देह नहीं देहेतर से मैं करता प्यार रहा हूँ
तुम में एक और जो तुम है, उसे पुकार रहा हूँ
एक झलक पाने के लिए सतत मेरी आत्मा अकुलाती
युग युग की पहचान प्राण की काम नहीं कुछ आती
तन के गाढ़ आलिंगन में भी उसका स्पर्श न मिलता
अधरों के चुम्बन में भी वह दूर खड़ी मुस्काती
_______तन के माध्यम से मैं जिसकी कर मनुहार रहा हूँ
अधरों का चुम्बन पीकर भी अधर तृषित रहते हैं
बन्ध आकंठ भुजाओं में भी प्राण व्यथित रहते हैं
देह स्वयं बाधा बन जाती स्नेह भरे हृदयों की
खुलते नहीं भाव जो छवि में अन्तर्हित रहते हैं
________जीत-जीत कर भी मैं जैसे बाज़ी हार रहा हूँ
मधुर व्यथा जो उफ़न-उफ़न कर शोणित में बल खाती
वह तुम से सम्पूर्ण तुम्हे ही पाने को अकुलाती
अनाघ्रात चिर सुमन प्राण का,चिर अनबूझ, अछूता
मोती में बन्दी पानी की धारा छुई न जाती
________तुम उस पार खड़ी हँसती हो मैं इस पार रहा हूँ
अंजलि में गिरता जल, ओंठों पर आकर उड़ जाता
एक द्वार खुलता है जैसे एक द्वार जुड जाता
पाकर भी अप्राप्य सदा जो छवि अदेय देकर भी
लगता जैसे लक्ष्य-निकट से मार्ग स्वयं मुड जाता
________मुग्ध शलभ मैं दीपशिखा पर चक्कर मार रहा हूँ
देह नहीं मैं देहेतर से करता प्यार रहा हूँ
तुम में एक और जो तुम है, उसे पुकार रहा हूँ
________
____________यह गीत अमेरिका के क्लीवलैंड ओहायो निवासी
गुलाब खंडेलवालजी का है जो कि भारतीय हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी हस्ती है ।
क्या यह गीत भी दो कौड़ी का है ?
बोलो न ......आप कुछ बोलते क्यूँ नहीं ?
अकेला मैं ही लगा हुआ हूँ प्रमाण देने में कि भारत के बाहर लिखा जाने वाला हिन्दी लेखन दो कौड़ी का
नहीं बल्कि दूर की कौड़ी का है ...मेरे पास उदाहरण की कमी नहीं है । आप तो सिर्फ़ एक बार यह
सिद्ध कर दीजिये कि जो लेखन मैंने आपको दिखाया है वह दो कौड़ी का है .....आप की ओर से जवाब
मिला तो सिलसिला ये प्यार का आगे बढेगा वरना ..यहाँ पूर्ण विराम अपने आप लग
जाएगा ....पाठक जन भी अपनी प्रतिक्रिया देंगे तो मुझे संतोष होगा ....
सधन्यवाद,
-अलबेला खत्री
hindi hasyakavi sammelan in mangalore by MRPL
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शानदार, शानदार, शानदार …………………
शानदार और जानदार रहा मंगलूर रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड द्वारा
राजभाषा विभाग के तत्वाधान में डॉ बी आर पाल द्वारा आ...
10 years ago
4 comments:
सुंदर रचना है, भारत में रची जा रही इस तरह की रचनाओं से किसी भी तरह कमतर नहीं है।
क्या बात है।गज़ब लिखा है आपने,इसे दो कौड़ी की समझ रकह्ने वाले क्या समझ पायेंगेम्।
गुलाब जी को नमन!!
भाई क्या भारत से बाहर रहने वालो की भारतियता मर जाती है जो उनका लेखन दो कौडी का हो जायेगा. अरे..जो भारतीय है वो है. और गुलाब जी को बहुत नमन इस लाजवाब रचना के लिये.
रामराम.
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