नई पीढ़ी के चेहरों को नज़र किसकी लगी हाये
नशे के दाँत इन फूलों की मासूमी न जाये
नग्नता लील न जाये भविष्य के गांधी-नेहरू को
हमारी संस्कृति की नाव, डर है, डूब न जाये
बचानी है अगर नैया तो धारा मोड़ना होगा
सुराही तोड़नी होगी, पियाला तोड़ना होगा
छुटे संस्कार जो अपने, उन्हें फ़िर जोड़ना होगा
नग्नता त्यागनी होगी , नशे को छोड़ना होगा
नशे के दाँत इन फूलों की मासूमी न जाये
नग्नता लील न जाये भविष्य के गांधी-नेहरू को
हमारी संस्कृति की नाव, डर है, डूब न जाये
बचानी है अगर नैया तो धारा मोड़ना होगा
सुराही तोड़नी होगी, पियाला तोड़ना होगा
छुटे संस्कार जो अपने, उन्हें फ़िर जोड़ना होगा
नग्नता त्यागनी होगी , नशे को छोड़ना होगा
5 comments:
bhut achchhi rachna
छुटे संस्कार जो अपने, उन्हें फ़िर जोड़ना होगा
नग्नता त्यागनी होगी , नशे को छोड़ना होगा
कमाल की लेखनी है भाई......नतमस्तक
अलबेल जी,
बात तो पते की कही है आपने मगर, आज के बच्चे बाप रे बाप, मानेगें क्या? जिन का दिन गुजर जाता हो रात क नशा उतारने में और रात फिर स्याह हो जाती है गर्द में।
चिंता जरूरी है, अच्छी कविता है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपने अपनी रचना के माध्यम से बहुत अच्छा सन्देश दिया है...!सुराही,बोतलें..प्याले तोड़ने होंगे..यानी नशे को त्याग कर ही भावी पीढी का भविष्य बना सकते है...!...अच्छी रचना...
सच है भविष्यं को सवांरना है तो नशे की लत छोड़नी होगी पर आज नशे के बीज हमारे समाज में फैलते जा रहे हैं ,चाहें वह मोबाइल का नशा हो ,शराब का नशा हो,पैसे का नशा हो या नग्नता का ,एक अच्छी रचना के लिए बधाई |
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