आगाज़-ओ-अन्जाम में है फ़ासला बहुत
क़त्ल-ओ-गारत का यहाँ है मश्गला बहुत
ऐ अदीबो! तुम्ही राहत दो कलम के इल्म से
मुल्क़ में है वहशतों का ज़लज़ला बहुत
क़त्ल-ओ-गारत का यहाँ है मश्गला बहुत
ऐ अदीबो! तुम्ही राहत दो कलम के इल्म से
मुल्क़ में है वहशतों का ज़लज़ला बहुत
2 comments:
इस जलजले में से
जल निकाल लो
और बरसा दो
बना मानसून।
अविनाशजी की बात पर ध्यान दिया जाये.
रामराम.
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