'घर में नहीं दाने, पर अम्मा चली भुनाने' ये एक मुहावरा है और बड़ा प्यारा
मुहावरा है। इसका रचयिता कौन था, इसका जन्म कहां और किन हालात में
हुआ, इसकी मुझे न तो कोई जानकारी है तथा न ही मैं जानने को उत्सुक हूं।
अपने को क्या लेना-देना यार, कोई भी हो, हमें क्या फ़र्क पड़ता है? हमें अपने
ख़ुद के दादाजी के दादाजी का नाम मालूम नहीं है तो दूसरों का इतिहास पढऩे
का औचित्य ही क्या है। हां, इस मुहावरे का अर्थ अपन जानते हैं, इसलिए
गाहे-ब-गाहे यूज ज़रूर कर लेते हैं। आज भी करेंगे, क्योंकि चुनाव आयोग
ने देश में एक आदर्श आचार संहिता लागू कर रखी है और ये संहिता उन लोगों
के लिए लागू कर रखी है जिनका न तो कोई आदर्श है, न ही आचार। इसलिए
ये आचार संहिता, लाचार संहिता बन चुकी है। रोज़ -रोज़ इस संहिता का
शीलभंग होता है, रोज़ मुकदमें दर्ज़ होते हैं, लेकिन साक्ष्य के अभाव में
पीड़िता को न्याय नहीं मिल पा रहा। अब तो जैसे ''करत-करत अभ्यास के
जड़मति होत सुजान, रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निसान'' वाली
स्थिति हो गई है। अब तो आचार संहिता को बार-बार भंग होने की आदत
सी पड़ गई है, इसलिए इसे उतनी तकलीफ़ नहीं होती जितनी कि शुरू-शुरू
में होती थी। लेकिन विषय चिन्ता का है और चिन्ता करनी चाहिए इसलिए
कर लेते हैं क्योंकि अपने देश की चिन्ता अपने को ही करनी है, बराक
ओबामा तो इस काम के लिए आएगा नहीं।
देखा जाए तो आचार संहिता से हमें कोई ख़ास ऐतराज़ नहीं है। आप लगाओ,
ज़रूर लगाओ, एक्सट्रा पड़ी हो, तो दो-चार एक साथ लगाओ लेकिन पहले
कहीं आचार तो दिखाओ। कहीं तो दिखाओ, किसी के पास तो दिखाओ। अरे
जब आचार ही नहीं है तो संहिता को क्या शहद लगाकर चाटें? बहुत हो गया
नाटक, अब ये चूहे बिल्ली का तमाशा बन्द करो । जब आप किसी अपराधी
को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य बता देते हैं तो वो अपनी लुगाई को मैदान
में उतार देता है। आप 10 बजे लाउडस्पीकर बन्द करा देते हैं, तो टी.वी. पर
विज्ञापन और भाषण शुरू हो जाते हैं जो रात भर चलते हैं। आप जनसभाओं
की वीडियो शूटिंग करते हैं तो लोग उस फुटेज़ को डब किया हुआ तथा फ़र्जी
बता देते हैं। क्या तीर मार लिया आचार संहिता ने? सिवाय इसके कि जनता
के सारे काम रुक गए। न कोई नया काम शुरू हो सकता है, न ही कोई घोषणा
हो सकती है। इसलिए मैं कहता हूं ये आचार संहिता आचार संहिता नहीं,
लाचार संहिता है। इसके पास कोई चारा नहीं। सारा चारा भाई लोगों के पेट में
पहुंच चुका है और देश का भाईचारा अलगाव की लपेट में पहुंच चुका है।
अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं? देश को अब आचार संहिता की नहीं,
विचार संहिता की ज़रूरत है। क्योंकि आचार तो एक क्रिया है और क्रिया करने
से होती है अपने आप नहीं होती जबकि करने में अपन कितने आलसी हैं ये
तो बताने की बात ही नहीं है, दुनिया जानती है। विचार जो है वो कारण है और
क्रिया की जननी है। इसे करना भी नहीं पड़ता क्योंकि ये स्वयंभू है। समय
साक्षी है, हमारे राजनीतिकों के आचार से ज्य़ादा विचार दूषित हैं। दूषित
विचार से शुद्ध आचार का सृजन हो ही नहीं सकता इसलिए आचार संहिता का
अचार डालो और विचार संहिता लागू करो क्योंकि अब देश में विचार विषैले
हो गए हैं और बहुत ज्य़ादा विषैले हो गए हैं।
'एक सांप ने एक नेता को डसा, नेता मज़े में पर सांप चल बसा' क्योंकि आज
का स्वार्थी और सत्तालोलुप नेता सांप से भी ज्य़ादा ज़हरीला हो गया है, इतना
हुआ कठोर कि पथरीला हो गया है। इसका इलाज करो, जैसे भी होता हो जिस
तकनीक से भी होता हो करो, वर्ना ये सांप पूरे देश को डस जाएगा और तुम्हारी
आचार संहिता खड़ी-खड़ी देखती रह जाएगी।
'सादा जीवन- उच्च विचार' इस देश की व देश के महान नेताओं की परम्परा रही
है। इस परम्परा को बचाने के लिए विचार पर नियन्त्रण करो। अन्यथा तुम
कितनी भी पाबन्दियां लगाओ, कितनी भी शूटिंग कराओ और चाहे कितने
ही मुकदमें दर्ज़ कराओ, नतीजा ठन-ठन गोपाल ही आने वाला है।
'तुम मुझे ख़ून दो- मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' एक विचार था, 'अहिंसा परमोधर्मः'
भी विचार था, 'ग़ाजिय़ों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते-लन्दन तक
चलेगी तेग़ हिन्दोस्तान की' भी विचार था और 'जय जवान'-'जय किसान' के
अलावा 'गरीबी हटाओ- देश बचाओ', 'तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार
रहें न रहें' इत्यादि विचारों ने हमारे राष्ट्र और जनमानस को देश प्रेम से
सराबोर किया है जबकि आजकल 'तिलक-तराजू और तलवार-इनके मारो
जूते चार' जैसे विषैले विचार देश में घृणा का वातावरण बनाये हुए हैं। कोई
किसी को बुढिय़ा बता रहा है, कोई किसी के हाथ काटने की बात करता है,
कोई उत्तर भारतीयों के पीछे लठ्ठ लेके पड़ा है और कोई माँ जितनी
उम्रदराज़ महिला (महिला भी ऐसी-वैसी नहीं सर्वांगशक्तिमान मुख्यमंत्री
सुश्री मायावती) को सार्वजनिक रूप से पप्पी देने की बात करता है तो बड़ा
खेद होता है विचारों के इस सामूहिक पतन पर।
रोको, विचारों को अश्लील, अभद्र और अमानवीय होने से रोको अगर रोक
सकते हो। नहीं रोक सकते तो आचार संहिता के ढक़ोसले को ही रोक लो,
भगवान तुम्हारा भला करेगा। क्योंकि इस आचार संहिता से नेता नहीं
जनता परेशान है। बाकी तुम जानो और तुम्हारा सिस्टम जाने।
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
3 comments:
रोको, विचारों को अश्लील, अभद्र और अमानवीय होने से रोको अगर रोक सकते हो। नहीं रोक सकते तो आचार संहिता के ढक़ोसले को ही रोक लो,भगवान तुम्हारा भला करेगा। क्योंकि इस आचार संहिता से नेता नहीं जनता परेशान है।
नेक सलाह के लिए धन्यवाद।
इस लाचार संहिता का अचार कैसा रहेगा:)
रोको, विचारों को अश्लील, अभद्र और अमानवीय होने से रोको अगर रोक
सकते हो। नहीं रोक सकते तो आचार संहिता के ढक़ोसले को ही रोक लो,
भगवान तुम्हारा भला करेगा। क्योंकि इस आचार संहिता से नेता नहीं
जनता परेशान है। बाकी तुम जानो और तुम्हारा सिस्टम जाने।
काश ये सब बन्दं हो जाता, और क्यों ना अच्छे विचारो का आदान प्रदान होता तो कितना अच्छा होता।
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