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नरेश कुमार 'शाद' की ग़ज़ल............

यों आए वो रात ढले

जैसे जल में जोत जले



मन में नहीं यह आस तेरी

चिन्गारी है राख तले



हर रुत में जो हँसते हों

फूलों से वो ज़ख्म भले



वक्त का कोई दोष नहीं

हम ही अपने साथ चले



आँख जिन्हें टपका सकी

शे'रों में वे अश्क ढले

_____________________शायर - नरेश कुमार 'शाद'
____________________संकलन - अलबेला खत्री

3 comments:

Arshia Ali August 7, 2009 at 3:40 PM  

Achchhee hai.
{ Treasurer-TSALIIM & SBAI }

प्रिया August 7, 2009 at 4:04 PM  

हर रुत में जो हँसते हों

फूलों से वो ज़ख्म भले



वक्त का कोई दोष नहीं

हम ही न अपने साथ चले good lines

Udan Tashtari August 7, 2009 at 4:49 PM  

नरेश कुमार 'शाद'को पढ़ना अच्छा लगा. आभार आपका.

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