अरमानों की भीड़ गई, दिल में उठते वलवले गए
साक़ी सागर और सुराही मस्ती के मश्गले गए
दूर उफ़क में दिखता था वह पैक़र एक मस्सर्रत का
जब-जब भी हम हुस्न देखने आसमान के तले गए
आज उदासी के साये से छलकी है ये शाम-ए-हसीं
दूर बहुत अब दिल से अन्धड़-तूफ़ान-ओ-ज़लज़ले गए
उनके हर फ़र्मान को हमने सर - आँखों पे रक्खा पर
उनके हाथों ज़ख्म हमारे नमक लगा कर तले गए
कभी चमन में खिजां, कभी आती है यार बहार यहाँ
हरगिज़ मत रोना 'अलबेला' क्या है गर वो चले गए
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
11 comments:
उनके हर फ़र्मान को हमने सर - आँखों पे रक्खा पर
उनके हाथों ज़ख्म हमारे नमक लगा कर तले गए
बहुत ही अच्छा लिखा आपने,
बधाई हो,
आपको किसी की टिपण्णी की जरुररत नहीं है ! दरअसल आपकी नज्म देख कर शब्दों की तलाश करते हैं जो की नहीं मिलते !!
बहुत ही बढिया......भाई बहुत ही बहक रहे है शब्दो के साथ साथ.......आप कहाँ कहाँ चले जाते हो ...........डुब गये हम भी..
शब्दों का सुन्दर खेल। बहुत खूब अलबेला भाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
उनके हर फ़र्मान को हमने सर - आँखों पे रक्खा पर
उनके हाथों ज़ख्म हमारे नमक लगा कर तले गए
बहुत ही खूब मित्र, बहुत ही बेहतरीन .घुमा के रख दिया, शब्दों का सुंदर सयोंजन ,मेरा कमेन्ट नहीं आदर स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
उनके हर फ़र्मान को हमने सर - आँखों पे रक्खा पर
उनके हाथों ज़ख्म हमारे नमक लगा कर तले गए
बहुत बडिया आभार्
आज उदासी के साये से छलकी है ये शाम-ए-हसीं
दूर बहुत अब दिल से अन्धड़-तूफ़ान-ओ-ज़लज़ले गए
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है अलबेला जी आपने...बधाई...
(मेरे ब्लॉग पर एक डॉन आपकी इन्तेज़ार कर रहा है...देखें)
नीरज
बहुत सशक्त. शुभकामनाएं.
रामराम.
अच्छा लिखा है, अच्छा टेम्पलेट है।
दूर उफ़क में दिखता था वह पैक़र एक मस्सर्रत का
जब-जब भी हम हुस्न देखने आसमान के तले गए
-वाह, कठिन शब्दों के अर्थ भी दे दें तो अच्छा हो। थोड़ा धीमे इंटर्नेट कनेक्सन वालों पर दया करें। ब्लॉग खुलने में अधिक समय लगता है।
इस बेहतरीन गज़ल के लिए बहुत बधाई.
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