकबन्दी में ........
हा हा हा हा ..........राजीव तनेजा जी,
ये गुजराती नहीं राजस्थानी
भाषा है .......और कविता में व्यंग्य को आपने पकड़ लिया इसके लिए
आप को धन्यवाद
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______________राजस्थानी कविता
ऐ गाम है सा ...
ऐ गाम है सा
थे तो सुणयो इ होसी ...
अठै अन्न-धन्न री गंगा बैवै है
अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवै है
बीजळी ?
ना सा, जगण आळी बीजळी रो अठै कांइं काम ?
अठै तो बाळण आळी बीजळियां पड़ै है
कदै काळ री,
कदै गड़ां री,
कदै तावड़ै री
जिकी टैमो-टैम चांदणो कर देवै है
ऐ गाम है सा
अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवे है ...
दुकान ?
ना सा, बा दुकान कोनी
बा तो मसाण है
जिकी मिनख तो मिनख,
बांरै घर नै भी खावै है
बठै बैठ्यो है एक डाकी,
जिको एक रुपियो दे' र
दस माथै दसकत करावै है
पैली तो बापड़ा लोग,
आपरी जागा,
टूमां अर बळद
अढाणै राख' र करजो लेवै है
पछै दादै रै करज रो बियाज
पोतो तक देवै है
करजो तोई चढय़ो रैवे है
ऐ गाम है सा
अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवै है ...
डागदर?
डागदर रो कांई काम है सा ?
बिंरौ कांई अचार घालणो है ?
अठै
पैली बात तो कोई बीमार पड़ै कोनी
अर पड़ इ जावै तो फेर बचै कोनी
जणां डागदर री
अणूती
भीड़ कर' र
कांई लेवणो ?
ताव चढ़ो के माथो दुःखो
टी.बी. होवो चाये माता निकळो
अठै रा लोग तो
घासो घिस-घिस अर देवै है
अनै धूप रामजी रो खेवै है
ऐ गाम है सा
अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवै है
रामलीला?
आ थानै रामलीला दीठै ?
आ तो
पेटलीला है सा
जिकै म्है
घर रा सगळा टाबर-टिंगर
लड़ै है,
कुटीजै है ...
पेट तो किंरो इ कोनी भरै,
पण ...
मूंडो तो ऐंठो कर इ लेवै है
जणा इ तो दुनिया कैवै है
ऐ गाम है सा
अठै रा मिनख घणै इ मजै म्है रैवै है
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
4 comments:
खत्री जी, गुजराती भाषा तो मुझे आती नहीं लेकिन कोशिश करने पर आपकी रचना के मर्म को समझने में कुछ-कुछ सफल हो पाया हूँ... जिस तरह से आपने गांव के लोगों के दुख दर्द को बताया...वो समझ में आया...
आपकी ये रचना काबिले तारीफ है...
बहुत-बहुत बधाई
अलबेला जी पढकर अच्छा लगा, लेकिन माफि चाहुगां समझ नही पाया।
"अढाणै राख' र करजो लेवै है
पछै दादै रै करज रो बियाज
पोतो तक देवै है
करजो तोई चढय़ो रैवे है"
अलबेला भाई यह गाम के बारे मे लिख रहे हो कि अपने देश के बारे मे यहाँ भारत मे हर बच्चा कर्ज़ के साथ पैदा होता है
घणो चोखो लागो हुकुम आपनै राजस्थानी में पढ र । कमाल री पकड़ है आपमें सांच नै साची साची केवा में।
ओ हेत सदा बणयो रैवे सा ।
आपरी राजस्थानी आपने अडीके है सा।
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