अरुण की लालिमा में जब गगन से ओस गिरती है
उजाले की किरण जब इस धरा पर पांव धरती है
हवा में हर दिशा जब मरमरी आभा बिखरती है
सरोवर में कमल कलिकायें जिस दम खिलखिलाती हैं
तुम्हारी याद आती है
यदि योगी तपस्वी साधु सिद्ध जब ध्यान करते हैं
गुरूद्वारे गुरूवाणी का जब गुणगान करते हैं
हरम पे चढ़ के बांगी जिस घड़ी अज़ान करते हैं
शिवाले में स्तुति की घंटियां जब घनघनाती हैं
तुम्हारी याद आती है
गली में जब मुरग़ की कुकड़ कूं आवाज़ आती है
निकल कर घोंसले से चिडि़या जिस दम चहचहाती है
मयुरी अपने पिव के संग जब ठुमका लगाती है
मधुर कंठी कोयलिया जब विरह के गीत गाती है
तुम्हारी याद आती है
घटा घनघोर चारों ओर जब अम्बर में घिरती है
नगाड़ों की तरह जब बदलियां गड़-गड़ गरज़ती हैं
रिदम के साथ जब रिमझिम झमाझम बूंदे गिरती हैं
चपल चन्चल चमकती दामिनी जब कड़कड़ाती है
तुम्हारी याद आती है
शबे-पूनम में पीला चॉंद जिस दम जगमगाता है
क्षितिज में एक नन्हा तारा ध्रुव जब मुस्कुराता है
सितारा शुक्र जब शफ्फ़ाक होकर चमचमाता है
गगन में जब कोई आकाश-गंगा झिलमिलाती है
तुम्हारी याद आती है
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
-
शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
5 comments:
शबे-पूनम में पीला चॉंद जिस दम जगमगाता है
क्षितिज में एक नन्हा तारा ध्रुव जब मुस्कुराता है
सितारा शुक्र जब शफ्फ़ाक होकर चमचमाता है
गगन में जब कोई आकाश-गंगा झिलमिलाती है
तुम्हारी याद आती है
वाह अलबेला जी बेहतरिन रचना। आपकी ये रचना सिधे दिल तक पहुचं रही हैं।
आपकी याद के साथ प्रकृति चित्रण बहुत मधुर बन पड़ा है...
बधाई स्वीकार करें...
एक बात और जानना चाहूँगा कि आप ऐसे हिन्दी के गूढ शब्द कहाँ से ढूँढ कर लाते हैँ?
बहुत ही सुन्दरता से पिरोये गये शब्द.....सुन्दर मधुर रचना. आभार.
बढिया रचना है।बधाई।
अरुण की लालिमा में जब गगन से ओस गिरती है
उजाले की किरण जब इस धरा पर पांव धरती है
हवा में हर दिशा जब मरमरी आभा बिखरती है
सरोवर में कमल कलिकायें जिस दम खिलखिलाती हैं
तुम्हारी याद आती है
वाह .. बढिया रचना !!
Post a Comment