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विदेशों में दो कौड़ी का हिन्दी लेखन ..भाग 3

हाँ तो नित्यानंदजी महाराज,
नॉर्थ अमेरिका के नॉर्थ कैरोलाइना में राले शहर निवासी डॉ० अफरोज़ ताज का नाम भी आपने नहीं सुना होगा ......उनकी भी कई पुस्तकें आ चुकी हैं ...

उनके कुछ शे'र मुलाहिजा फरमाइए :

किसी महफ़िल में अब तो चाँद का चर्चा नहीं रहता
कि जब से आपके चेहरे पे वह परदा नहीं रहता

ग़मों की आग से तप कर ही इन्सान जगमगाता है
अगर सूरज न होता, चाँद का चेहरा नहीं रहता

खिज़ाओं में ही बनते हैं ये सारे आशियाँ प्यारे
बहारों में तो सूखा एक भी पत्ता नहीं रहता

तुम्हारे सामने होता हूँ तो ho जाता हूँ तन्हा
तुम्हारी याद में रहता हूँ तो तन्हा नहीं रहता

अगर दीवार न होती , अगर हम साथ रह लेते
हमारे आँगनों में कोई भी झगड़ा नहीं रहता

हसीं हो ताज की तरहा मगर अन्दर से पत्थर हो
तुम्हारे दिल में कोई दर्द का मारा नहीं रहता

______________ताज साहेब का एक क़ता भी देखिये.....

मधुबन के गुलों में पसे-खुशबू नज़र आया

इस नीमबाज़ आँख में हर सू नज़र आया

चाहे ग़ज़ल हो मीर की, मीरा का भजन हो

हर लफ्ज़ के परदे में मुझे तू नज़र आया
__________________________क्या ये लेखन दो कौड़ी का है ?
सच बोलना....आपको मारीशस की क़सम है......

चलो और आगे बढ़ते हैं .....
________________चाय पी के मिलते हैं......जल्दी ही लौटता हूँ
____________________क्रमश:

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी June 25, 2009 at 6:20 PM  

भाई दोनों शानदार हैं। अफरोज़ ताज़ हिन्दी ब्लाग के लिए बिलकुल अनजान नहीं हैंष उन पर आलेख मैं कोई साल भर पहले अनवरत में लिख चुका हूँ। आप चाहें तो यहाँ http://anvarat.blogspot.com/2008/07/blog-post_03.html और यहाँ http://anvarat.blogspot.com/2008/07/blog-post_05.html जा कर पढ़ सकते हैं।

राज भाटिय़ा June 25, 2009 at 6:36 PM  

किसी महफ़िल में अब तो चाँद का चर्चा नहीं रहता
कि जब से आपके चेहरे पे वह परदा नहीं रहता
सभी शेर जनाब बहुत सुंदर है हम तक यहां लाने के लिये आप का धन्यवाद

Atmaram Sharma June 25, 2009 at 7:05 PM  

धोबीपछाड़ बढ़िया है.

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