परम निन्दनीय प्रोफ़ेसर निन्द्यानंदजी sorry नित्यानंदजी महाराज साहेब,
सुना है आप हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी तोप हैं , होंगे ......मुझे क्या, मैं तो एक मामूली तमंचा हूँ और आप से दो बात करना चाहता हूँ । बात क्या करनी है, खाली इतना कहना है कि विद्वानों को मूर्खों जैसी बातें नहीं करनी चाहिए ....दही के भुलावे में कपास नहीं खाना चाहिए ....बड़ी तकलीफ़ देता है ।
आपने कहा कि विदेशों में होने वाला हिन्दी लेखन दो कौड़ी का है । आपने क्यों कहा, किस मजबूरी में कहा , क्या साबित करने को कहा, इन बातों से मुझे कुछ लेना देना नहीं है ............मैं तो सिर्फ़ एक एतराज़नामा आपकी समझदानी तक भेज कर आपको अपने कीमती लफ्ज़ वापस लेने की मानसिकता में लाने की कोशिश कर रहा हूँ क्योंकि इससे मुझे ही नहीं बल्कि उन सब लोगों को बड़ी पीड़ा हुई है जो भारत से बाहर हो रहे हिन्दी लेखन से परिचित हैं और प्रभावित भी हैं ।
लगता है आपने मारीशस का ख़ूब नमक खाया है इसलिए जब भी डकार लेते हैं , वहीं के किसी हिन्दी लेखक का गुणगान बाहर आता है .........ये आपकी योग्यता या विद्वता नहीं बल्कि विवशता है, मजबूरी है जिसने आपकी सोच को संकुचित कर के उसे पंगु बना दिया है ....बनने चले थे भोज , पर गंगू बना दिया है .......कुल मिला के आप मेरे लिए क्रोध के नहीं करुणा के पात्र हैं उस कूप मंडूक की भान्ति जो जानता ही नहीं कि दुनिया उसके कूप से बहुत बड़ी है ।
न्यू यार्क में एक बिहारी बाबू हैं डॉ० बिजय कुमार मेहता ....शायद आपने उनका नाम सुना हो, उन्होंने यों तो बहुत सी पुस्तकें लिखी हैं और हर पुस्तक अद्भुत लिखी है लेकिन कभी उनके द्वारा रचित महाकाव्य "तथागत" पढ़ना .....आपकी वो क्या कहते हैं उसे ...हाँ, आँखें ..............फटी की फटी रह जायेंगी । उनके एक गीत की पंक्तियाँ मुझे आज भी याद हैं ..आप भी पढिये...............
बजा कन्हैया आज बांसुरी
वृन्दावन नगरी जलती है
कालिंदी के मधुर तटों की, मधु क्रीड़ा की बात न करना
ब्रजबाला के सजल नयन की, मधुव्रीड़ा की बात न करना
गोकुल की नूतन नगरी में
नवयुग की पीड़ा पलती है
राधा के मधुरिम नयनों में पवन मधु का नीर नहीं है
मधु भावों की मधु वेदना, सरस प्राण की पीर नहीं है
पच्छिम के इस प्रलय पवन में
हर प्रतिमा हिलती - डुलती है
कलि-युग की इस काल रात्रि में बोल! व्यथा क्या और बढेगी ?
निशा-निमिष में सूर्य क़ैद है, ज्योति-किरण बन कब निखरेगी ?
जागो हे! श्री देवकी नन्दन,
अश्रुधार क्षण-क्षण गिरती है
बजा कन्हैया आज बांसुरी,
वृन्दावन नगरी जलती है
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___________________ये तो एक झलक है। गीत बहुत लम्बा है, बाद में पूरा पढ़ा दूंगा ।
क्या ये गीत दो कौड़ी का है ?
आप सोचो - विचार करो, तब तक मैं अल्पाहार कर लेता हूँ ।
मिलते हैं ...ब्रेक के बाद ...
_______________________क्रमश :
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
7 comments:
सही कहा आपने,ऐसे लोग करुणा के ही पात्र है,
हिन्दुस्तान की भाषा हिन्दी चाहे जहाँ भी हो,
हर जगह सम्मान पा रही है,
आप अल्पाहार कर लोगे
उसके बाद भूख लगेगी
और भोजन दोपहर और
रात का भी करोगे पर
उनका क्या होगा जिनकी
मर गई होगी भूख
इसे पढ़ कर और
वे जाएंगे कुड़ सॉरी
गलता हो गया उड़।
वाजिब तकलीफ़ है ये.विजय जी के काव्यान्श पढवाने के लिये साधुवाद.
Yah achchhi rahi. aajkal bloggers 'do koudi' ko hi bechne men lag gaye hain. Chaliye isse Tiwari ji kee mahtta ka pata to chala.
Saath hee prvaasi rachnaakaron ka naam ko baahar lane ka shukriya
भाई अल्पाहार कर रहे थे तो हमे भी बुलवा लेते? हमने क्या आपकी भी भैंस खोल ली है क्या?:)
रामराम.
"परम निंदनीय " वाह !!जब आप अल्पाहार मैं इतनी बात सुना सकते हैं, तो भोजन पर आप क्या गजब ढहा सकते हैं !!नित्यानंदी जी !! ज़रा संभलकर !!!
बहुत सही कहा है आपने।
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