नम्रता यदि ज्ञान से कुछ कम नहीं
तो अहम अज्ञान से कुछ कम नहीं
सड़ रहे हैं शव जहां पर प्राणियों के
वे उदर श्मशान से कुछ कम नहीं
जिस हृदय में प्रेम और करुणा नहीं
वो हृदय पाषाण से कुछ कम नहीं
इतनी महंगाई में भी ज़िन्दा हैं हम
यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं
आचरण यदि दानवों का छोड़ दे तो
आदमी भगवान से कुछ कम नहीं
काव्य में जिसके कलेजे की क़शिश है
वह कवि रसखान से कुछ कम नहीं
आपने अलबेला की कविताएं पढ़ लीं
यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं
तो अहम अज्ञान से कुछ कम नहीं
सड़ रहे हैं शव जहां पर प्राणियों के
वे उदर श्मशान से कुछ कम नहीं
जिस हृदय में प्रेम और करुणा नहीं
वो हृदय पाषाण से कुछ कम नहीं
इतनी महंगाई में भी ज़िन्दा हैं हम
यह किसी बलिदान से कुछ कम नहीं
आचरण यदि दानवों का छोड़ दे तो
आदमी भगवान से कुछ कम नहीं
काव्य में जिसके कलेजे की क़शिश है
वह कवि रसखान से कुछ कम नहीं
आपने अलबेला की कविताएं पढ़ लीं
यह किसी ऐहसान से कुछ कम नहीं
3 comments:
समय बदल गया। जिन असुरों से ड़र कर बार-बार स्वर्ग छोड़ने की चिंता सताती थी, देवों को, पता नहीं किसकी अक्लमंदी ने उन असुरों को मंहगाई का रूप दे हमारे पीछे लगा दिया। (-:
बहुत खूब ,अलबेला जी , एहसान हम नहीं आप कर रहें है कवितायें लिख कर और पढ़वा कर | खुद ही कह रहें है रसखान से कम नहीं और खुद ही ये अहसान की बातें ?
सत्य वचन...
शारदा जी की बात से पूर्णत्या सहमत
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