ग़मगुसारों की निगाहें तीर सी क्यूँ है
शायरी में दर्द की तासीर सी क्यूँ है
हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
ला पिलादे मयफ़िशां अन्दाज़ ही से
दिख रही मय आज मुझको शीर सी क्यूँ है
हिन्द तो 'अलबेला' कितने साल से आज़ाद है
हम पे लेकिन अब तलक ज़ंजीर सी क्यूँ है
शायरी में दर्द की तासीर सी क्यूँ है
हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
सामने वो हैं तो शब शमशीर सी क्यूँ है
ला पिलादे मयफ़िशां अन्दाज़ ही से
दिख रही मय आज मुझको शीर सी क्यूँ है
हिन्द तो 'अलबेला' कितने साल से आज़ाद है
हम पे लेकिन अब तलक ज़ंजीर सी क्यूँ है
12 comments:
aapko kya wah wahi de ham to is kabil bhi nahi hai aap to hameshaa better hi ho
जय हो
बहुत बढ़िया
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
सामने वो हैं तो शब शमशीर सी क्यूँ है
क्या खूब अन्दाज़ है बेहतरीन गज़ल
बहुत सही फ़रमाया. शुभकामनाएं
रामराम.
बहुत उम्दा गज़ल।बधाई।
aapake shero ke jabaab nahi ..........yahee to nahi pata mere bhai....ye janjir si kyon hai
उनके आते ही सुकूं था लौट आता
सामने वो हैं तो शब शमशीर सी क्यूँ है
bahut hi khoob kaha hai aapne
बहुत सुंदर जी आप की यह गजल
bahut badia...
sunder ghazal
kamal
vaise to overall acchi hain aapki creativity but humko to " हसरतें थीं कल बिहारी सी हमारी
आज दिल की आरज़ूएं मीर सी क्यूँ है" ye lines behad pasad aayi
ख़याल उम्दा हैं।
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