नया घाव है प्रेम का जो चमके दिन-रात
होनहार बिरवान के हिकने-चिकने पात
यही जगत की रीत है, यही जगत की नीत
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
जो न मिटे ऐसा नहीं कोई भी संजोग
होता आया है सदा मिलन के बाद वियोग
जग के आँसू बन गए निज नयनों के नीर
अब तो अपनी पीर भी जैसे पराई पीर
कहाँ कमर सीधी करे, कहाँ ठिकाना पाय
तेरा घर जो छोड़ दे, दर-दर ठोकर खाय
जगत-धुदलके में वही चित्रकार कहलाय
कोहरे को जो काट कर अनुपम चित्र बनाय
बन के पंछी जिस तरह भूल जाय निज नीड़
हम बालक सम खो गए, थी वो जीवन-भीड़
याद तेरी एकान्त में यूँ छूती है विचार
जैसे लहर समीर की छुए गात सुकुमार
मैंने छेड़ा था कहीं दुखते दिल का साज़
गूँज रही है आज तक दर्द भरी आवाज़
दूर तीरथों में बसे, वो है कैसा राम
मन-मन्दिर की यात्रा,मूरख चारों धाम
वेद,पुराण और शास्त्रों को मिली न उसकी थाह
मुझसे जो kuchh kah gayi , इक बच्चे की निगाह
____________________रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी
____________________संकलन अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
4 comments:
यही जगत की रीत है, यही जगत की नीत
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
बात इकदम पते की है।
कौन कहता है उर्दू एक ही समुदाय की ज़बान है????
bahut hi khubsoorat hai aapaki kawita ......our kawita me ubhare vichar............jo padhane ke baad man ko shakun deta hai
firaak gorakhpuri ko le aaye is baar aap......raheem kabir ke siwa kisi ke dohe nahi padhe they achcha laga inhe padhkar
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