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Hindi Hasya kavi Albela Khatri's blog

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Albela Khatri

रोते रोते कलम बेज़ुबां हो गई ............

मेरी ज़िन्दगी तू कहाँ खो गई ?

शायरी भी मेरी अब जवां हो गई


जल रही है ज़मीं जल रहा आसमां

क़ायनात--तमाम पुर-तवां हो गई


हर शहर हर मकां मौतगाह बन गया

हर निगाहो - नज़र खूंफ़िशां हो गई


तौबा-तौबा ख़ुदा ! लुट गए - लुट गए

आज घर- घर यही दास्ताँ हो गई


ईश्वर ! रहम कर हाल पे हिन्द के

रोते - रोते कलम बेज़ुबां हो गई


जल जाऊं कहीं 'अलबेला' डर गया

अब तो आबो - हवा आतिशां हो गई


15 comments:

Murari Pareek June 23, 2009 at 3:02 PM  

अत्यंत दारुण !! अब तो आबो हवा अतिशां हो गई!

राज भाटिय़ा June 23, 2009 at 3:16 PM  

क्या बात है अलबेला जी सभी शेर एक से बड कर एक.
धन्यवाद

मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे

ओम आर्य June 23, 2009 at 3:26 PM  

kya kahun shabda undnchoo ho gaye hai.........aap itan kuchh likhate ho ki aapki kawitaaye jindgi ke har ek pahlu ko chooti hai.....natamastak

Science Bloggers Association June 23, 2009 at 3:53 PM  

जिंदगानी के अनुभवों का सुंदर बयान।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

ताऊ रामपुरिया June 23, 2009 at 4:07 PM  

जल न जाऊं कहीं 'अलबेला' डर गया

अब तो आबो - हवा आतिशां हो गई

बहुत मार्मिक रचना.

रामराम.

संगीता पुरी June 23, 2009 at 4:10 PM  

वाह !! बहुत बढिया लिखा।

रंजना June 23, 2009 at 4:33 PM  

Waah ! Waah ! Waah ! Kya kamal kee abhivyakti hai....

Dil ko chhoo gayi rachna...Waah !!

M VERMA June 23, 2009 at 4:39 PM  

अब तो आबोहवा बदलना ही चाहिए

Udan Tashtari June 23, 2009 at 5:12 PM  

जल न जाऊं कहीं 'अलबेला' डर गया
अब तो आबो - हवा आतिशां हो गई

--बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं!!

योगेन्द्र मौदगिल June 23, 2009 at 5:13 PM  

wahwa.......

दिगम्बर नासवा June 23, 2009 at 5:25 PM  

क्या बात है albelaa जी.......... लाजवाब लिखा है .... सब शेर नए अंदाज़ को bayaan करते हैं

shama June 23, 2009 at 5:55 PM  

Mere paas alfaaz nahee...itnaa utsfurt likha gaya hai aapse...!
Lagta hai, maano, ekhee baar qalam uthayi,aur rachna pooree karke rakhee...!

http://kavitasbyshama.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' June 23, 2009 at 5:56 PM  

रोते - रोते कलम बेज़ुबां हो गई।
रात भी ढल गई और सुबहा हो गई।
सारे अरमान दिल में दबे रह गये।
एक झोंके में तारे किले ढह गये।।

प्रिया June 23, 2009 at 10:38 PM  

Kalam ko bejuban mat banaiye Albela ji.....Ye agar bejuba ho gai...to sannate ko todna bahut muskil hoga

vijay kumar sappatti June 24, 2009 at 2:10 PM  

albela ji ,

deri se aane ke liye maafi chahunga ..

aapki is gazal ne to bahut gahra asar choda hai mujh par ...
ईश्वर ! रहम कर हाल पे हिन्द के

रोते - रोते कलम बेज़ुबां हो गई

waah waah .. sir , aapki kalam ko naman..

bahut hi zordaar pankhtiyan..

badhai sweekar kariye..

vijay

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