रात के ग्यारह बजे हैं। मैं इण्डिया टी.वी. पर ब्रेकिंग न्यू.ज देख रहा हूं और देखते-
देखते रो पड़ा हूं। देख भी रहा हूं और रो भी रहा हूं देखता जा रहा हूं और रोता जा
रहा हूं क्योंकि टी.वी. स्क्रीन पर एक नन्हा सा मासूम बच्चा अपने छोटे-छोटे
कोमल हाथों से बड़े-बड़े जूते पॉलिश कर रहा है। बताया गया कि इस अबोध
बालक पर पूरा घर चलाने की ज़िम्मेदारी है इसलिए बड़ों-बड़ों को झुलसा देने
वाली इस गर्मी में, इतनी कम उम्र में भी उसे ऐसी मेहनत-मजूरी करनी पड़
रही है। इस करुणापूर्ण दृश्य का वीडियो बनाकर ''एक अलर्ट व्यूअर'' गौरव
अग्रवाल ने भेजा है जो रजत शर्मा को बहुत पसन्द आया इसलिए उसे अमुक
इंच का एक टी.वी. सेट इनाम में देने की घोषणा की गई।
घोषणा करने वाली समाचार सुन्दरी मुस्कुरा रही थी, रजत शर्मा भी मुस्कुरा
रहे थे, गौरव अग्रवाल भी मुस्कुराये होंगे और मज़े की बात तो ये है कि अगर
उस बच्चे ने स्वयं को टी.वी. पर देखा होगा तो वह भी ख़ुशी से मुस्कुराया ही
होगा लेकिन मैं हूं कि रोता चला जा रहा हूं। अब कुछ लोगों की तक़दीर में ही
रोना लिखा हो, तो कोई क्या कर सकता है?
लेकिन भाई लोगो, मेरे रोने का कारण ये नहीं कि उस बच्चे की दारुण दशा पर
मुझे दुःख हो रहा है, न ही इसलिए रो रहा हूं कि टी.वी. मुझे क्यों नहीं मिला
बल्कि मैं तो रो रहा हूं इन चैनल वालों को, इनकी बुद्धि को और इनकी निर्मम
व्यावसायिकता को जो उस बच्चे का वीडियो बनाने वाले को तो हज़ारों रुपये
का टी.वी. दे सकते हैं लेकिन उस बच्चे की या उसके परिवार की मदद नहीं
कर सकते। मैं रो रहा हूं उस वीडियो ग्राफर 'अलर्ट व्यूअर' को जिसने उस
बालक का ऐसा लिजलिजा वीडियो तो बना लिया लेकिन उसके आंसू नहीं पोंछे।
क्या फर्क़ है स्लमडॉग मिलेनियर बनाने वाले विदेशी निर्माता में और इसमें?
बड़ी मूवी बनाके ऑस्कर जीत लिया तो इसने छोटा वीडियो बनाके टी.वी. जीत
लिया....दोनों ही सम्वेदना शून्य हैं, दोनों ही गरीबों की गरीबी का उपहास उड़ाने
वाले हैं और दोनों ही मानवीयता के पतन की सीमा रेखा से नीचे जीवनयापन
करने वाले लोग हैं। अरे रजत शर्मा और गौरव अग्रवाल...तुम्हें वीडियो ही
दिखाना था तो उस बालक की हिम्मत का दिखाते, उसके दुःसाहस का दिखाते,
उसकी कर्मठता का दिखाते और उसकी खुद्दारी का दिखाते...जो इतना नन्हा
होकर भी हालात से लोहा ले रहा है और अपने पूरे परिवार को चलाने के लिए
लोगों के जूते पॉलिश कर रहा है... इनाम ही देना था तो उस बालक को देते...
लेकिन तुम क्यों देने लगे उसे इनाम? तुम जानते हो कि एक को दे दिया तो
कल लाइन लग जाएगी। क्योंकि हमारे देश में ऐसी ज़िन्दगी जीने वाले
दरिद्र और मजबूर लोगों की कोई कमी नहीं है। एक लम्बी कतार है जिन्हें न
पंजे वाले सम्हालते हैं, न कमल वाले पूछते हैं, न हाथी वाले मदद करते हैं, न
हंसिया-हथौड़े वाले इनकी खैर खबर पूछने आते हैं, न तो कोई घड़ी इन्हें
कभी सही टाइम दिखाती है न ही लालटेन की रोशनी इनकी झोपड़ी तक
पहुंचती है। इन अभागों की आँखों के आंसू तो स्वयं ही सूखते हैं- पोंछने कोई
नहीं आता। इससे ज्य़ादा दुर्भाग्य और विडम्बना की बात क्या होगी दया को
धर्म का मूल बताने वाले और करुणा को सर्वोपरि मानवीय संस्कृति समझने
वाले भारत के लोग इतने निर्दयी और कठोर होते जा रहे हैं कि उनको दूसरे
के दर्द की टीस महसूस नहीं होती बल्कि दूसरों की वेदना का भी व्यापार
करने में लगे हैं। ऐसी हालत में मुझ जैसा कोमल हृदयी कलमकार तो क्या
कोई भी रो पड़ेगा।
उदर की आग में जलता जहां इन्सान रोता है
ज़मीं के हाल पर यारो वहां आस्मान रोता है
किसे फ़ुर्सत, कोई देखे वतन के ज़ख्म 'अलबेला'
कि अपने हाल पर अक्सर ये हिन्दुस्तान रोता है
-अलबेला खत्री
देखते रो पड़ा हूं। देख भी रहा हूं और रो भी रहा हूं देखता जा रहा हूं और रोता जा
रहा हूं क्योंकि टी.वी. स्क्रीन पर एक नन्हा सा मासूम बच्चा अपने छोटे-छोटे
कोमल हाथों से बड़े-बड़े जूते पॉलिश कर रहा है। बताया गया कि इस अबोध
बालक पर पूरा घर चलाने की ज़िम्मेदारी है इसलिए बड़ों-बड़ों को झुलसा देने
वाली इस गर्मी में, इतनी कम उम्र में भी उसे ऐसी मेहनत-मजूरी करनी पड़
रही है। इस करुणापूर्ण दृश्य का वीडियो बनाकर ''एक अलर्ट व्यूअर'' गौरव
अग्रवाल ने भेजा है जो रजत शर्मा को बहुत पसन्द आया इसलिए उसे अमुक
इंच का एक टी.वी. सेट इनाम में देने की घोषणा की गई।
घोषणा करने वाली समाचार सुन्दरी मुस्कुरा रही थी, रजत शर्मा भी मुस्कुरा
रहे थे, गौरव अग्रवाल भी मुस्कुराये होंगे और मज़े की बात तो ये है कि अगर
उस बच्चे ने स्वयं को टी.वी. पर देखा होगा तो वह भी ख़ुशी से मुस्कुराया ही
होगा लेकिन मैं हूं कि रोता चला जा रहा हूं। अब कुछ लोगों की तक़दीर में ही
रोना लिखा हो, तो कोई क्या कर सकता है?
लेकिन भाई लोगो, मेरे रोने का कारण ये नहीं कि उस बच्चे की दारुण दशा पर
मुझे दुःख हो रहा है, न ही इसलिए रो रहा हूं कि टी.वी. मुझे क्यों नहीं मिला
बल्कि मैं तो रो रहा हूं इन चैनल वालों को, इनकी बुद्धि को और इनकी निर्मम
व्यावसायिकता को जो उस बच्चे का वीडियो बनाने वाले को तो हज़ारों रुपये
का टी.वी. दे सकते हैं लेकिन उस बच्चे की या उसके परिवार की मदद नहीं
कर सकते। मैं रो रहा हूं उस वीडियो ग्राफर 'अलर्ट व्यूअर' को जिसने उस
बालक का ऐसा लिजलिजा वीडियो तो बना लिया लेकिन उसके आंसू नहीं पोंछे।
क्या फर्क़ है स्लमडॉग मिलेनियर बनाने वाले विदेशी निर्माता में और इसमें?
बड़ी मूवी बनाके ऑस्कर जीत लिया तो इसने छोटा वीडियो बनाके टी.वी. जीत
लिया....दोनों ही सम्वेदना शून्य हैं, दोनों ही गरीबों की गरीबी का उपहास उड़ाने
वाले हैं और दोनों ही मानवीयता के पतन की सीमा रेखा से नीचे जीवनयापन
करने वाले लोग हैं। अरे रजत शर्मा और गौरव अग्रवाल...तुम्हें वीडियो ही
दिखाना था तो उस बालक की हिम्मत का दिखाते, उसके दुःसाहस का दिखाते,
उसकी कर्मठता का दिखाते और उसकी खुद्दारी का दिखाते...जो इतना नन्हा
होकर भी हालात से लोहा ले रहा है और अपने पूरे परिवार को चलाने के लिए
लोगों के जूते पॉलिश कर रहा है... इनाम ही देना था तो उस बालक को देते...
लेकिन तुम क्यों देने लगे उसे इनाम? तुम जानते हो कि एक को दे दिया तो
कल लाइन लग जाएगी। क्योंकि हमारे देश में ऐसी ज़िन्दगी जीने वाले
दरिद्र और मजबूर लोगों की कोई कमी नहीं है। एक लम्बी कतार है जिन्हें न
पंजे वाले सम्हालते हैं, न कमल वाले पूछते हैं, न हाथी वाले मदद करते हैं, न
हंसिया-हथौड़े वाले इनकी खैर खबर पूछने आते हैं, न तो कोई घड़ी इन्हें
कभी सही टाइम दिखाती है न ही लालटेन की रोशनी इनकी झोपड़ी तक
पहुंचती है। इन अभागों की आँखों के आंसू तो स्वयं ही सूखते हैं- पोंछने कोई
नहीं आता। इससे ज्य़ादा दुर्भाग्य और विडम्बना की बात क्या होगी दया को
धर्म का मूल बताने वाले और करुणा को सर्वोपरि मानवीय संस्कृति समझने
वाले भारत के लोग इतने निर्दयी और कठोर होते जा रहे हैं कि उनको दूसरे
के दर्द की टीस महसूस नहीं होती बल्कि दूसरों की वेदना का भी व्यापार
करने में लगे हैं। ऐसी हालत में मुझ जैसा कोमल हृदयी कलमकार तो क्या
कोई भी रो पड़ेगा।
उदर की आग में जलता जहां इन्सान रोता है
ज़मीं के हाल पर यारो वहां आस्मान रोता है
किसे फ़ुर्सत, कोई देखे वतन के ज़ख्म 'अलबेला'
कि अपने हाल पर अक्सर ये हिन्दुस्तान रोता है
-अलबेला खत्री
6 comments:
बिल्कुल सही कहाँ आपने अलबेला जी, जब भारत के लोग जो की यहाँ के रहने वाले है इस बात को नही समझ पायें तो स्लमडाग के निर्माता से क्या उम्मीद की जा सकती है। और ये मिडिया वालो का कोई पहला ऐसा काम नही है, ये लोग भारत कि गरिबी को ज्यादा दिखाने की कोशिश करते है न की मजबूरी को।
"samvedna ka baazar laga hai"
..kharidaar khud dalal hai jo samvendnaiye kharid ke doosre ko bechega...
pata hi nahi 'dard' kahan se nikla kiska tha?
baaton baaton main bada hi samayik mojoou chera hai aapne.
वाह! अल्बेलाजी वाह! भारत की एक तस्वीर रख़दी आपने सब के सामने।
सहारा छूट जाता है कभी ऐसा भी होता है,
खिलौना टूट जाता हैं तो बच्चा बहुत रोता है।
मेरे हिन्दोस्ताँ के हाल पर आँसू बहाओ मत,
गधं के भार को आखिर गधा खुश होके ढोता है।
bahut hi sahi kaha hai apane ......sahi aaj kisi ke pas wakt sirf apane sochane ke liye hai dusare ke bare me sochane ke liye nahi bachi hai ..........marm ko sparsh karati lekh
इन मीडिया वालों पर बाज़ारवाद इतना हावी हो चुका है कि उन्हें वही चीज़ दिखाई और सुझाई देती जो उनके चैनल की टी.ऑर.पी बढा सके...अर्थात ज़्यादा से ज़्यादा विज्ञापन खींच सके
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