अलबेला जी,
मैंने युवा पर लेख और आप के उत्तर पढ़े हैं।
उन्होंने अपना काम किया और हम अपना काम कर रहे हैं।
बहुत से आलोचक ऐसा कहते हैं।
हो सकता है कि उन्होंने यू .के और अमेरिका का
साहित्य पढ़ा ही न हो।
आप हंस, नया ज्ञानोदय, वागर्थ ,कथादेश, आधारशिला
कोई भी पत्रिका उठा लीजिये, आप को प्रवासी लेखक
मुख्य धारा से जुड़े मिलेंगे. कई लेखकों को तो मुख्य धारा का
मान भी लिया गया है. भारत में आए दिन पत्रिकाएँ प्रवासी अंक
निकाल रही हैं -क्यों ?
रचनाओं में दम-ख़म नहीं तो पत्रिकाएँ पाठकों को क्या परोसेंगी?
यह एक लम्बी बहस का मुद्दा है. बस इतना कहूँगी
कि हिंदी साहित्य कहीं भी रचा जा रहा है वह साहित्य है
-प्रवास या देश की कोई बात नहीं।
भारत में कई अच्छा लिखने वाले आलोचकों की बलि चढ़ गए
तो हम तो ठहरे परदेसी।
पाठक हैं न --जिनपर भरोसा है।
व्यस्तताओं के कारण कल उत्तर नहीं दे पाई।
क्षमा प्रार्थी हूँ।
सादर,
-सुधा ओम ढींगरा
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आदरणीय दीदी सुधाजी,
नमस्कार ।
आपका अभिमत प्राप्त होते ही इसे मैं प्रकाशित कर रहा हूँ ।
हालाँकि मैंने जो लिखा उसकी भाषा कुछ कड़वी थी
लेकिन मेरी बात सही थी ....किसी को भी ये हक़ नहीं बनता कि वह
आप जैसे प्रवासी भारतीयों के हिन्दी प्रेम और साहित्य सृजन के
प्रति सतत समर्पण को अपमानित करे ।
वो तो उधर से कोई जवाब नहीं मिला वरना मैं उन्हें बताता कि आप लोग
किन परिस्थितियों में रह कर हिन्दी की ज्योत वहां जलाए हुए हैं ।
आपने जो महत्ती कार्य किया है , न केवल स्वयं को बल्कि अपने क्षेत्र के
कितने ही अन्य लेखकों को भी स्थापित करने का श्रम किया है ।
वह किसी से छुपा नहीं है । सिर्फ़ "मेरा दावा है " पुस्तक भी वे
देखलें तो आँखें फटी की फटी रह जायेंगी ।
खैर जाने दो......भगवान उन्हें सदबुद्धि दे चुका है शायद .....
सधन्यवाद,
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
1 comments:
Bahut hee sateek aur shaandaar pratikriya. Badhai
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