घृणित कहो
बर्बर कहो
जघन्य कहो
शर्मनाक कहो
अमानुषी कहो
घिनौना कहो
बहुत से शब्द हैं, कुछ भी कहो
लेकिन बलात्कार को पाशविक मत कहो
मुझे दु:ख होता है
बड़ा दु:ख होता है
मैं पशु नहीं
लेकिन पशुओं को जानता हूँ
वे ऐसा नहीं करते
कभी नहीं करते ........................
उन्होंने सीखा ही नहीं ऐसा करना
ये महारत तो केवल मानव ही करता है
और कर सकता है
क्योंकि
अभी केवल मानव ही इतना सभ्य और विकसित हुआ है
इसलिए
देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो
पशुओं का नाम बदनाम न करो
बर्बर कहो
जघन्य कहो
शर्मनाक कहो
अमानुषी कहो
घिनौना कहो
बहुत से शब्द हैं, कुछ भी कहो
लेकिन बलात्कार को पाशविक मत कहो
मुझे दु:ख होता है
बड़ा दु:ख होता है
मैं पशु नहीं
लेकिन पशुओं को जानता हूँ
वे ऐसा नहीं करते
कभी नहीं करते ........................
उन्होंने सीखा ही नहीं ऐसा करना
ये महारत तो केवल मानव ही करता है
और कर सकता है
क्योंकि
अभी केवल मानव ही इतना सभ्य और विकसित हुआ है
इसलिए
देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो
पशुओं का नाम बदनाम न करो
19 comments:
kya baat kahi .......mai to aapke is kawitaa par kurban ho gaya bhai
kyaa baat haen itnae ghambhir muddae kaa ek aur pehlu jo satya haen
rachna
gsjsb ki rschna hai......
aadmi ka sahi chehra dikhaya hai aapne........
बढ़िया!!
बढ़िया!
wah albela bhai..kya gajab kaa fark bataya aapne pashu aur insaan ke beech..
वाह.............. कितनी gahri anubhooti से कही है यह बात........... सच कहा ये तो pashoo भी नहीं करते
वाह अलग ढंग से कहा गया यथार्थ
बहुत ही सुन्दर
बहुत सही कहा आपने.
रामराम.
वाकई, बेचारे पशुओं को खामखाँ बदनाम क्यूँ करना!
ek behad shashakt rachna ....aapki kalam ko salaam
sateek likha......
samsamyik aur sattik .....sadhuvad
अच्छी खबर ली नरपिशाचों की।
बहुत असरदार..
सुन्दर कविताएं. सुधा जी को समर्पित कविता बहुत ही प्रभावी है. बलात्कार कविता अपनी बात गहनता से सम्प्रेषित कर जाती है.
बधाई
रूपसिंह चन्देल
gajab ji
jab janwar koi inshan ko mare wahshi use kahte hai sare .
aaj ek inshan ne janwar ki laj bacha li .
www.bebkoof.blogspot.com
लेकिन पशुओं को जानता हूँ
वे ऐसा नहीं करते
कभी नहीं करते ........................
देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो
पशुओं का नाम बदनाम न करो
bahut sahi aur achha likha hai..
BILKUL THEEK KAHAA
मृगकन्या
जंगल में अधिक सुरक्षित
महसूस करती है
क्योंकि
वहाँ भेड़िया,
भेड़िया ही नज़र आता है,
उसके आदमी के खाल में होने का
डर नहीं है ,
क्योंकि
जंगल,
जंगल है,
शहर नहीं है।
DR. JAGMOHAN RAI
www.jagmohanrai.blogspot.com
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